’विचारधारा’ को तिलांजलि देती ’राजनीति’

देव कृष्ण थपलियाल
’’ये कैंसी राजनीति है, कैसी पार्टी और कैसे नेता हैं भई ? कल तक जिस पार्टी/नेताजी के लिए हम चंदा इकट्ठा करनें देहरी-देहरी जाकर, मर-मिटनें को तैयार थे, उनकी बातों को पत्थर की लकीर समझ बैठ जन-जन तक उसे पहुॅचानें में अपनें को धन्य समझ रहे थे, पता चला कि वे रातों-रात पार्टी और हमको ’’यूज एण्ड थ्रो’’ की भॉति छोडकर दूसरे दल में घूस गए हैं, यहीं नही उनमें जो परिवर्तन दिखा है, उसे देखकर अचरज हो रहा है, जिस नेता और पार्टी को कभी गाली देते हुए देखा, वो आज उसी पार्टी और नेता को देशभक्त और सच्चा जनसेवक बता बडी निर्लज्जा से नई दिल्ली के मंच से उनका गुणगान कर रहे हैं। नेता जी में आये इस परिवर्तन से हर कोई परेशान है, व्यथित हैं, जो लोग थोडा-बहुत देश और समाज की समझ रखतें, वे बडे निराश हैं ? कल तक जो पार्टी और प्रत्याशी के लिए जी जान लगानें की बात कर रहे थे, आज उन्हीं की गोद में बैठे हमारी पार्टी और प्रत्याशी को कोस रहे हैं ? उनकी जीत में अपनी उम्मीदों की आस लगाए रहे, हम दिन-रात उनकी खातिर अपनीं नींद हराम करते रहे, अपनों से दुश्मनी मोल ली सो अलग‘’ प्रदेश के एक जिला मुख्यालय में नेता जी नें कुछ घंटों में ऐसी पलटी, मारी कि एक सज्जन के माथे पर ये चिंता की लकीरें जाहिर हो गईं, ?
देवभूमि के नाम से विख्यात नवोदित राज्य उत्तराखण्ड की राजनीति में इतनीं गिरावट की उम्मींदें तो नहीं की जा सकतीं थी, अलबत्ता पूर्व राज्य उत्तर प्रदेश में इस तरह की घटनाऐं कभी-कभार देखनें-सुननें को जरूर मिलती थीं ! बिहार में कभी ’सुशासन बाबू’ की संज्ञा से जानें-जाने वाले मुख्यमंत्री नीतिश कुमार अब उन लोगों की चर्चा से भी बाहर हैं, जो थोडे उनमें ’आस्था’ रखते भी थे । उत्तराखण्ड में भी एक के बाद अनेको नेताजी का पार्टी छोडना, ये जाहिर करता है, कि राजनीति केवल ’सत्ता’ और ’शक्ति’ पर आश्रित हो कर रह गईं, लगता है, अब राजनीतिक दल, विचार, सिदान्त और नीतियों को तिलांजलि दे चूके हैं अब विचार धारा और सिंदान्तों के स्थान पर ’’अवसरवाद’’ ’’मौकापरस्ती’’ राजनीति का आधारभूत स्तम्भ हो गया है। ’’जनसेवा’’ जनता, गरीब अब राजनीति और सत्तावानों की फेहरिस्त में सबसे नीचे चले जा रहे हैं ? इस मामले में थोडा-बहुत सूचिता कम्युनिस्ट दलों में जरूर है ।
कॉग्रेस पार्टी की ओर से आम चुनाव में दमखम दिखानें के लिए जिस प्रत्याशी को चुनाव हुआ था, उनकी निष्ठा भी रातों-रात ’भाजपा’ के लिए लालायित हो गईं श्री मनीष खण्डूरी राज्य के बडे नेता ईमानदार छवि के पूर्व मुख्यमंत्री श्री भुवन चंद्र खंण्डूरी के पूत्र हैं । निःसंदेह पूत्र को पिता की छवि का कोई स्मरण नहीं रहा ? कॉग्रेस पार्टी को आनन-फानन में अपनें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष श्री गणेश गोदियाल को मैदान में उतारना पडा, वकौल गोदियाल ’चुनाव’ लडनें के लिए तैयार नहीं थे, अगर पूर्व में चुनाव लडनें की बात होतीं तो वे अपनीं मनःस्थिति चुनाव के लिए तैयार करते ? गढवाल के ह्दय स्थल श्रीनगर नगर पालिका की अध्यक्षा व उनके पति तिवाडी दंपति नें ऐंन चंुनावों मध्य में पाला बदला तो किसी को भी समझ में नहीं आया कि कौंन सी मजबूरियों के चलते इस दंपत्ति नें यह कदम उठाया ? 2022 के राज्य विधान सभा चुनावो के रण में हार का मुॅह देखनें वालीं एक बडे राजनीतिक परिवार की बहु को अचानक देश के प्रधानमंत्री की विकासवादी सोच पर पंसद आ गईं, और उन्होंनें तुरंत अपना पाला बदल लिया , आज वो भारत सरकार और उत्तराखण्ड की सरकार की मुरीद हैं। अब उस ई0डी0 और सी0बी0आई की कार्यवाही का क्या होगा ? कहना मुश्किल है ? ये नेतागण अपनीं सफाई में कुछ भी कह लें लेकिन राज्य की राजनीति के दागदार चेहरे ही कहलायेंगें ? अब वे दिन दूर नहीं जब राजनीति में ’’विचारधारा’’ की जगह अवसरवाद हावी हो जायेगा ? यानीं की जहॉ ’सत्ता’ पैसा और ताकत, होगीं नेता जी वहीं पाला बदलेंगें ।
