वनाग्नि की घटनाओं पर नियंत्रण को कारगर कदम उठाने की जरूरत

वनाग्नि की घटनाएं लगातार घटित हो रही हैं। आग लगने से जंगल धू-धू कर जल रहे हैं। जंगलों में आग लगने से हर वर्ष बेशकीमती वन संपदा जलकर नष्ट होती है। वनाग्नि की सबसे अधिक घटनाएं मार्च से जून तक दर्ज की जाती है। इस दौरान जमीन में बड़ी मात्रा में सूखी लकड़ी, वनस्पतियों के पत्ते, सूखी घास और खरपतवार होते हैं। मानवीय गतिविधियों के अलावा प्राकृतिक परिस्थितियों में, अत्यधिक गर्मी और सूखापन, और शाखाओं की रगड़ से बना घर्षण भी इस आग का पोषण करता है। दरअसल वनों की बढ़ती आग का एक प्रमुख कारण पृथ्वी का भू-तापन है। हमारी लापरवाही और वैश्विक इच्छाशक्ति की कमी ने तमाम संधियों पर हस्ताक्षर करने के बाद भी भू ताप को कम करने की दिशा में कोई ठोस कदम अभी नहीं उठाया है। वनाग्नि का एक अन्य प्रमुख कारण जाने-अनजाने में की गई लापरवाही भी है। भारत में जंगल की आग के सबसे आम प्रज्वलन स्रोत चराई, पिकनिक की गतिविधियों में की गई लापरवाही, खेती को स्थानांतरित करना, और बांज या चीड़ की पत्तियों को जलाना भी है।
जलते जंगलों की, पहाड़ों में लगने वाली आग का एक प्रमुख कारण पोपुलस, चीड़ के वृक्षों की अधिकता है। चीड़ और बांज की पत्तियों से आग की घटनाओं पर चिंतन अत्यंत आवश्यक है। इन पत्तियों का जमीन में फैलाव भी आग लगने के लिए उपयुक्त परिस्थितियां पैदा करता है। ऐसे में कुछ स्वयंसेवी संगठनों के चीड़ से बिजली बनाने जैसे लघु प्रयासों पर गौर करने की आवश्यकता है। कश्मीर में तो चीड़ के पेड़ों से प्राप्त स्प्रूस से बायोफ्यूल तक का निर्माण किया जा रहा है। उत्तराखंड में आरक्षित वनों का लगभग 42 प्रतिशत हिस्सा वनाग्नि के लिहाज से संवेदनशील है। पिछले एक दशक में वनाग्नि के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है। मैदानी इलाकों में तो आधुनिक यंत्र काम आ जाते हैं लेकिन पहाड़ों के दूरस्थ इलाकों में तो अभी भी परंपरागत तरीकों से ही वनाग्नि की घटनाओं को नियंत्रित किया जाता है। पहाड़ों में बनाई जाने वाली झापें ऐसी वनग्नि की घटनाओं को नियंत्रित करने का प्रभावी माध्यम है। इस संदर्भ में उत्तराखंड में, मिट्टी की नमी की कमी भी एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में देखी जा रही है। सूखेपन और सूखी पत्तियों पर बिजली गिरने या मानवीय गतिविधियों जैसे सूखी पत्तियों पर सिगरेट और बीड़ी के जलते हुए टुकड़े फेंकने से भी वनाग्नि शुरू होती हैं। जन, जंगल, जमीन और जानवरों के हकों की लड़ाई में जंगलों की सुरक्षा प्राथमिक सोपान है। अनेक प्रयासों के बाद भी जंगलों की आग पर, प्रभावी समय प्रबंधन की कमी साफ झलकती है। जंगल बचाओ जैसी योजनाओं के सुचारू क्रियान्वयन के लिए यह आवश्यक है कि गर्मियों का सीजन आने से पहले ही प्रभावी तंत्र विकसित किया जाए। यह भी आवश्यक है कि वानग्नि प्रभावित क्षेत्रों में कम्युनिटी सैनिकों की अवधारणा को समुचित साधनों के साथ बढ़ावा दिया जाए। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मदद से ऐसे हॉटस्पॉट्स का चिहनीकरण और मानचित्रण हमारी पहली प्राथमिकता होना चाहिए। नीतिगत फैसलों में देरी, तेजी से फैलती वनों की आग का एक और कारण है। वन समवर्ती सूची के विषय है लेकिन वनों को बचाने के लिए जिस तरह का प्रशिक्षण और सामग्री तंत्र हमें नदारद मिलता है वह केंद्र और राज्य दोनों की ज़िम्मेदारी है। जंगलों की आग को रोकने के लिए किए गए तमाम नागरिक प्रयासों पर गंभीर चिंतन आज वक्त की मांग है। वनाग्नि के प्रबंधन के लिए बजट की कमी को दूर कर जहां नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन में सहायता मिल सकती है वहीं सामुदायिक जागरूकता से काफी हद वनाग्नि को नियंत्रित किया जा सकता है।
दुनिया के कई हिस्सों में भीषण आग से लगने से धरती पर जंगलों का सफाया हो रहा है। पिछले कुछ सालों से गर्मी के कारण कई देशों में जंगलों के एक बड़े हिस्से में आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं। इन घटनाओं से अब तक सैकड़ों किलोमीटर के जंगल जलकर खाक हो गए हैं। जंगल की आग या वनाग्नि के पीछे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को एक बड़ा कारण माना जा रहा है। जलवायु परिवर्तन से जूझ रही दुनिया को जंगल की धधकती आग ने और बड़े संकट में डाल दिया है। जंगल ही हमें सांस लेने के लिए साफ हवा देते हैं, इसलिए जंगल में आग (वनाग्नि) लगने की लगातार हो रही घटनाओं से जीवों के लिए संकट खड़ा हो गया है। जंगलांे में आग लगने की घटनाओं ने भारत समेत दुनिया भर के जलवायु परिवर्तन पर्यावरणविदों और संरक्षणवादियों को चिंता में डाल दिया है। जंगल में धधकती आग पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है।
जंगलों में अनियंत्रित रूप से फैलने वाली आग को वनाग्नि या जंगल की आग कहा जाता है। इसमें पौधे, जानवर, घास के मैदान, जो भी उसके रास्ते में आते हैं सब जलकर राख हो जाते है। जंगलों में चलने वाली तेज हवा के कारण यह आग अनियंत्रित होकर बड़े भू-भाग में फैल जाती है, जिससे वायु प्रदूषण का खतरा भी बढ़ जाता है। जंगल में लगने वाली आग आमतौर पर, लंबे समय तक जलती रहती है। इसका मुख्य कारण, जलवायु परिवर्तन होता है। यह आग जंगल में स्थित सूखी लकड़ियां या अन्य ज्वलनशील पदार्थ के कारण फैलती जाती है। कई बार जंगलों में लगने वाली आग का कारण बिजली गिरना या अत्यधिक सूखी लकड़ियां या पेड़ पौधों के सूखे पत्ते भी होते हैं। जंगल की आग के कारण हवा में मिलने वाली जहरीली कार्बन डाइऑक्साइड से मनुष्यों में फेफड़े और त्वचा में संक्रमण भी होता है।

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