#महासर #ताल की प्राकृतिक सौंदर्यता खींच लाती है पर्यटकों को

देहरादून, #गढ़ संवेदना न्यूज। महासर ताल टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है। भिलंगना नदी का उद्गम स्थल महासर ताल का महत्वपूर्ण स्रोत है। झील घने जंगल से घिरी हुई है। इस झील की यात्रा का सबसे अच्छा समय जून से सितंबर के बीच है। मनभावन महासर ताल के आसपास की मनोरम दृश्यावली इसे लोकप्रिय ट्रेक बनाती है। झील के आसपास के क्षेत्र में अल्पाइन हरी घास के मैदान हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘बुग्याल’ भी कहा जाता है। महासरताल बूढ़ाकेदार से करीब 10 किमी उत्तर की ओर लगभग दस हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर, भिन्न भिन्न प्रजातियों एवं दुर्लभ वृक्षों की ओट में स्थित है। केदार हिमालय में नाग जाति के रहने के पुष्ट प्रमाण मिलते हैं। गढ़वाल में नागराजा का मुख्य स्थान सेम मुखेम माना जाता है, इसी संदर्भ में नागवंश में महासरनाग का विशिष्ट स्थान है। जो कि बालगंगा क्षेत्र में महत्वपूर्ण देवता की श्रेणी में गिना जाता है। महासर नाग का निवास स्थान महासरताल है। धर्म गंगा और बाल गंगा नदी के संगम पर बसे बूढ़ाकेदार से करीब 7 किमी घडियाल सौड तक सडक मार्ग से पहंुचा जाता है और यहां से 8 किमी की खड़ी चढ़ाई को पार कर जंगलों के बीच में ये खूबसूरत ताल स्थित है। इसका कैचमेंट क्षेत्र बुग्याल और जंगल है, जिससे वर्ष भर इसमें पानी रहता है। हर साल इस ताल में बूढ़ा केदार क्षेत्र के थाती कठूड पट्टी के सात गांव महासर नाग देवता की पूजा अर्चना के लिए आते हैं। महासर नाग देवता इस इलाके के प्रमुख देवता है जिन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है। लोक मान्यता है कि बूढ़ाकेदार क्षेत्र में सूखा और अतिवृष्टि होती है तो ग्रामीण महासर नाग देवता की डोली लेकर हिमालय में स्थित महासर नाग के मंदिर और ताल में पहुंचते हंै। यहां सात गांव के लोग और ढोल वाद्य यंत्र लेकर डोली को महासर ताल में स्नान कराते हैं। देवता की पूजा अर्चना के बाद क्षेत्र में सूखा होने पर वर्षा होती है और अगर अतिवृष्टि होती है तो फिर बारिश रुक जाती है। हर तीन साल में देवता को यहां लाया जाता है जबकि प्रत्येक वर्ष गंगा दशहरा के मौके पर महासर ताल में आस्था की डुबकी लगाने के लिए आस पास के दर्जनों गांवों के ग्रामीण आते हैं। महासरताल करीब 80 मीटर लम्बा और 30 मीटर चैड़ा है। गंगा दशहरा के दिन बूढ़ा केदार क्षेत्र के करीब 60 गांव के लोग यहां देवता की डोली के आगमन पर आते हंै। झील की गहराई का आज तक पता नहीं चला है। महासरताल के बगल में करीब 25 मीटर की दूरी पर दूसरा ताल है जिसे स्थानीय लोग महारणी ताल कहते हैं। लोक मान्यता है कि ये दोनों झील नाग नागिन हैं और इन्हें भाई बहन भी कहा जाता है।
लोक मान्यता के अनुसार करीब तेरह सौ वर्ष पूर्व मैकोटकेमर में धुमराणा शाह नाम का राजा राज्य करता था, इनका एक ही पुत्र हुआ जिनका नाम था उमराणा शाह, जिसकी कोई संतान न थी। उमराणा शाह ने पुत्र प्राप्ति के लिए शेषनाग की तपस्या की। उमराणा शाह तथा उनकी पत्नी फुलमाला की तपस्या से शेषनाग प्रसन्न हुए और मनुष्य रूप में प्रकट होकर उन्हें कहा कि मैं तुम्हारे घर में नाग रूप में जन्म लूँगा। फलतः शेषनाग ने फुलमाला के गर्भ से दो नागों के रूप में जन्म लिया जो कि कभी मानव रूप में तो कभी नाग रूप में परिवर्तित होते रहते थे। नाग का नाम महासर (म्हार) तथा नागिन का नाम माहेश्वरी (म्हारीण) रखा गया। उमराणा शाह की दो पत्नियां थी। दूसरी पत्नी की कोई संतान न थी। सौतेली मां की कूटनीति का शिकार होने के कारण उन नाग व नागिन (भाई बहिन) को घर से निकाल दिया गया। फलस्वरूप दोनो भाई बहिन ने बूढ़ाकेदार क्षेत्र में बालगंगा के तट पर विशन नामक स्थान चुना। विशन में आज भी इनका मन्दिर विध्यमान है। इन नागों ने मनुष्य रूप में अवतरित होकर भट्ट वंश के पुरखों से वचनबद्ध हुए कि तुम हमारी परम्परा के अनुसार मन्दिर में पूजा करोगे। आज भी इस परम्परा का निर्वहन विधिवत किया जा रहा है, यानि भट्ट जाति के लोग नाग की पूजा अनवरत् रूप में करते आ रहे हंै। उल्लेखनीय है कि इन भट्ट पुजारियों के पास महाराजा सुदर्शनशाह द्वारा नागपूजा विषयक दिया गया ताम्रपत्र सुरक्षित है। बालगंगा क्षेत्र के राणा जाति के लोगों को ‘नागवंशी राणा’ कहा जाता है (दूसरा वंश सूर्यवंशी कहा जाता है)।
विशन गाँव के अतिरिक्त नागवंशी दोनों भाई बहन ने एक और स्थान चुना जो विशन गाँव के काफी ऊपर है जिसे ‘महसरताल’ कहते हंैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसे नाग विष्णु स्वरूप जल का देवता माना जाता है और नाग देवता का निवास जल में ही होता है। अतः इस स्थान पर दो बड़ी झील हंै जिन्हे ‘म्हार’ और ‘म्हारीणी’ का ताल कहा जाता है। कहते है नागवंशी दोनों भाई बहिन इन्ही दो तालों में निवास करते हंै। महासरताल में ‘म्हार’ देवता का एक पौराणिक मन्दिर है जिसके गर्भगृह में पत्थर का बना नाग देवता है। गंगा दशहरा के अवसर पर महासरनाग की मूर्ति (नागदेवता) मूल मन्दिर विशन से डोली में रखकर महासरताल स्नान के लिए ले जायी जाती है। इस पुण्य पर्व पर माहासरनाग को मंत्रोंच्चार के साथ वैदिक रीति से स्नान कराकर यज्ञ, पूजा-अर्चना आदि करायी जाती है। इस अवसर पर दूर-दूर से श्रद्धालू आकर इस ताल में स्नान कर पुण्य कमाते हंै। गंगा दशहरा को लगने वाला यह मेला प्राचीनकाल से चला आ रहा है।

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