नए मतदाताओं को लोकतंत्र के उत्सव में भाग लेने का अवसर

लेखक-दिनेश सेमवाल शास्त्री, वरिष्ठ पत्रकार।

भारत में वर्ष 2024 का आसन्न लोकसभा चुनाव विश्व के सर्वाधिक मतदाताओं की भागीदारी वाले चुनाव के रूप में दर्ज होगा। भारत निर्वाचन आयोग के मुताबिक इस लोकसभा चुनाव में मतदाता सूची के पुनरीक्षण के बाद छह प्रतिशत नए मतदाता जुड़े हैं। दिलचस्प बात यह है कि नए मतदाताओं में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में ज्यादा है। संयोग से देश की कुल आबादी का 66.76 प्रतिशत युवा हैं। यानी अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले वयस्क लोग हैं।
निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 18 से 29 साल उम्रवर्ग में दो करोड़ नए मतदाताओं ने रजिस्ट्रेशन कराया है। इसके साथ ही भारत में कुल मतदाताओं का ग्राफ बढ़ कर 96.88 करोड़ तक पहुंच गया है जो पिछले यानी 2019 के आम चुनाव के बाद से छह प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण 2024 के तहत महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले बाजी मारी है।
उत्तराखंड के संदर्भ में बात करें तो यहां एक लाख 29 हजार 62 नए मतदाता दर्ज हुए हैं जो अपने मताधिकार का पहली बार प्रयोग करेंगे। वैसे उत्तराखंड में कुल 82 लाख 44 हजार के करीब मतदाता हैं जबकि सर्विस वोटरों की संख्या 93,357 है। इस दृष्टि से उत्तराखंड के पहली बार मताधिकार का प्रयोग करने वाले युवाओं को देश के सामने उदाहरण प्रस्तुत करने का अवसर है।

युवा शक्ति पर गर्व :
निसंदेह भारत को अपनी युवा शक्ति पर गर्व है और युवाओं की यह ऊर्जा मतदान के मौके पर भी दिखने की स्वाभाविक अपेक्षा की जाती है। इनमें एक करोड़ 84 लाख ऐसे मतदाता हैं जो पहली बार लोकतंत्र के महापर्व में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे यानी राष्ट्र के भाग्य विधाता बन कर अपनी पसंद की सरकार चुनने का उन्हें मौका मिल रहा है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 में 61वें संशोधन के बाद मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटा कर 18 वर्ष की गई थी। इस अधिनियम को 28 मार्च 1989 को लागू किया गया था। तब से नए मतदाताओं की संख्या में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है। मताधिकार की आयुसीमा 21 वर्ष से घटा कर 18 वर्ष करने के पीछे मंतव्य यह था कि जब 18 वर्ष की आयु के युवा को सेना में भर्ती के लिए तैयार किया जा सकता है तो मताधिकार भी आयु 18 वर्ष की जानी चाहिए। वरना जब से भारत में मताधिकार का प्रारंभ हुआ, उसकी पृष्ठभूमि देखें तो पैरों तले जमीन खिसकती दिखती है। 1935 के गवर्नमेंट इंडिया एक्ट के तहत केवल 13 प्रतिशत देशवासियों को मताधिकार प्राप्त था। उस समय मताधिकार के लिए सामाजिक और आर्थिक हैसियत पैमाना हुआ करती थी किंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बिना किसी बाधा और शुल्क के समान रूप से देश के नागरिकों को यह अधिकार प्राप्त हुआ है तो उसका सम्मान किया जाना चाहिए और पहली बार मतदान करने वाले युवाओं को इस दृष्टि से ज्यादा भागीदारी करनी चाहिए।
भारत में पहले आम चुनाव 1952 में हुए थे। तब देश की जनसंख्या 36.1 करोड़ थी और मतदान का प्रतिशत 45.7 रहा था। इसके विपरीत पिछले आम चुनाव में जनसंख्या करीब 135 करोड़ पहुंचने के बाद मतदान का प्रतिशत 67.4 तक पहुंचा था। हालांकि यह अब तक का सर्वाधिक उच्च स्तर है किंतु बहुत ज्यादा उत्साहजनक नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि 32.6 प्रतिशत मतदाताओं द्वारा अभी तक मतदान के प्रति बेरुखी दिखाया जाना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता।
विश्व स्तर पर देखें तो दुनिया के 33 देशों में इस समय अनिवार्य मतदान का नियम है और वे लोग इस नियम को आत्मसात कर चुके हैं। भारत के संदर्भ में यह बात दूर की कौड़ी लगती है। किंतु इस समय यह विमर्श का विषय नहीं है। इस पर फिर कभी चर्चा की जा सकती है।
वर्तमान में विमर्श का बिंदु यह है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम का हम कितना आदर करते हैं।

अधिकार से ज्यादा कर्तव्य मानें:
निसंदेह मतदान करना अधिकार के रूप में वर्णित है किंतु राष्ट्र की आकांक्षाओं के संदर्भ में देखें तो इसे नैतिक कर्तव्य की श्रेणी में रखा जा सकता है।
इसमें दो राय नहीं हो सकती कि लोकतंत्र की सफलता तभी संभव है, जब हम कर्तव्य के रूप में अपने मताधिकार का उपयोग करें। कहना न होगा कि लोकतंत्र की नींव मताधिकार के प्रयोग पर ही निर्भर है। देश में सुशासन और जनाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए बिना किसी भेदभाव के निर्भीकता से मतदान राष्ट्र के प्रति दायित्व का निर्वहन कहा जा सकता है। निसंदेह यह प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है और इसके लिए सम्यक जागरूकता की जानी चाहिए।

जागरूकता अभियान :
भारत निर्वाचन आयोग के साथ ही केंद्र सरकार के शिक्षा सहित विभिन्न मंत्रालय मतदान के प्रति जागरूकता प्रसार के लिए प्रयासरत हैं। खासकर पहली बार मताधिकार का प्रयोग करने वाले युवाओं को प्रेरित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश की नई पीढ़ी चुनाव प्रक्रिया में बढ़ चढ़ कर भागीदारी सुनिश्चित करे। शिक्षण परिसरों में इस उद्देश्य से अनेक तरह के जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक शिक्षा संस्थाओं में इस अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। निसंदेह यह पहल दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए चुनाव प्रक्रिया में भागीदारी देने के आह्वान पर निर्भर है।

मेरा पहला वोट देश के लिए :
केंद्र सरकार ने नए मतदाताओं को जागरूक करने के उद्देश्य से ” मेरा पहला वोट देश के लिए” नाम से विशेष अभियान चलाया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय इसके लिए बढ़ चढ़ कर योगदान दे रहा है। नए मतदाताओं को मतदान करने की शपथ दिलाई जा रही है, साथ ही इसके लिए कई तरह की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जा रही हैं।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस तरह के कार्यक्रमों का दूरगामी प्रभाव हुआ है। ज्यादा दूर की बात न भी करें तो मात्र एक दशक पूर्व यानी वर्ष 2014 में 41 प्रतिशत युवाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था और इनमें 68 प्रतिशत भागीदारी पहली बार वोट कर रहे युवाओं की थी। वर्ष 2019 में इस आंकड़े में चार प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई। इस दृष्टि से वर्ष 2024 में यह आंकड़ा और अधिक बढ़ने की स्वाभाविक अपेक्षा की जाती है। मेरा वोट देश के लिए शीर्षक से जारी गीत को जिस तरह से युवाओं ने हाथोंहाथ लिया है, उसे देखते हुए पहली बार मताधिकार का प्रयोग करने वाले युवाओं से बड़ी उम्मीद तो की ही जा सकती है।

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