उपेक्षित पड़े पर्यटन स्थलों को गुलजार करेगा पर्यटन विभाग 

चम्पावत: ऐतिहासिक और धार्मिक सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध उत्‍तराखंड के चम्पावत जनपद को मिनी स्विटजरलैंड कहा जाता है। यहां यत्र तत्र पर्यटन स्थलों की भरमार है। चंद राजाओं की राजधानी चम्पानगरी हो या फिर लोहाघाट में स्वामी विवेकानंद की ध्यान और तपस्थली अद्धैत आश्रम मायावती अथवा अंग्रेजों द्वारा बसाया गया एबटमाउंट ये सभी पर्यटन स्थल देशी और विदेशी सैलानियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करते हैं। चम्पावत स्थित एक हथिया नौला, बालेश्वर मंदिर समूह, गुरुगोरखनाथ धाम, लोहाघाट के सुई का प्रसिद्व आदित्य महादेव मंदिर, विसुंग का बाणासुर किला, सूखीढांग का श्यामलाताल, टनकपुर का मां पूर्णागिरि का धाम ऐसे पौराणिक और ऐतिहासिक स्थल हैं जहां धार्मिक आस्था रखने वाला हर व्यक्ति एक बाद जाना चाहता है। प्राकृतिक सुंदरता के लिहाज से चम्पावत नगर बांज और देवदार के घने जंगलों के बीच शोभायमान है तो लोहाघाट नगर की सुंदरता में देवदार के पेड़ चार चांद लगाते हैं। इसके अलावा बाराकोट, और पाटी ब्लाक में चीड़ और बांज के पेड़ प्राकृतिक सुंदरता में और अधिक इजाफा करते हैं। मैदानी क्षेत्र का मुख्य पड़ाव स्थल टनकपुर में कलकल करता मां शारदा नदी का शोर भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रहता। मनोरम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण, ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक स्थलों से अपने आप को समेटे किाली कुमाऊं के नाम से प्रसिद्ध जनपद चम्पावत हर वक्त पर्यटकों के स्वागत के लिए तैयार है। यहां न केवल पर्यटकों को हर मोड़ पर प्रकृति की प्राकृतिक रचना के दीदार होते हैं बल्कि पंचेश्वर की महाकाली नदी में रॉफ्टिंग व एंगलिंग का आनंद उठाने का भी अवसर मिलता है।

जिले के पर्यटक स्थलों को विकसित करने के लिए पर्यटन विभाग ने पहल शुरू कर दी है। यात्रों मार्गों पर हट बनाने के साथ पेयजल आदि की व्यवस्था की जा रही है। गुरु गोरखनाथ धाम, एबटमाउंट, बाणासुर किला आदि जगहों में पर्यटन विभाग, बीएडीपी और संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की ओर से पैसा खर्च किया जाएगा। इसके लिए दो करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत हो चुकी है तथा डेढ़ करोड़ से अधिक के प्रस्ताव भेजे गए हैं। इसके अलावा श्यामलाताल को विकसित करने के लिए लाखों रुपये के प्रस्ताव भेजे गए हैं। मां पूर्णागिरि धाम में रोप वे का निर्माण भी जल्द शुरू होने की उम्मीद है। जिला पर्यटन अधिकारी लता बिष्ट ने बताया कि अधिकांश जगहों पर अक्टूबर माह से काम शुरू हो जाएंगें।

पर्यटक चम्पावत जनपद में इन स्थलों का कर सकते हैं दीदार 

देवदार बनी से आच्छादित लोहाघाट नगर लोहावती नदी के किनारे बसा है। लोहाघाट को जनपद चम्पावत का हृदयस्थल भी कहते हैं। इसके चारों ओर देवीधार, फोर्ती, मायावती, एबटमाउंट, मानेश्वर, बाणासुर का किला, झूमाधूरी आदि विशेष धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल स्थित है। लोहाघाट के लिए टनकपुर से आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां से रोजाना रोडवेज की बसें और प्राइवेट टैक्सियां चलती रहती हैं। इसके अलावा यहां हल्द्वानी के रास्ते बाया देवीधुरा होते हुए भी पहुंचा जा सकता है।  बारिश समाप्त होने के बाद सितंबर केदूसरे सप्ताह से यहां का मौसम काफी सुहावना हो जाता है।

