कुंभ में 14 अखाड़़ों की होगी पेशवाई, आइए जानते हैं इन अखाड़ों के बारे में

हरिद्वार। कुंभ का मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। इस मेले का आयोजन हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में किया जाता है। कुंभ में शामिल होने के लिए 14 अखाड़ों की पेशवाई भी निकाली जाती है। पेशवाई यहां अखाड़ों के कुंभ में धूमधाम से पहुंचने को कहते हैं। अब तक कुंभ में 13 अखाड़े शामिल होते थे लेकिन इस बार एक नए अखाड़े को शामिल किया गया है। आइए इन 14 अखाड़ों के बारे में जानते हैं और यह किन देवी-देवताओं की पूजा करते हैं।

श्रीनिरंजनी अखाड़ा:

श्रीनिरंजनी अखाड़ा की स्थापना 826 ई. में गुजरात के मांडवी में हुई थी। इनके ईष्ट देव भगवान शंकर के पुत्र कार्तिक हैं। इनमें दिगंबर, साधु, महंत व महामंडलेश्वर होते हैं। इनकी शाखाएं इलाहाबाद, उज्जैन, हरिद्वार, त्र्यंबकेश्वर व उदयपुर में हैं।

श्रीजूनादत्त या जूना अखाड़ा:

 जूना अखाड़ा की स्थापना 1145 में उत्तराखण्ड के कर्णप्रयाग में हुई थी। इसे भैरव अखाड़ा के नाम से भी जाना जाता है। इनके ईष्ट देव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं। इसका केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर माना जाता है। हरिद्वार में मायादेवी मंदिर के पास इनका आश्रम है। इस अखाड़े के नागा साधु जब शाही स्नान के लिए संगम की ओर बढ़ते हैं तो मेले में आए श्रद्धालुओं समेत पूरी दुनिया की सांसें उस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए रुक जाती हैं। इस अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज हैं।

श्रीमहानिर्वाण अखाड़ा:

श्रीमहानिर्वाण अखाड़ा की स्थापना 671 ई में हुई थी। कुछ लोगों का मत है कि इसका जन्म बिहार-झारखण्ड के बैजनाथ धाम में हुआ था, जबकि कुछ हरिद्वार में नीलधारा के पास मानते हैं। इनके ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं। इतिहास के अनुसार, सन् 1260 में महंत भगवानंद गिरी के नेतृत्व में 22 हजार नागा साधुओं ने कनखल स्थित मंदिर को आक्रमणकारी सेना के कब्जे से छुड़ाया था।

श्री अटल अखाड़ा:

 श्री अटल अखाड़ा को 569 ई. में गोंडवाना क्षेत्र में स्थापित किया गया। इनके ईष्ट देव भगवान गणेश हैं। यह प्राचीन अखाड़ों में से एक माना जाता है। इसकी मुख्य पीठ पाटन में है लेकिन आश्रम कनखल, हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन व त्र्यंबकेश्वर में भी हैं।

श्री आह्वान अखाड़ा:

श्री आह्वान अखाड़े की स्थापना 646 में हुई थी और 1603 में पुनर्संयोजित किया गया। इनके ईष्ट देव श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन दोनो हैं। इस अखाड़े का केंद्र स्थान काशी है। इसका आश्रम ऋषिकेश में भी है। इस समय स्वामी अनूप गिरी और उमराव गिरी इस अखाड़े के प्रमुख संतों में से हैं।

श्री आनंद अखाड़ा:

श्री आनंद अखाड़े की स्थापना 855 ई. में मध्यप्रदेश के बेरार में हुई थी। इसका केंद्र भी वाराणसी है। इसकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन में हैं।

श्री पंचाग्नि अखाड़ा:

इस अखाड़े की स्थापना 1136 में हुई थी। इनकी इष्ट देव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है। इनके सदस्यों में चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रह्मचारी, साधु व महामंडलेश्वर शामिल हैं। परंपरानुसार इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन व त्र्यंबकेश्वर में हैं।

श्री नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा:

गोरखनाथ अखाड़े की स्थापना 866 ई. में अहिल्या-गोदावरी संगम पर हुई थी। इस अखाड़े के संस्थापक पीर शिवनाथजी हैं। इनके मुख्य देवता गोरखनाथ हैं और इनमें बारह पंथ शामिल हैं। यह संप्रदाय योगिनी कौल नाम से प्रसिद्ध है और इनकी त्र्यंबकेश्वर शाखा त्र्यंबकंमठिका नाम से प्रसिद्ध है।

श्री वैष्णव अखाड़ा:

बालानंद अखाड़ा ई. 1595 में दारागंज में श्री मध्यमुरारी में स्थापित हुआ। समय के साथ इनमें निर्मोही, निर्वाणी, खाकी आदि तीन संप्रदाय बने। इनका अखाड़ा त्र्यंबकेश्वर में मारुति मंदिर के पास था। 1848 तक शाही स्नान त्र्यंबकेश्वर में ही हुआ करता था परंतु 1848 में शैव व वैष्णव साधुओं में पहले स्नान कौन करे इस मुद्दे पर विवाद हुआ। श्रीमंत पेशवाजी ने यह झगड़ा मिटाया। उस समय उन्होंने त्र्यंबकेश्वर के नजदीक चक्रतीर्थ पर स्नान किया। 1932 से ये नासिक में स्नान करने लगे। आज भी नासिक में ही इनका स्नान होता है।

श्रीउदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा:

उदासीन अखाड़े की स्थापना सन् 1910 में हुई थी। इस संप्रदाय के संस्थापक श्रीचंद्रआचार्य उदासीन हैं। इनमें उदासीन साधु, मंहत व महामंडलेश्वरों की संख्या ज्यादा है। इस अखाड़े की शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर, भदैनी, कनखल, साहेबगंज, मुलतान, नेपाल व मद्रास में हैं।

श्रीउदासीन नया अखाड़ा: इस अखाड़े की स्थापना सन् 1710 में हुई थी। इसे बड़ा उदासीन अखाड़ा के कुछ सांधुओं ने अलग होकर स्थापित किया था। इनके प्रवर्तक मंहत सुधीरदासजी थे। इनकी शाखाएं प्रयाग हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं।

श्रीनिर्मल पंचायती अखाड़ा:

निर्मल अखाड़ा की स्थापना सन् 1784 में हुई थी। श्रीदुर्गासिंह महाराज ने इसकी स्थापना की। इनकी ईष्ट पुस्तक श्री गुरुग्रन्थ साहिब है। इनमें सांप्रदायिक साधु, मंहत व महामंडलेश्वरों की संख्या बहुत है। इनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं।इसलिए 12 साल बाद लगता है कुंभ, सबसे पहले यह करते हैं स्नान

निर्मोही अखाड़ा:

निर्मोही अखाड़े की स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी। इस अखाड़े के मठ और मंदिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और बिहार में हैं। माना जाता है कि प्राचीन काल में लोमश नाम के ऋषि थे, जिनकी आयू अखंड है कहते है जब एक हजार ब्रह्मा समाप्त होते हैं तो उनके शरीर का एक रोम गिरता है। आचार्य लोमश ऋषि के ने भगवान शंकर के कहने पर गुरू परंपरा पर तंत्र शास्त्र पर आधारित सबसे पहले आगम अखाड़े की स्थापना की। इस अखाडे के साधू बहुत ही रहस्यमयी होते है, पूजा-ध्यान करते हुऐ वो भूमि का त्याग कर अधर मे होते हैं।

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