पिछले दिनों कॉग्रेस के राष्ट्रीय नेता सुरेश पचौरी, फिल्म अभिनेता व पूर्व कॉग्रेस सांसद गोविंदा, हरियाणा सरकार में पूर्व मंत्री सावित्री जिंदल, ओडिशा की सत्तारूढ बीजू जनता दल के संस्थापक सदस्य व कटक से सांसद भतृहरि महताब भी अपनीं पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्याग पत्र दे चुके हैं। दिल्ली प्रदेश में आम आदमी पार्टी आप को प्रमुख प्रतिद्वंदी मानकर उसके साथ जिस तरह का बर्ताव किया जा रहा है वह निःसंदेह लोकतांत्रिक मुल्यों के लिए घातक है, यह स्पष्ट है, कि श्री अरविंद केजरीवाल व उनकी पाटी के रहते दिल्ली में कॉग्रेस और भाजपा दोंनों ही आश्ंाकित हैं, फिलहाल ’आप’ की मजबूत स्थिति के कारण कोई भी सत्ता के करीब नहीं पहॅुच सकता ? इसी कारण उसके मुख्यमंत्री श्री केजरीवाल व उनकी पार्टी के तमाम नेताओं को जेल भेज दिया गया । झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेंमन्त सारेन, को भी उनके पद से हटा दिया गया उन पर भूमि घोटाले का अरोप है, ईडी द्वारा उन्हें जेल भेज दिया गया है, फिलहाल वहॉ के परिवहन मंत्री चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बना दिया गया, उसका स्पष्ट कारण यही है, कि वे कॉग्रेस पार्टी के हैं।
कॉग्रेस प्रदेश अध्यक्ष श्री करन माहरा के अनुसार अभी तक 21 प्रमुख नेताओं भाजपा नें भ्रष्टाचार के आरोप लगाए है। पूर्व मंत्री व विधायक दिनेश धनैं के बेटे पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया है, पूर्व विधायक राजेन्द्र भडारी व उनकी पत्नी पर अब तक भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए जा रहे थे, उनकी पत्नीं को दो बार अध्यक्ष पद से हटाया गया । लेकिन अब राजेन्द्र भंडारी भाजपा को पंसद आ गये हैं अपनीं ज्वाइनिंग से 12 घटे पूर्व तक भंडारी जी भाजपा प्रत्याशी और भाजपा को कोस रहे थे, और ज्वाइनिंग के बाद में भाजपा का रटा-रटाया, लिखा बयान पढ रहे थे। बकौल काग्रेस प्रत्याशी श्री गणेश गोदियाल उन्हें चुनाव लडनें की प्रेरणा भडारी जी से ही मिली थी, किन्तु आखिरकार 12-15 घंटे बाद ऐसा कौंन सा पहाड टूटा की उन्हें पाला बदलना पडा ? अब प्रश्न उठता है, क्या इन नेताओं पर कार्यवाही होती है या नहीं ? कॉग्रेस नेता पवन खेडा की मानें तो भाजपा के पास एक वाश्ंिाग मशीन है, जिसमें धुलकर ये नेता पाक-साफ हो जाते हैं, ऐसे कई उदाहरण हैं, जिसको देखकर तो यही कहा जा सकता है, किन्तु जैसे वे पार्टी में शामिल हुए उनके दामन में लगे दाग साफ धूल गये ।
लोकतंत्र मे ’राजनीतिक दल’ विभिन्न दृष्टिकोंणों, विचारों, सार्वजनिक नीतियों, मत-मतान्तरों व विचारों के संवाहक होते हैं, तभी लोग राजनीतिक दलों से संबद्व होतें है, और उनका नेतृत्व स्वीकार करते हैं, उनके कार्यकर्ता बनते हैं, जिस दल-समूह में उनके विचारों की समानता होती है, वे उसी दल में सम्मानित महसूस करते हैं, तथा उनके नेताओं के नेतृत्व को सिरोधार्य कर, स्थाई सदस्य के तौर काम करनें लग जाते हैं, यह आम जनता का सशक्त मंच होते हैं, जिसके माध्यम से वे समय-समय पर अपनीं भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं। किन्तु पिछले कई दिनों से नेताओं द्वारा, खासकर आगे बढे. नेताओं बडी मात्रा में अवसरवादी नीति के तहत पार्टी को छोडना और बदलना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक सिद्व होगा, लोंगों का विश्वास लगातार उठ रहा है। यह सवाल राज्य और देश के हर उस सख्स को उद्वेलित कर रहा है, जो इस देश की प्रगति चाहते हैं ?