रीठासाहिब गुरुद्वारा

लोहाघाट से 62 किमी दूर स्थित गुरुद्वारा रीठासाहिब मीठे रीठे के लिए प्रसिद्ध है।  यहां चौथी उदासी के समय सिक्खों के पहले गुरु गुरु नानक देव जी अपने प्रिय शिष्ट बाला तथा मरदाना के साथ आए थे। उन्होंने यहां रह रहे सिद्धों के साथ शास्त्रार्थ कर उन्हें पराजित किया था। यहां सिक्खों का ऐतिहासिक गुरुद्वारा है जहां प्रतिवर्ष जोड़ मेले का आयोजन किया जाता है। चारों और हरियाली से लहलहाते खेत और लधिया तथा रतिया नदियों का कल कल करती ध्वनि पर्यटकों को शांति का एहसास कराती है। रीठासाहिब एक कस्बा है जहां चारों ओर बसे गावों में कई अन्य प्राकृतिक स्थलों के भी दीदार हो सकते हैं।  यहां भी बाया हल्द्वानी या फिर टनकपुर के रास्ते रोडवेज की बसों, प्राईवेट वाहनों के माध्यम से आया जा सकता है।

एबट माउंट 

अंग्रेजी हुकूमत के दौरान आठ दशक पूर्व नगर के आठ किमी दूर सात हजार फिट की उंचाई पर स्थित एबट माउंट की खोज अंग्रेज जान हैराल्ड एबट ने की थी। एबट नामक अंग्रेज ने ऊंची चोटी में लगभग पांच सौ 86 एकड़ जमीन लीज पर लेकर वहां13 कोठियां बनाई थी। यहां एक खूबसूरत मैदान है जहां जिला स्तर तक की क्रिकेट प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं। यहां से नंदा देवी, त्रिशूल, नंदाघुती और नंदादेवी जैसे हिमालय की चोटियों के दर्शन आसानी से किए जा सकते हैं। सुबह के समय उगते सूरज का दृश्य काफी मनोहारी होता है। यहां जाने के लिए लोहाघाट से टैक्सियां किसी भी वक्त आसानी से मिल जाती हैं।

अद्धैत आश्रम मायावती 

लोहाघाट से नौ किमी दूर बांज व बुरांश के घने जंगल के बीच आच्छादित अद्वैत मायावती आश्रम योग साधना के लिए अद्भुत केंद्र है। इस आश्रम की स्थापना स्वामी विवेकानंद के अंग्रेज शिष्य कैप्टन जेएच सेवियर व उनकी धर्म पत्नी सीई सेवियर ने की थी। तीन जनवरी 1901 को स्वामी विवेकानंद जी खुद आश्रम आए थे और 15 दिनों तक यहां रूके थे। जिसके बाद यह जगह तीर्थ स्थान बन गई। आश्रम में ध्यान केंद्र और उसके आस पास सुंदर देवदार और बांज के जंगल देखने लायक हैं।  यहां पुस्तकालय भी है जहां विवेकानंद साहित्य उपलब्ध रहता है। यहां लोहाघाट से टैक्सियों के सहारे पहुंचा जा सकता है।

देवीधुरा का मां वाराही मंदिर 

लोहाघाट से करीब 45 किमी की दूरी पर देवीधुरा में मां वाराही का पवित्र धाम स्थित है। इस धाम का संबंध पौराणिक है। कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से आने वालों की हर मुराद पूरी होती है। यहां रक्षाबंधन के दिन विश्व प्रसिद्ध बग्वाल खेली जाती है। यहां बना भव्य मंदिर, गुफा और भीम शिला देखने लायक है। यहां पहुंचने के लिए बाया हल्द्वानी या फिर टनकपुर के रास्ते निजी वाहनों और टैक्सियों से आया जा सकता है।

वाणासुर का किला 

लोहाघाट से करीब सात किमी दूरी पर विशुंग क्षेत्र में बाणासुर का किला स्थित है। समुद्र तल से 1859 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह किला प्राकृतिक सौंदर्य की मामले में बेहद समृद्ध है। वाणासुर किले से काली कुमाऊं क्षेत्र का विहंगम दृश्य दिखता है तथा हिमालय की पंचाचूली चोटी का सुंदर नजारा भी आसानी से देखा जा सकता है। यहां हल्द्वानी से बाया देवीधुरा या फिर टनकपुर के रास्ते आया जा सकता है। लोहाघाट से हर वक्त टैक्सियां लगी रहती हैं।

