पर्यावरणविद् पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे

देहरादून। पर्यावरणविद् , पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे। उनका इलाज के दौरान ऋषिकेश एम्स में निधन हो गया। 94 वर्षीय श्री बहुगुणा पिछले कुछ दिनों से एम्स में भर्ती थे। वे डायबिटीज के साथ ही कोविड निमोनिया से पीड़ित थे। श्री बहुगुणा को कोरोना होने पर गत आठ मई को एम्स में भर्ती कराया गया था। शुक्रवार को उन्होंने अंतिम सांस ली।

सुंदरलाल बहुगुणा ने 1972 में चिपको आंदोलन को धार दी थी। साथ ही देश-दुनिया को वनों के संरक्षण के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप चिपको आंदोलन की गूंज समूची दुनिया में सुनाई पड़ी। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बहुगुणा का नदियों, वनों व प्रकृति से बेहद गहरा जुड़ाव था। वह पारिस्थितिकी को सबसे बड़ी आर्थिकी मानते थे। यही वजह भी है कि वह उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटी-छोटी परियोजनाओं के पक्षधर थे। इसीलिए वह टिहरी बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के पक्षधर नहीं थे। इसे लेकर उन्होंने वृहद आंदोलन शुरू कर अलख जगाई थी।

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पर्यावरणविद् बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त हुए इसे देश की अपूरणीय क्षति बताया है। सीएम तीरथ सिंह रावत ने कहा कि श्री बहुगुणा का निधन सिर्फ उत्तराखंड के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए अपूरणीय क्षति है। पहाड़ों में जल, जंगल और जमीन के मसलों को अपनी प्राथमिकता में रखने वाले और रियासतों में जनता को उनका हक दिलाने वाले श्री बहुगुणा के प्रयास सदैव याद रखे जाएंगे। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें 1986 में जमनालाल बजाज पुरस्कार और 2009 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। पर्यावरण संरक्षण के मैदान में सुंदरलाल बहुगुणा के कार्यों को इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। उन्होंने ईश्वर से दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने और शोकाकुल परिजनों को धैर्य व दुःख सहने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की है। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल समेत तमाम राजनेताओं, सामाजिक संगठनों ने श्री बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।

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