मुंबई के ये किले बताते है मुंबई की अनसुनी कहानी

 मुंबई। मुंबई जो आज एक बड़ा शहर है पहले सात द्वीपों का समूह थाए जो बॉम्बे नाम से जाना जाता था। मराठाए मुगलए ब्रिटिशए पोर्तुगीज ऐसे विविध साम्राज्यों का अलग अलग कालों में यहाँ अमल रहा था। इन सभी राज्यकर्ताओं ने बॉम्बे की सरहदों को चारो ओर से किलों से संरक्षित किया था ताकि शत्रु के सम्भाव्य हमले का मुकाबला यह द्वीपसमूह आसानी से कर सके। इन किलों में से कुछ आज अवशेषों के रूप में जीवित है। इन्होने अपने जीवनकाल में मानवी और प्राकृतिक संकटों का डट कर मुकाबला किया और ये सभी वास्तु आज भी मुंबई के अतीत की कहानी को जीवित रखने का प्रयास कर रही है। इस लेखद्वाराए महाराष्ट्र पर्यटन  आपको रूबरू कराता है इन्ही दिलचस्प किलों से।

बॅसीन किला

सन १५३६ में पोर्तुगीजों ने ११० एकर के भव्य क्षेत्र में बॅसीन यानी वसई के किले का  निर्माण किया द्य  वसई का किला इंडो.युरोपियन संरक्षण स्थापत्य का सबसे बेहतर उदाहरण माना जाता  है  द्य  इस विशाल  किले  के  अंदर  ३ कॉन्व्हेंट्सए ६ चर्च और एक कैथेड्रल यानी प्रमुख चर्च हुआ  करता था द्य इतनाही  नहीं  बल्कि कई  सरकारी  और गैरसरकारी इमारतें जैसे  सेंट सेबास्टियन फोर्टए सेनेट हाऊसए टाऊन हॉलए फॅक्टरीए महाविद्यालयए ग्रंथालयए टकसाल और बाजार ये सब हुआ करता था द्य तक़रीबन ३०० साल यह किला पोर्तुगीजों का  राजकीयए व्यावसायिक और संरक्षण केंद्र था  द्य यहाँ  २४०० सैनिकए ३००सामान्य  नागरिकए कुछ राजघराने के लोग और कारीगरों की बस्ती थी द्य  

            सन १७३९ में पेशवा पहले बाजीराव के छोटे भाई चिमाजी अप्पा के नेतृत्व में  मराठा सेना ने यह  किला  जीत लिया और कई जगहों पर विजय चिन्ह स्थापन किए द्य इस किले पर स्थित एक मंदिर और एक मूर्ति इस विजय   की निशानी है द्य  सन १८०२ में ब्रिटिशों ने बॅसीन की संधि कर  मराठों से यह भूमि हासिल की द्य  बॅसीन किले के  दरबार का प्रवेशद्वार आज भी वसई के  रेमेडी चर्च में  संभालकर रखा गया है द्य इस  शहर जितने बड़े  किले का अधिकतम हिस्सा  अवशेष स्वरूप बचा हैए लेकिन कुछ वॉच टॉवर्स अंदरूनी  सीढ़ी.सोपान सहित अच्छी अवस्था में हैद्य बॉलिवूड के कई  गानों का  चित्रीकरण इस जगह पर हुआ है द्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत यह  वास्तू राष्ट्रीय संरक्षित वास्तू घोषित की गई है द्य

सायन किला

सन १६७७ और  १६९९ के बीच ब्रिटिश सरकार ने  ईस्ट इंडिया कंपनी के सहाय्य से  एक छोटीसी पहाड़ी पर इस किले का निर्माण किया द्य इस किले के उत्तर में एक अप्रवाही जल ;क्रीकद्ध के पार साल्सेट द्वीप और  दूसरी तरफ ब्रिटिशों के हिस्से का परेल द्वीप था द्य  सायन का किला इन दोनों की सीमा निश्चित करने में मददगार रहा द्य

           पूर्वीय तट का नयनरम्य दृश्य  सायन किले से दिखता है द्य किले पर जाने के लिए सुंदर पगडंडियाँ हैं द्य किले पर कुछ टूटी.गिरी  इमारतें और एक पुरानी तोप भी है द्य किले के नीचे पंडित जवाहरलाल नेहरू उद्यान है द्य किले की एक तरफ से थाने का लवण.पटल दिखता है द्य

  सायन  किला  ग्रेड १ हेरिटेज  स्ट्रक्चर के तहत दर्ज किया गया  है द्य  २००९ से इस किले के  पुनर्स्थापन का कार्य  शुरू हुआ था लेकिन  निधी न मिलने की वजह से यह काम अधूरी अवस्था में रोकना पड़ा द्य 

बेलापूर किला   

१५६०.१५७० में पोर्तुगीज से बेलापूर का क्षेत्र जीत कर जंज़ीरे के सिद्दी सल्तनत ने  पनवेल  क्रीक के  मुख के समीप बेलापूर का किला बनाया द्य  सन १६८२ में पोर्तुगीजों ने यह किला और सिद्दी  सल्तनत  का और भी हिस्सा फिर से जीता द्य  १७३७ में पेशवा सेनानी चिमाजी अप्पा के नेतृत्व में मराठा सेना ने पोर्तुगीजों के इस किले पर आक्रमण किया और उसे मराठा साम्राज्य में जोड़ लिया द्य  चिमाजी अप्पा ने इस आक्रमण से पहले प्रतिज्ञा की थी के अगर वह यह किला जीतते है तो वह पड़ौस में स्थित अमृतेश्वर भगवान को बिल्व के पत्तों का हार अर्पण करेंगे द्य बिल्व को मराठी में बेल कहा जाता है द्य इसी वजह से मराठों के विजय के बाद इस किले का नामकरण बेलापूर किया गया द्य  जून १८१७ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के  सैन्यदल ने  इस  किले पर नियंत्रण किया और मराठों का इस प्रान्त पर कोई अधिकार न हो इस हेतु किले का कुछ हिस्सा तहस.नहस कर दियाद्य  ऐसा कहते है के इस किले के अंदर एक सुरंग हुआ करती थी जो  एलिफंटा गुम्फा  के  लिए  सुप्रसिद्ध घारापुरी द्वीप तक पहुँचती थी  द्य   

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *