संचार क्रांति के इस दौर में  भी इंटरनेट और नेटवर्क कनेक्टिविटी से कोसों दूर टिहरी का गंगी गांव  

देहरादून। संचार क्रांति के इस दौर में कुछ गांव ऐसे भी हैं जो नेटवर्क कनेक्टिविटी जैसी मूलभत सुविधा से वंचित हैं। ग्रामीणों को मोबाइल फोन पर बात करने के लिए के लिए 5 से 7 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। भिलंगना ब्लॉक का सीमांत गंगी गांव नई टिहरी जिला मुख्यालय से करीब 120 किलोमीटर दूर भारत तिब्बत सीमा पर स्थित है। करीब 150 परिवारों की आबादी वाला गंगी गांव आज भी डिजिटल इंडिया के इस दौर में मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट से कोसों दूर है। आजादी के 70 साल के बाद भी ग्रामीणों को मोबाइल फोन पर बात करने के लिए 5 से 7 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। सूचना तकनीकी के अभाव में गंगी गांव के ग्रामीण 18वीं सदी का जीवन जीने को मजबूर हैं। आज जहां डिजिटल इंडिया के दौर में देश के बच्चे अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं वहीं, गंगी गांव के बच्चे बिना मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट के अपना भविष्य अंधेरे में जीने को मजबूर हैं।  
इस गांव में आज भी स्वास्थ्य, शिक्षा, संचार, जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में यहां के ग्रामीण बीमारी की स्थिति में जड़ी-बूटियोें का सेवन कर अपना इलाज करते हैं। इस गांव में अतीस, कूट, कुटकी, चिरायता, छतवा, और सिंगपरणी जैसी दुर्लभ जड़ी-बूटियां होती हैं जो बुखार, खांसी, पेट से संबधित बीमारी, शूगर और लीवर से संबधित बीमारियों में काफी फायदेमंद हैं। कोरोना महामारी के दौर में भी यहां के लोगों ने दवाइयां नहीं खाई और कोरोना के लक्षण होने पर जड़़ी-बूटियों का काड़ा पीकर अपना इलाज खुद किया। सीमान्त क्षेत्र गंगी के लोगों की आजीविका का साधन मुख्य रूप से खेती और पशुपालन है। सरकारी अनदेखी के चलते गंगी क्षेत्र उपेक्षित है। सीमांत गांव गंगी में तुमड़ी आलू की अच्छी पैदावार होती है। आलू उत्पादन और खेती-बाड़ी से यहां के ग्रामीण अपनी आजीविका चलाते हैं। इस गांव के सभी परिवार आलू की खेती करते हैं। यहां तुमड़ी आलू की देश-विदेश में काफी मांग है। लेकिन मार्केटिंग की व्यवस्था न होने से ग्रामीणों को उनकी उपज का अच्छा दाम नहीं मिल पा रहा है। गांव में उगने वाले आलू को थोक व्यापारी 20 रुपये किलो के हिसाब से खरीदते हैं, जिन्हें बाहर अच्छे दामों में बेचा जाता है। इस आलू की डिमांड विदेशों में भी है। व्यापारी इस तुमड़ी आलू बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। 
पीने के पानी के लिए गांव के लोग पूरी तरह प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर हैं। चारों ओर जंगलों से घिरे होने के कारण स्रोत वर्षभर पानी से लबालब रहते हैं। लेकिन, बरसात के दिनों में पानी गंदला होने से लोगों को दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं। इस गांव में शिक्षा के नाम पर एक राजकीय जूनियर हाईस्कूल है। आठवीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए विद्यालय 17 किमी दूर घुत्तू में है, इसलिए यहां के कम ही लोग आठवीं से आगे की पढ़ाई कर पाते हैं। इस गांव में सरकारी नौकरी भी किसी के पास नहीं है। 

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