बालेश्वर धाम 

कूर्म पीठ चम्पावत में स्थित बालेश्वर धाम की स्थापना राजा बाली ने की थी और बाद में जिसका जीर्णोद्धार पांडव पुत्र भीम ने किया। सातवीं सदी में चंद वंश के पहले राजा सोम चंद ने विधिवत बालेश्वर मंदिर समूह की स्थापना की। यहां नौले के जल से स्नान करने और मंदिर के दर्शन मात्र से लोगों को निरोगी काया का वरदान मिलता है। बालेश्वर धाम कैलाश मानसरोवर यात्रा का मुख्य पड़ाव रहा है। यहां टनकपुर से रोडवेज की बसों अथवा टैक्सियों से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

श्यामलाताल

टनकपुर से चम्पावत की ओर लगभग 22 किमी दूरी पर स्थित श्यामलाताल एक प्राकृतिक झील है। श्यामलाताल कुमाऊं क्षेत्र में सबसे सुखी और आकर्षक झीलों में से एक है। यह जगह सभी आध्यात्मिक साधकों और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक शानदार स्थान है। जो समुद्र तल से 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। झील चारों ओर से बांझ, चीड़, देवदार, बुरांश सहित कई प्रकार की वन संपदा से आच्छादित ऊंचे पहाड़ों से घिरी हुई है। इस स्थान पर स्वामी विवेकानंद जी की ध्यान स्थली के रूप में विवेकानंद आश्रम भी स्थापित है। यहां पूर्व में पर्यटन विभाग ने आवासों का निर्माण कराया था लेकिन देखरेख की अभाव में यह खराब हो चुके हैं। यहां स्थित विवेकानंद आश्रम में रूका जा सकता है। श्यामलाताल पहुंचने के लिए जनपद के मैदानी क्षेत्र टनकपुर से निजी वाहन या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। टनकपुर-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर सुखीढ़ांग से पहले एक मार्ग श्यामलाताल की ओर जाता है।

मां हिंगला देवी

देवभूमि उत्तराखंड के चम्पावत जिले के दक्षिण में पहाड़ों की चोटी पर घने बांज के जंगलो के बीच स्थित है ङ्क्षहगलादेवी मंदिर। ङ्क्षहगलादेवी मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। प्राकृतिक छटा से घिरी मंदिर की चोटी से पूरे चम्पावत शहर के दर्शन किया जा सकता है। हिंगलादेवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस स्थान से माँ भगवती अखिल तारणी चोटी तक झूला (हिंगोल) झूलती थी, इसी वजह से इस स्थान को हिंगलादेवी कहा जाता है। मंदिर में पूजन करने से ऋद्धि-सिद्धि के साथ ही निसंतान दंपत्तियों की मनोकामना पूर्ण होती है। चम्पावत नगर से ललुआपानी रोड होते हुए ङ्क्षहगला देवी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा टनकपुर क्षेत्र से आने वाले लोग बनलेख से ललुआपानी मार्ग से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। मंदिर ललुवापानी से दो किमी पहाड़ी पर स्थित है।

इन धार्मिक व एतिहासिक स्थलों का भी उठा सकते हैं आंनद

धार्मिक पर्यटन में : टनकपुर स्थित श्री मां पूर्णागिरि धाम, चम्पावत स्थित गोल्ज्यू मंदिर, अखिलतारणी मंदिर, गुरू गोरखनाथ मन्दिर, ब्यानधूरा धाम,

साहसिक पर्यटन : रिवर राफ्टिंग घाट से पंचेश्वर (सरयू नदी), पंचेश्वर से बूम तक (काली/शारदा नदी), टै्किंग : चम्पावत-क्रांतेश्वर , एकहथिया नौला- मायावती आश्रम, चम्पावत-हिग्लादेवी, मंच-गुरूगोरख नाथ, चम्पावत-गौड़ी (जिम कार्बेट टै्रल), कर्ण करायत-वाणासुर किला, ब्यानधूरा टै्रक, माउण्टेन बाइकिंग : बर्ड वाचिंग एवं कैम्पिंग, चम्पावत स्थित चाय बागान।

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