देहरादून. गढ़ संवेदना न्यूज: देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल (डीडीएलएफ) के 5वें संस्करण की शुरुआत अगाथा क्रिस्टी की कालातीत साहित्यिक विरासत को समर्पित आकर्षक सत्रों की एक श्रृंखला के साथ हुई। इस वर्ष, डीडीएलएफ ने अगाथा क्रिस्टी की रहस्यमयी और जादुई दुनिया को साहित्यिक उत्साही लोगों तक पहुंचाने के लिए हाल ही में यूनाइटेड किंगडम में संपन्न हुए अगाथा क्रिस्टी फेस्टिवल के साथ साझेदारी करी। दिन की शुरुआत सौम्या कुलश्रेष्ठ और डॉ रूबी गुप्ता द्वारा ‘अगाथा क्रिस्टी एंड हर रेलेवंस टुडे’ नामक सत्र से हुई। लेखिका और आईएमए में प्रोफेसर डॉ. गुप्ता ने अपनी प्रेरक यात्रा साझा करते हुए कहा, “सभी बच्चों से मैं यही कहना चाहूंगी कि अपने आप को एक ही क्षेत्र में सीमित न रखें। सुनिश्चित करें कि आप जिस क्षेत्र से प्यार करते हैं उसे ही चुनें। मैं एक बोरिंग प्रोफेसर नहीं बनना चाहती थी, इसलिए मैंने अकादमिक किताबें लिखना शुरू कर दिया। मैंने खुद को कुछ अलग चुनने की चुनौती दी, और इस तरह मैंने मिस्ट्री की दुनिया में कदम रक्खा।” डॉ. रूबी ने अगाथा क्रिस्टी की किताबों के साथ अपने शुरुआती दौर पर भी प्रकाश डाला और कहा, “जब जब मैंने अगाथा क्रिस्टी की किताब पढ़ी, मेरी दुनिया समृद्ध हो गई। उनकी किताबें एक पहेली की तरह हैं जिन्होंने मुझे रहस्य की ओर बहुत प्रभावित किया है। इसी तरह मैंने क्राइम राइटिंग की शुरुआत करी।” दिन का दूसरा सत्र ‘अगाथालॉजी – द लाइफ, लिटरेचर, एंड लिगेसी ऑफ अगाथा क्रिस्टी’ के साथ जारी रहा। अगाथा क्रिस्टी विशेषज्ञ डॉ. मार्क एल्ड्रिज, डॉ. मंजिरी प्रभु और प्रशंसित भारतीय फिल्म निर्माता विशाल भारद्वाज, जिन्होंने सत्र में वर्चुअली भाग लिया, ने अगाथा क्रिस्टी के काम और प्रभाव के विभिन्न पहलुओं पर बातचीत करी । डॉ. मार्क एल्ड्रिज ने क्रिस्टी के लेखन से अपना संबंध साझा करते हुए कहा, “मैं उसी शहर से हूं जहां अगाथा का जन्म हुआ था। मेरी मां अगाथा क्रिस्टी की बहुत बड़ी प्रशंसक रही हैं और उनके इसी शौक ने मुझे अगाथा क्रिस्टी की किताबों की ओर आकर्षित किया।” उन्होंने क्रिस्टी की कहानियों में प्रेम और रिश्तों के महत्व पर भी जोर दिया।
अपने सम्बोधन के दौरान डॉ. मंजिरी प्रभु ने अगाथा क्रिस्टी की अनूठी लेखन शैली के बारे में बताया और कुत्तों के प्रति उनके प्यार के प्रति गहरी प्रशंसा व्यक्त की। विशाल भारद्वाज ने अपनी हालिया ओटीटी रिलीज ‘चार्ली चोपड़ा एंड द मिस्ट्री ऑफ द सोलांग वैली’, जो एक क्रिस्टी-प्रेरित रूपांतरण है, पर चर्चा करी। उन्होंने अगाथा क्रिस्टी की सार्वभौमिक अपील पर प्रकाश डालते हुए कहा, “अगाथा क्रिस्टी हर किसी की पसंदीदा रहीं हैं, और हम उनकी किताबें पढ़ते हुए बड़े हुए हैं। उनका कथानक और चरित्र बेजोड़ हैं।