लोकतंत्र की आधारशिला मताधिकार

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यहाँ की संघीय सरकार प्रत्येक पाँच वर्ष के अंतराल पर चुनाव के माध्यम से चुनी जाती है। देश के नागरिक इस चुनावी प्रक्रिया में सीधे तौर पर भाग लेते हैं। भारतीय संविधान के अनुसार देश में नियमित, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव आयोजित करने का अधिकार निर्वाचन आयोग को प्राप्त है। चुनाव आयोजित करने एवं चुनाव के बाद के विवादों से संबंधित सभी विषयों को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 एवं लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है। राज्य के नागरिकों को देश के संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार चलाने के हेतु, अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने के अधिकार को मताधिकार कहते हैं। जनतांत्रिक प्रणाली में इसका बहुत महत्व होता है। लोकतंत्र की नींव मताधिकार पर ही रखी जाती है। इस प्रणाली पर आधारित समाज व शासन की स्थापना के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक वयस्क नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मत का अधिकार प्रदान किया जाय। जिस देश में जितने ही अधिक नागरिकों को मताधिकार प्राप्त रहता है उस देश को उतना ही अधिक जनतांत्रिक समझा जाता है। इस प्रकार हमारा देश संसार के जनतांत्रिक देशों में सबसे बड़ा है क्योंकि हमारे यहाँ मताधिकार प्राप्त नागरिकों की संख्या विश्व में सबसे बड़ी है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 एक सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को निर्वाचित सरकार के सभी स्तरों के चुनावों के आधार के रूप में परिभाषित करता है। सर्वजनीन मताधिकार से तात्पर्य है कि सभी नागरिक जो 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के हैं, उनकी जाति या शिक्षा, धर्म, रंग, प्रजाति और आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद वोट देने के लिए स्वतंत्र हैं। संविधान लागू होने के पूर्व भारत में 1935 के गवर्नमेंट ऑव इंडिया ऐक्ट के अनुसार केवल 13 प्रति शत जनता को मताधिकार प्राप्त था। मतदाता की अर्हता प्राप्त करने की बड़ी बड़ी शर्तें थीं। केवल अच्छी सामाजिक और आर्थिक स्थिति वाले नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया जाता था। इसमें विशेषतया वे ही लोग थे जिनके कंधों पर विदेशी शासन टिका हुआ था। अन्य पश्चिमी देशों में, जनतांत्रिक प्रणाली अब पूर्ण विकसित हो चुकी है, एकाएक सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार नहीं प्रदान किया गया था। धीरे धीरे, सदियों में, उन्होंने अपने सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार दिया है। कहीं कहीं तो अब भी मताधिकार के मामले में रंग एवं जातिभेद बरता जाता है। परंतु भारतीय संविधान ने धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत मानते हुए और व्यक्ति की महत्ता को स्वीकारते हुए, अमीर गरीब के अंतर को, धर्म, जाति एवं संप्रदाय के अंतर को, तथा स्त्री पुरुष के अंतर को मिटाकर प्रत्येक वयस्क नागरिक को देश की सरकार बनाने के लिए अथवा अपना प्रतिनिधि निर्वाचित करने के लिए मत (वोट) देने का अमूल्य अधिकार प्रदान किया है। संविधान लागू होने के बाद पिछले वर्षों में भारतीय जनता ने अपने मताधिकार के पवित्र कर्तव्य का समुचित रूप से पालन करके प्रमाणित कर दिया है कि उसे जनतंत्र में पूर्ण आस्था है। इस दृष्टि से भी भारतीय जनतंत्र का विशेष महत्व है। वोट देने का अधिकार किसी भी लोकतांत्रिक समाज में एक मौलिक अधिकार है। यह हमारे लोकतंत्र की आधारशिला है, जो नागरिकों को यह कहने का अधिकार देता है कि उन पर कौन शासन करता है और वे कैसे शासित होते हैं। वोट देने की क्षमता न केवल एक अधिकार है, बल्कि एक जिम्मेदारी भी है, क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि सभी नागरिकों की आवाज सुनी जाए और सरकार में उनके हितों का प्रतिनिधित्व किया जाए।
