पलायन निवारण आयोग के सुझावों पर नहीं हो पाया अमल

देहरादून। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों से हो रहे पलायन को रोकने के लिए पलायन आयोग द्वारा जो सुझाव सरकार को दिए गए हैं उन पर अमल नहीं हो पाया है। पलायन आयोग के सुझावों पर अमल न होने से राज्य में पलायन की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। अब सवाल यह उठता है कि जब पलायन आयोग के सुझावों पर अमल की नहीं होना था तो इस आयोग का गठन क्यों किया गया। आयोग ने पर्वतीय क्षेत्रों से हो रहे पलायन को रोकने के संबंध में कई महत्वपूर्ण सुझाव अपनी रिपोर्ट में दिए हैं। उत्तराखंड में पलायन आयोग के गठन को तकरीबन 5 साल का वक्त हो चुका है। ग्रामीण विकास विभाग के सहयोग से आयोग ने अब तक पलायन की स्थिति को जानने के लिए दो सर्वे कराए हैं, एक सर्वे 2018 में किया गया था और दूसरा सर्वे 2022 में किया जा चुका है।
वर्ष 2017 में भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने उत्तराखंड में पलायन आयोग का गठन किया था, आयोग की जरूरत इसलिए पड़ी थी क्योंकि प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों से हो रहे पलायन के कारणों का पता लगाया जा सके। आयोग के पास फिलहाल एक उपाध्यक्ष और 5 सदस्य हैं। एक सदस्य सचिव भी है और एक एडिशनल सदस्य सचिव भी आयोग में काम कर रहा है। आयोग के अध्यक्ष खुद मुख्यमत्री हंै। धामी सरकार ने पलायन  आयोग के नाम में थोड़ा परिवर्तन कर पलायन निवारण आयोग कर दिया है। आयोग का नाम पलायन निवारण आयोग तो कर दिया गया लेकिन जिन समस्याओं के कारण राज्य के पर्वतीय क्षेत्र से लोग पलायन कर रहे हैं उन समस्याओं का निवारण नहीं हो पाया है। आयोग राज्य सरकार को 18 रिपोर्ट प्रस्तुत कर चुका है। पलायन आयोग की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 400 से अधिक ऐसे गांव हैं जहां 10 से भी कम नागरिक रहते हैं और 1734 गांव खाली हो चुके हैं। राज्य में सबसे ज्यादा पलायन से प्रभावित जिले पौड़ी और अल्मोड़ा है। आयोग ने सर्वे में यह भी पाया कि ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग पलायन कर रहे हैं। आयोग की रिपोर्ट के अनुसार राज्य से 1.18 लाख लोग स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं, जबकि 3.86 लाख लोगों ने अस्थायी रूप से पलायन किया। आयोग ने पलायन के कारण, कहां से कहां पलायन समेत अन्य बिंदुओं पर भी रिपोर्ट दी। आयोग समय-समय पर जिलों की सामाजिक-आर्थिक सर्वे रिपोर्ट के अलावा गांवों के विकास के दृष्टिगत सुझाव देता आ रहा है। इसी कड़ी में सरकार ने पूर्व में 400 से अधिक ऐसे गांव चयनित किए, जिनमें 50 प्रतिशत से अधिक पलायन हुआ है।
पलायन आयोग की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि उत्तराखंड के सिर्फ पहाड़ी क्षेत्रों से ही नहीं, बल्कि देहरादून जिला भी पलायन की मार झेल रहा है। रिपोर्ट में पलायन की मुख्य वजह बुनियादी सुविधाओं का अभाव, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की समस्या होना बताया गया है। ऐसे में सरकार के विकास के दावों को यह रिपोर्ट मुंह चिढ़ाती नजर आ रही है. बात अगर देहरादून जिले की करें तो पिछले 10 सालों में यहां से 25,781 लोगों अस्थायी तौर पर पलायन किया है। वहीं, बीते 10 सालों में जनपद से 2,802 लोग स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं।

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