यहॉ किसी पार्टी अथवा नेता के पक्ष-विपक्ष में दलीलें प्रस्तुत करनें का सवाल नहीं है, बल्कि अगर कोई भी दोषी हो, और वह किसी भी पद पर बैठा है, तो उसको दण्ड दिया जाना चाहिए किन्तु ऐंन चुनाव वक्त इकतरफा कार्यवाही करना गलत परंपरा को न्यौता देंना जैसा है। सुनिश्चित ये भी किया जाना चाहिए कि ’आरोपी’ अगर ’अपनें पक्ष’ का हो तो भी उसे अवश्य ’सजा’ मिल सके । असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्वा सरमा, नारायण राणे, अजीत पंवार, छगन भुजबल, और अशोक चव्हाण, के उदाहरण हैं जिन पर भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा हमेशा हमलावर रहती थीं, किन्तु उनके भारतीय जनता पार्टी शामिल होंनें से उन पर लगे अथवा लगाए गए, भ्रष्टाचार के सारे आरोप बेबुुनियाद हो गए, ? कॉग्रेस के केंद्रीय नेता श्री पवन खेडा के अनुसार भाजपा के पास वाशिंग मशीन है, जिससे सारे आरोप धूल जाते हैं। अगर यही सिलसिला रहा तो वो दिन दूर नहीं जब ’विपक्ष’ नहीं रहेगा जिसका सीधा अर्थ ’लोकतंत्र’ की विदाईं और तानाशाही की इण्ट्री । एक स्वस्थ लोकतंत्र को चलानें के लिए एक मजबूत विपक्ष का होंना जरूरी है। विपक्ष के अभाव में सत्ता में बैठे लोग निरंकुश तो हो ही जायेंगें साथ ही मनमानी पर भी उतारू रहेंगें।
पश्चिमी लोकतंत्र में विचारों और वैचारिकता के प्रति समर्पण आज भी कमोवेश देखा जा सकता है, अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी दो पृथक विचार धाराओं का प्रतिनिधित्व करती है, इसी तरह ब्रिटेंन में लेबर पार्टी, कंजरबेटिव पार्टी व डेमोक्रेटिक पार्टी है। जब पश्चिम में विचाधाराओं के अंत की बात करतें हैं तो वहॉ उसका अर्थ होता है एक लीक पर चलनें वालीं पुरातन जिद्दी, कट्रता, का अंत या नये युग के राजनीतिक प्रबंधन के आगे कुछ पुरानीं धाराओं का अप्रांसागिक हो जाना । मगर अपनें देश भारत में राजनीति का फूहड अवसरवाद है। यहॉ विचारधाराऐं बाद में खत्म हुईं, राजनीतिक मर्यादाऐं, नैतिकता व प्रतिबद्वता को पहले ही श्रद्वांजलि दीं गईं ।
हालॉकि राजनीति में नैतिकता और प्रतिबद्वता के नाम पर समय-समय पर जिन लोंगों नें सत्ता हासिल की उनका हश्र भी हमनें देखा है ? राजनीतिक दल और नेता चुनाव घोषणापत्र में कुछ भी कह लें, होगा वहीं जो सत्ता को हासिल करनें में सक्षम होगा ?

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