एक गंभीर स्वास्थ्य संकट का इशारा है कर्नाटक में बच्चियों के गर्भवती होने के 28,657 मामले

नई दिल्ली।  कर्नाटक राज्य बाल अधिकार सुरक्षा आयोग (केएससीआरपीसी) द्वारा जनवरी से नवंबर 2023 तक के बीच बाल गर्भावस्था से संबंधित जारी आंकड़ों को गंभीर स्वास्थ्य संकट करार देते हुए गैर सरकारी संगठनों के गठबंधन ‘चाइल्ड मैरेज फ्री इंडिया’ (सीएमएफआई) ने कहा कि इन आंकड़ों को बाल विवाह के तौर पर देखने की जरूरत है और इसे सिर्फ बच्चों के साथ बलात्कार के रूप में देखा जाना चाहिए। आंकड़ों के अनुसार कर्नाटक में जनवरी से नवंबर 2023 तक नाबालिग यानी 18 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के गर्भवती होने के 28,657 मामले सामने आए। इनमें सबसे ज्यादा मामले बंगलुरु, बेलगावी और विजयपुर जिलों से सामने आए।

आंकड़ों के अनुसार राज्य में नाबालिग बच्चियों के गर्भवती होने के सबसे ज्यादा 2,815 मामले बंगलुरु में सामने आए जबकि 2,754 मामलों के साथ बेलगावी दूसरे और 2,004 मामलों के साथ विजयनगर तीसरे स्थान पर है। इस बात पर जोर देते हुए कि बाल विवाह के तमाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दुष्परिणामों के नतीजो में न सिर्फ बच्चों की एक पूरी पीढ़ी बल्कि इन बच्चों के बच्चे भी खतरे के दलदल में फंस जाते हैं, चाइल्ड मैरेज फ्री इंडिया के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा,” बाल विवाह बच्चों से बलात्कार है और कर्नाटक में नाबालिग बच्चियों के गर्भवती होने के मामले इसका सबूत हैं। जब बच्चों के बच्चे होते हैं तो इसका मतलब है कि यह उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा से जुड़ा संकट है।”

बच्चियों के गर्भवती होने से जुड़े इन आंकड़ों पर चिंता जताते हुए भुवन ऋभु ने कहा, “ इन 28,000 बच्चियों के गर्भवती होने को हमें सिर्फ एक गंभीर स्वास्थ्य संकट के तौर पर ही नहीं देखना चाहिए। यह इन 28,000 बच्चियों के साथ बलात्कार है जिसका नतीजा इन बच्चियों के गर्भवती होने के रूप में सामने आया है। हम बाल विवाह के खात्मे के लिए कर्नाटक सरकार से पिकेट रणनीति पर अमल की मांग करते हैं।”

बाल विवाह के खात्मे के लिए देश के तमाम गैरसरकारी संगठन पिकेट रणनीति पर अमल कर रहे हैं। यह बाल विवाह के उन्मूलन के समग्र रणनीति की वकालत करती है जिसमें नीतियां, संस्थानों में निवेश, सभी हितधारकों में समन्वय व संमिलन, ज्ञान आधारित दृष्टिकोण, तकनीक का उपयोग और एक ऐसी पारिस्थितिकी का निर्माण जिसमें बाल विवाह के फलन फूलने की कोई गुंजाइश नहीं हो, जैसी चीजें शामिल हैं।

यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि सभी देशों ने उचित, न्यायसंगत और दीर्घकालिक विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों पर अमल की सहमति जताई है। इसके तहत सभी देशों ने बाल विवाह और जबरन विवाह पर 2030 तक पूरी तरह रोक लगाने पर सहमति जताई है। लेकिन दुनिया में जब तक बाल विवाह जारी हैं तब तक सतत विकास लक्ष्यों के 17 में से 11 लक्ष्य हासिल नहीं किए जा सकते।

चाइल्ड मैरेज फ्री इंडिया बाल विवाह की उच्च दर वाले देश के 300 से ज्यादा जिलों में बाल विवाह के खात्मे के लिए काम कर रहे 160 से भी अधिक गैरसरकारी संगठनों का छतरी संगठन है जिसने 2030 तक देश से बाल विवाह के खात्मे के लिए ‘पिकेट रणनीति’ के तहत समग्र और समन्वित राष्ट्रव्यापी अभियान की शुरुआत की है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (एनएचएफएस 2019-21) के अनुसार देश में 20 से 24 आयुवर्ग की 23.3 फीसदी युवतियों का विवाह उनके 18 वर्ष की होने से पहले ही हो गया था जबकि कर्नाटक में यह आंकड़ा 21.2 प्रतिशत है। हालंकि राज्य के यादगीर (33.2), गुलबर्गा (29.8), गडग (27.7), कोप्पल (27.1) और कोलार (26.7) में बाल विवाह की दर राज्य ही नहीं, राष्ट्रीय औसत से भी खासी ज्यादा है। सर्वे के अनुसार 15 से 19 वर्ष के बीच मां बनने वाली या गर्भवती होने वाली किशोरियों की संख्या 6.8 प्रतिशत थी। यद्यपि देश में बाल विवाह की दर बहुत ज्यादा है लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में देश में बाल विवाह के सिर्फ 1002 मामले दर्ज किए गए। देश में हर मिनट तीन बच्चों का बचपन बाल विवाह के नर्क में झोंक दिया जाता है जबकि गिनती के मामलों की शिकायत दर्ज हो पाती है। देश को 2030 तक बाल विवाह मुक्त बनाने के लिए हमें एक समग्र, लक्ष्य केंद्रित, समयबद्ध और टिकाऊ रणनीति की आवश्यकता है।

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