में बस यह कहना चाहूंगा की जिसने भी अगाथा क्रिस्टी की किताबें नहीं पढ़ीं, वह अपने जीवन में कुछ कीमती खो रहा है।” दूसरे दिन पूर्व दिल्ली पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार, जिन्होंने निर्भया मामले को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, द्वारा ‘ए कॉप इन क्रिकेट – इनसाइट्स इनटू करप्शन इन क्रिकेट’ विषय पर एक सत्र आयोजित किया गया। सत्र का संचालन मुकेश त्यागी द्वारा किया गया। नीरज कुमार ने अपने अनुभव साझा किए और जो सही है उसके लिए खड़े होने के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “निर्भया मामले ने कई कानूनों और नियमों के कई पहलुओं को बदल दिया। यह देश के इतिहास में हुए सबसे भयानक अपराधों में से एक था। मैं यहां मौजूद युवा पीढ़ी को सुझाव देना चाहूंगा कि अगर आपने कुछ भी गलत नहीं किया है, तो हमेशा डटे रहें और कभी पीछे न हटें।”नीरज कुमार ने अपनी नवीनतम पुस्तक, ‘ए कॉप इन क्रिकेट’ के बारे में भी बात करी, जो क्रिकेट में मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग की दुनिया पर प्रकाश डालती है। प्रमथ राज सिन्हा द्वारा ‘लर्न डोंट स्टडी – लर्निंग एंड अनलर्निंग इन द 21 सेंचुरी’ विषय पर एक ज्ञानवर्धक सत्र भी आयोजित किया गया। सत्र का संचालन एचएस मान ने किया। प्रमथ राज सिन्हा ने अशोका यूनिवर्सिटी की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए भरोसेमंद मीडिया और लिबरल आर्ट्स शिक्षा के महत्व पर अपने विचार साझा किए।
इसके बाद ‘लव एंड रिबेलियन इन डिस्टोपिया – ए लिटरेरी एक्सप्लोरेशन’ शीर्षक वाले मनोरम सत्र में, लेखिका मोना वर्मा, हर्षाली सिंह और मानिक कौर ने अपनी अंतर्दृष्टि साझा की। हर्षाली सिंह ने प्यार और विद्रोह के बीच संबंध पर जोर दिया और बताया कि कैसे उनके संबंधित पात्र सवालों के माध्यम से बदलाव के लिए उत्प्रेरक हैं। मानिक कौर ने मीडिया और समय अवधि से परे प्रेम की सार्वभौमिक भाषा पर चर्चा की। मोना वर्मा ने महिला लेखकों की उभरती भूमिका पर बात करते हुए पुरुष लेखकों के ऐतिहासिक प्रभुत्व और आज के समय में महिला लेखकों की बढ़ती उपस्थिति के साथ साहित्य के अर्थ में परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया। डीडीएलएफ के दूसरे दिन विभिन्न कार्यशालाएं भी आयोजित हुईं, जिनमें नायाब मिधा द्वारा स्पोकन वर्ड पोएट्री पर ‘किंत्सुगी’ नामक एक कार्यशाला, और डॉ. मार्क एल्ड्रिज द्वारा डिटेक्टिव फिक्शन पर ‘द प्लॉट थिकनेस’ नामक एक कार्यशाला शामिल थीं। ‘द मिथिक टेपेस्ट्री ऑफ इंडियन एपिक्स’ नामक सत्र में डॉ. बिबेक देबरॉय और अक्षत गुप्ता वक्ता के रूप में मौजूद रहे, और इसका संचालन प्रशांत कोचर ने किया। डॉ. देबरॉय ने रामायण और महाभारत को इतिहास के रूप में संदर्भित करने की प्राचीन परंपरा पर प्रकाश डाला, जबकि अक्षत गुप्ता ने सात चिरंजीवियों के बारे में अपनी पुस्तकों की त्रयी पर चर्चा की, जिन्हें आज की पीढ़ी अक्सर नजरअंदाज कर देती है।
शाश्वती तालुकदार द्वारा संचालित ‘द क्रिएशन ऑफ़ मॉडर्न सिटीज़’ नामक सत्र में स्वप्ना लिडल, मनदीप राय, लोकेश ओहरी और अनमोल जैन मौजूद रहे। इस सत्र में औपनिवेशिक आधुनिकता को आकार देने में भारतीयों की भूमिका, किसी स्थान के इतिहास में योगदान देने वाले नवागंतुकों की अवधारणा और मसूरी जैसे शहरों में स्थायी संरचनाएं के बारे में चर्चा हुई। डॉ. मंजिरी प्रभु का एक और सत्र ‘क्लैन्डस्टाइन एंड क्रॉनिकल्स: ए जर्नी इनटू द वर्ल्ड ऑफ डिटेक्टिव फिक्शन’ विषय पर