51 शक्ति पीठों में से एक सुरकंडा देवी मंदिर 

देहरादून। प्रसिद्ध सुरकंडा देवी मंदिर टिहरी जनपद में सुरकुट पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है जो कि नौ देवी के रूपों में से एक है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठ में से है। इस मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है। यह मसूरी चंबा मोटर मार्ग पर धनोल्टी से 8 कि०मी० की दूरी पर पर स्थित है। जिला मुख्यालय नई टिहरी से 41 कि०मी० की दूरी पर चंबा मसूरी रोड पर कद्दुखाल नामक स्थान है जहाँ से लगभग 2.5 कि०मी० की दूरी पर सुरकंडा माता के मंदिर तक पहुंचा जाता है। सुरकंडा माता का मंदिर घने जंगल से घिरा हुआ है। प्रकृति का सुरम्य एवं सुन्दर वातावरण इस स्थान को पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहाँ से देहरादून, ऋषिकेश, चकराता, प्रतापनगर और चन्द्रबदनी के सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं। यहाँ विभिन्न प्रकार एवं रंगों के फूल एवं जड़ी बूटियाँ बहुतायत में पायी जाती है एवं पश्चिमी हिमालय के कुछ खूबसूरत पक्षी भी पाए जाते हैं। प्रत्येक वर्ष मई और जून के बीच अधिसंख्य तीर्थ यात्रियों के बीच यहाँ गंगा दशहरा का उत्सव हर्षाेउल्लास के साथ मनाया जाता है।

नव निर्मित सुरकंडा माता का मंदिर रोंसली के वृक्षों के बीच स्थित है जो कोहेरे के बीच अत्यंत सुंदर दिखाई देता है एवं वर्ष भर पर्यटकों एवं भक्तों से घिरा रहता है। सुरकंडा देवी मंदिर उत्तराखंड के सबसे ऊँचे शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है। इस मंदिर से उत्तर में त्रिशूल पर्वत, चौखंबा, नंदादेवी,बद्री केदार और गंगोत्री यमुनोत्री के शिखरों के भव्य दर्शन होते हैं। यहाँ से दून घाटी, मसूरी, नई टिहरी, चम्बा,कुंजापुरी,और चन्द्रबदनी के दर्शन भी होते हैं। यह मंदिर अत्यधिक ऊँचाई पर होने कारण शीतऋतु में यहाँ बर्फ गिरती रहती है। यह शीतकाल में अधिकांश हिमाच्छादित रहता है।केदारखंड व स्कंद पुराण के अनुसार राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था। यह स्‍थान समुद्रतल से करीब 3 हजार मीटर ऊंचाई पर है इस कारण यहां से बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री अर्थात चारों धामों की पहाड़ियां नजर आती हैं। इसी परिसर में भगवान शिव एवं हनुमानजी को समर्पित मंदिर भी है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि व गंगा दशहरे के अवसर पर इस मंदिर में देवी के दर्शन से मनोकामना पूर्ण होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने पिता दक्ष द्वारा किए यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण के चक्कर लगा रहे थे। इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें सती का सिर इस स्थान पर गिरा था, इसलिए इस मंदिर को श्री सुरकंडा देवी मंदिर कहा जाता है। सती के शरीर भाग जिस जिस स्थान पर गिरे थे इन स्थानों को शक्ति पीठ कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्ष द्वारा किए यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण के चक्कर लगा रहे थे। इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें सती का सिर इस स्थान पर गिरा था, इसलिए इस मंदिर को श्री सुरकंडा देवी मंदिर कहा जाता है।

सुरकंडा देवी मंदिर की एक खास विशेषता यह बताई जाती है कि भक्तों को प्रसाद के रूप में दी जाने वाली रौंसली की पत्तियां औषधीय गुणों भी भरपूर होती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन पत्तियों से घर में सुख समृद्धि आती है। क्षेत्र में इसे देव का दर्जा हासिल है। इसीलिए इस पेड़ की लकड़ी को इमारती या दूसरे व्यावसायिक उपयोग में नहीं लाया जाता। सुरकंडा देवी मंदिर की एक खास विशेषता यह बताई जाती है कि भक्तों को प्रसाद के रूप में दी जाने वाली रौंसली की पत्तियां औषधीय गुणों भी भरपूर होती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन पत्तियों से घर में सुख समृद्धि आती है। क्षेत्र में इसे देववृक्ष का दर्जा हासिल है। इसीलिए इस पेड़ की लकड़ी को इमारती या दूसरे व्यावसायिक उपयोग में नहीं लाया जाता। 

मां के दर्शन मात्र से समस्त कष्टों का निवारण होता है। जहां गंगादशहरे पर विशाल मेला लगता है और दूर-दूर से लोग मां के दर्शन करने मंदिर पहुंचते है। गंगादशहरे पर विशाल मेला लगता है और दूर-दूर से लोग मां के दर्शन करने मंदिर पहुंचते है। केदारखंड व स्कंद पुराण के अनुसार राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था। इस कारण ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से माता के दर्शन करने यहां आता है मां उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।केदारखंड व स्कंद पुराण के अनुसार राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था। इस कारण ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से माता के दर्शन करने यहां आता है मां उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मां के दरबार से बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ आदि सहित कई पर्वत श्रृखलाएं दिखाई देती हैं। मां सुरकंडा देवी के कपाट साल भर खुले रहते हैं। मां के दरबार से बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ आदि सहित कई पर्वत श्रृखलाएं दिखाई देती हैं। मां सुरकंडा देवी के कपाट साल भर खुले रहते हैं।

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