भारत के संविधान में वोट देने के अधिकार की गारंटी अनुच्छेद 326 के तहत दी गई है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि लोकसभा और प्रत्येक राज्य की विधान सभा के लिए चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगेय यानी, प्रत्येक व्यक्ति जो भारत का नागरिक है और जो उपयुक्त विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून के तहत या उसके लिए तय की गई तारीख पर 18 वर्ष से कम आयु का नहीं है और इस संविधान या बनाए गए किसी भी कानून के तहत अन्यथा अयोग्य नहीं है। गैर-निवास, मानसिक अस्वस्थता, अपराध या भ्रष्ट या अवैध आचरण के आधार पर उपयुक्त विधानमंडल द्वारा, ऐसे किसी भी चुनाव में मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का हकदार होगा। मतदान का अधिकार लोकतंत्र का एक मूलभूत पहलू है, और मतदान के अधिकार का इतिहास विभिन्न देशों में बहुत भिन्न होता है। वोट देने के अधिकार का इतिहास लंबा और विविध है। वोट देने का अधिकार दुनिया भर के कई नागरिकों के लिए कड़ी मेहनत से हासिल किया गया अधिकार रहा है, और वोटिंग अधिकारों का इतिहास अक्सर राजनीतिक और सामाजिक समानता के लिए व्यापक संघर्ष से निकटता से जुड़ा हुआ है। आज, कई देश मतदान के अधिकारों का विस्तार करने और यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना जारी रखते हैं कि सभी नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रिया में समान हिस्सेदारी मिले। इन प्रगतियों के बावजूद, वोट देने के अधिकार की अभी भी सार्वभौमिक गारंटी नहीं है। दुनिया भर के कई देश अभी भी लोगों के कुछ समूहों को या तो कानूनों के माध्यम से या भेदभाव और धमकी के माध्यम से वोट देने के अधिकार से वंचित करते हैं। यह अस्वीकार्य है, और यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए जाने चाहिए कि सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार हो और उनके वोट निष्पक्ष रूप से गिने जाएं। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के 20ए के अनुसार उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान करने के लिए शारीरिक रूप से उपस्थित होना आवश्यक है। विधेयक में विदेशी मतदाताओं को चुनाव संचालन नियम, 1961 में निर्धारित शर्तों के अधीन, अपनी ओर से वोट डालने के लिए एक प्रॉक्सी नियुक्त करने में सक्षम बनाने का प्रावधान किया गया है। विधेयक को बाद में 2018 में पारित किया गया, लेकिन 16 वीं लोकसभा के विघटन के साथ यह समाप्त हो गया। इसके बाद ईसीआई ने एनआरआई को डाक मतपत्रों के माध्यम से मतदान करने की अनुमति देने के लिए सरकार से संपर्क किया। डाक मतपत्र एक ऐसी प्रणाली के समान हैं जो पहले से ही सेवा मतदाताओं (संघ के सशस्त्र बलों का सदस्यय या उस बल का सदस्य जिस पर सेना अधिनियम, 1950 के प्रावधान लागू होते हैं) द्वारा उपयोग किया जाता है, जो इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित डाक मतपत्र प्रणाली है या ईटीपीबीएस। जहां तक भारत में कैदियों की बात है, तो वे लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अनुसार चुनाव में मतदान करने के हकदार नहीं हैं, जो कम से कम दो साल के कारावास की सजा काट रहे लोगों को अयोग्य घोषित करता है। इसका मतलब यह है कि जिन कैदियों को दो साल से कम जेल की सजा सुनाई गई है, उन्हें अभी भी वोट देने की अनुमति है। विचाराधीन कैदियों को भी चुनाव में भाग लेने से बाहर रखा जाता है, भले ही उनका नाम मतदाता सूची में हो। केवल निवारक हिरासत में रखे गए लोग ही डाक मतपत्रों के माध्यम से अपना वोट डाल सकते हैं। हाल के सुधारों में मतदाता व्यवहार पर शोध करने के लिए अधिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ-साथ नोटा विकल्प को शामिल किया गया है, जो मतदाताओं को किसी भी नामांकित उम्मीदवार का चयन न करने का विकल्प चुनने की अनुमति देता है।

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