परियों के देश खैट पर्वत को सरकार नहीं दिला पाई पहचान

देहरादून, गढ़ संवेदना न्यूज। परियों के देश के नाम से प्रसिद्ध खैट पर्वत को पर्यटन विभाग पहचान नहीं दिला पाया है, जिस कारण यह रहस्यमयी पर्वत रोमांच और पर्वतारोहण के शौकीनों की नजरों से दूर है। समुद्र तल से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित खैट पर्वत पर थात गांव से छह किमी की पैदल दूरी तय करके पहुंचा जाता है। खैट पर्वत अनोखी कहानियों और रहस्यमयी दुनिया अपने आप में समेटे है। लेकिन, पर्यटन विभाग इस खजाने को पर्यटन मानचित्र पर स्थान नहीं दिला पाया है। स्थानीय लोग खैट को परियों का देश भी कहते हैं। मान्यता है कि यहां पर मां दुर्गा ने मधु-कैटव दानव का वध किया था, जिसके बाद कैटव का अपभ्रंश होकर यह खैट हो गया। यहां पर माता का मंदिर है और हर वर्ष पूजा व भंडारे का आयोजन किया जाता है। लेकिन, यहां पर पर्यटन बढ़ाने के लिए सुविधाओं की भारी कमी है। पर्यटन विभाग यहां पर पानी की सुविधा तक उपलब्ध नहीं करा पाया है। पर्वत की चोटी तक पहुंचने का रास्ता भी सही नहीं है और पर्यटकों के रुकने के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है।
देवलोक से भू.लोक तक रमण करने वाली ये परियां हिमालय क्षेत्र में वनदेवियों के रूप में जानी जाती हैं। गढ़वाल क्षेत्र में वनदेवियों को आछरी-मांतरी के नाम से जाना जाता है। कठित भौगोलिक परिस्थितियों के बीच किसी प्राकृतिक आपदा व अनर्थ से बचने के लिए पहाड़वासी वनदेवियों को समय-समय पर पूजते हैं, इससे ये वनदेवियां खुश रहती हैं। टिहरी जिले में स्थित खैट पर्वत पर्यटन व तीर्थाटन की दृष्टि से मनोरम है। खैट पर्वत समुद्रतल से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। खैट पर्वत के चरण स्पर्श करती भिलंगना नदी का दृश्य देखते ही बनता है। खैट गुंबद आकार की एक मनमोहक चोटी है। इस चोटी में मखमली घास से ढका एक खूबसूरत मैदान है। जहां से दृष्टि उठाते ही सामने क्षितिज में एक छोर तक फैली हिमचोटियों के भव्य दर्शन होते हैं।
आसपास दूर-दूर तक कोई दूसरा पर्वत शिखर न होने से यह इकलौता लघुशिखर अत्यंत भव्य मैदान पर पहुंचकर ऐसा आभास होता है मानों हम वसुंधरा की छत पर पहुंच गए हैं। दिल इस पर्वत शिखर से लौटने की अनुमति आसानी से नहीं देता है। खैट से दिखने वाले प्रमुख हिमशिखरों में बंदरपूंछ, गंगोत्री, स्वर्गारोहणी, यमुनोत्री, भृगुपंथ, सत्तापंथ, त्रिशुलए चैखंबा, हाथी पर्वत, स्फाटिक जौली, खतलिंग आदि शामिल हैं। टिहरी जिले की आरगढ़, गोनगढ़, केमर पट्टी व भिलंगना घाटी का वृहद क्षेत्र यहां से दृष्टिगोचर होता है। 10, 000 फिट उंचाई की पर्वत श्रृंखला खैट पर्वत में परियों का वास है क्योंकि बागड़ी गॉवके जीतू बगडवाल व साली भरूणा का प्रेम प्रसंगए जीतू की बांसुरी व परियों द्वारा दिन दहाड़े खेतों में धान की रोपाई करते हुए हल बैल सहित जीतू बगड्वाल के हरण की गाथा अभी ज्यादा पुरानी नहीं हुई है। थात गॉव से 5 किमी दूरी पर स्थित खैट खाल मंदिर है रहस्यमयी शक्तियों का केंद्र है। इस मंदिर में पूजी जाने वाली नौ देवियों जिन्हें स्थानी लोगों द्वारा आछरी नाम दिया गया है। कहा जाता है कि ये नौ देवियाँ बहन है और ये देवियाँ अदृश्य शक्तियों के रूप मे आज भी उस मंदिर मे स्थित है। इन देवियों की पूजा हेतु आए श्रद्धालुओं के लिए धर्मशालाएँ बनाए गए हैं। कुछ बातें यहाँ की शक्तियों को स्वयं ही बयान करती है जैसे की उत्तराखंड मे अनाज को कुटने के लिए बनाई गई ओखली जिसे उत्तराखंड के लोगों द्वारा उखल्यारी कहा जाता है वह उखल्यारी पारम्परिक रूप से जमीन पर बनाई जाती है परंतु यही उखल्यारी खैट मे जमीन पर नही बल्कि दीवारों पर बनी है। यहॉ कई फसलों की उपज होती है परंतु वे फसलें व फल भी केवल उस मंदिर के परिसर तक ही खाने योग्य होते हैं। मंदिर व वहाँ के परिसर के बाहर वे वस्तुएँ निरुपयोगी हो जाती है। कहा जाता है इन आछरियांे/परियों को जो लोग अच्छे लगते हैं वे उन्हें मूर्छित करके अपने लोक मे शामिल कर लेती हैं। इन सब बातों के कारण इस मंदिर की अपनी अलग ही विशेषताएँ हैं और ऐसी कई अन्य शक्तियाँ आज भी उत्तराखंड मे मौजूद है। इस वीराने में स्वत ही अखरोट और लहसुन की खेती भी होती है। अखरोट के बागान लुकी पीड़ी पर्वत पर मां बराडी का मंदिर गर्भ जोन गुफा है। भूलभुलैय्या गुफा जहां नाग आकृतियां उकेरी हुई हैं। अमेरिका की मैसाच्युसेट्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भी एक शोध में पाया है कि इन जगह पर अजीब सी शक्तियां निवास करती हैं। खैट पर्वत पर्यटन और तीर्थाटन की दृष्टि से मनोरम है। खैट गुंबद आकार की एक मनमोहक चोटी है। इसलिए विशाल मैदान में स्थित ये अकेला पर्वत अद्भुत दिखाई देता है।

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