आयोजित किया गया, जिसका संचालन मोना वर्मा ने किया। इसके बाद उद्यमशील रचनात्मक लीडर निर्मिका सिंह द्वारा ‘और सुनो’ शीर्षक से एक काव्य प्रदर्शन देखा गया। नायब मिधा, निर्मिका सिंह, अनामिका सिंह, महक गोयल और सौम्या कुलश्रेष्ठ की मौजूदगी में आयोजित ‘हरस्टोरी इन वर्स – सेलिब्रेटिंग वुमेन पोएट्स’ नामक सत्र को सभी उपस्थित लोगों से व्यापक सराहना मिली। सत्र के अंत में सभी कवयित्रियाँ ने अपनी रचनाएँ सुना कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। कनाडाई अभिनेत्री लिसा रे और श्रीमोई पिउ कुंडू का ‘बियॉन्ड कैंसर – ए रे ऑफ ट्रायम्फ’ पर एक सत्र आयोजित किया गया। अपने सम्बोधन के दौरान लिसा ने बताया कि कैसे कैंसर ने उनका जीवन बदल दिया। उन्होंने कहा कि उनकी स्टेम सेल सर्जरी के दौरान उन्होंने मौत को करीब से देखा और ठीक होने पर पुनर्जन्म लेने जैसा महसूस हुआ। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि कैंसर के साथ जीना कैसा होता है, इस बारे में ब्लॉग लिखने के बाद उनकी यात्रा ने दूसरों की मदद कैसे की।
डीडीएलएफ के दूसरे दिन कई और सत्र आयोजित किए गए, जिनमें अविनाश दास, अमित राय और प्रशांत कश्यप द्वारा ‘रेटिंग्स रीकॉन्सिडर्ड – बॉलीवुड एंड बियॉन्ड’, आलोक लाल, मानस लाल, और सिद्धांत अरोड़ा द्वारा ‘फ्रॉम हेडलाइनर्स टू बेस्टसेलर्स – व्हेयर रियलिटी मीट्स फिक्शन’, मानसी जावेरी, संदीप बेदी, खुशबू ग्रेवाल और ज्योतिका बेदी द्वारा ‘रेजिंग ह्यूमन, गेटिंग इट राइट – पेरेंट्स ऑफ आउटलाइनर्स’, सौरभ द्विवेदी और अदिति माहेश्वरी गोयल द्वारा ‘गेटिंग इट राइट – पेरेंट्स ऑफ आउटलाइनर्स’, और डीजीपी अशोक कुमार, नेहा जोशी, प्रियल भारद्वाज, धारा पांडे और आरुषि जैन द्वारा ‘वॉयस ऑफ चेंज – इंस्पायरिंग यूथ फॉर ए सेफ एंड सिक्योर भारत’ नामक सत्र आयोजित हुए। पुरूषोत्तम अग्रवाल, चंदन सिन्हा और रणधीर अरोड़ा द्वारा ‘कबीर – द कंटेम्पररी’ विषय पर एक आकर्षक सत्र भी आयोजित हुआ। सत्र के दौरान, पुरूषोत्तम ने कबीर की समकालीन प्रासंगिकता पर चर्चा की और इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे कबीर द्वारा जीवन के अर्थ की खोज का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उन्होंने बताया कि अधिकांश लेखकों के विपरीत, कबीर के ज्ञान और अनुभवों को उनके छंदों में खोजा जा सकता है। जो चीज़ कबीर को सबसे अलग बनाती है वह उनकी आजीवन आत्मज्ञान की यात्रा है। दूसरे दिन का समापन हयात रीजेंसी रिज़ॉर्ट एंड स्पा में प्रसिद्ध कवि वसीम बरेलवी और रणवीर चौहान द्वारा ‘उर्दू अदब और वसीम बरेलवी – एक मुलाक़ात’ नामक एक प्रतीक्षित सत्र से हुआ। इस सत्र का संचालन सिद्धार्थ शांडिल्य द्वारा किया गया। वसीम बरेलवी ने अपनी विचारोत्तेजक रचनाएँ सुनाकर मौजूद सभी के दिलों पर एक अमिट छाप छोड़ी। डीडीएलएफ के संस्थापक और निर्माता समरांत वीरमानी ने कहा, “29 अक्टूबर को डीडीएलएफ के तीसरे और आख़िरी दिन हिंडोल सेनगुप्ता, इम्तियाज़ अली, शोभिता धूलिपाला, अशोक चक्रधर, मुजफ्फर अली सहित कई जाने माने लेखक और मशहूर हस्तियां शामिल होंगी।”
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