राज्य के लिए वरदान साबित हो सकते हैं ’मिलेट्स फूड’

देव कृष्ण थपलियाल: अन्न संकट के दौरान देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादूर शास्त्री नें देशवासियों को सप्ताह में एक दिन ’उपवास’ रखनें का आह्वान किया था, जिसका आम जनमानस पर गहरा असर देखनें को मिला, कई लोंगों नें उपवास करना शुरू किया और देश में ’अन्न संकट’ का खतरा काफी हद तक तक टल गया । ’उपवास’ भले सनातन धर्म और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा हो, परन्तु इसके शारीरिक और मानसिक लाभों को वैज्ञानिक भी खुले दिमाग से स्वीकार करते है। ठीक इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नें नेपथ्य में जा चुके ’मिलेट्स फूड’ मोटे अनाजों को अपनें भोजन में शामिल करनें का बडा आह्वान किया हैं, जो शारीरिक-मानसिक व आर्थिक समद्वि की दृष्टि से बहुत बडा क्रान्तिकारी कदम है, जिसकी प्रशंसा की जानीं चाहिए, खासकर उत्तराखण्ड जैसे पहाडी राज्यों में जहाॅ कोदा-झंगोरा, रामदाना जैसी पोष्टिक फसलों को उगाना, लोंगों की संस्कृति व परम्परा थीं, जिसका सेवन करनें से घरों में ना कोई बीमार पडता था, ना ही किसी प्रकार की दूसरी आपदा का सामना करना पडता था । आज तथाकथित आधुनिक और सभ्य कहे जानें वाली नई पीढी इनको उगाना तो छोड दीजिए लोग खानें से भी कतरानें लगे हैं, इन फसलों नें जहाॅ हमारे पूर्वजों कों स्वस्थ व दीर्घायु रखा वहीं किसी भी घर को भूखमरी या भीख माॅगनें की जैसी दूदर्शा से बचाए रखा, पहाड की आन की आन-बान-शान कहे जानें वाले कोदा-झंगोरा, कोंणी, चैलाई अन्य पारंम्परिक फसलों से निर्मित भोजन आज हमारी थाली से विलुप्त हो चूका है । इन उत्पादों में आज के भोजन गेहूॅ-चावल के मुकाबले कई गुणा ज्यादा कैल्सियम, आइरन, फास्फोरस जैसे पौष्टिक तत्व होंते हैं। पहाड में कहावत है, ’’मो पालिज्यो मंडुवा भ्यो’’ अर्थात परिवार के भरण-पोषण करनें वाला मुख्य सहारा मंडुवा ही है।
मोदी जी के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र संघ यू0एन0ओ द्वारा ’वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष’ घोषित किया गया है जो इन माॅर्डन कहे जानें वाले लोगों को आईना दिखानें जैसा है, ये वे लोग हैं, जो ’मिलेट्स फूड’ अथवा ’मोटे अनाज’ के भोजन को गरीबों और पिछडों का भोजन मानते हैं। जबकि सच्चाई ये है कि ’मिलेट्स फूड’ के कईं गुणें फायदे हैं। देश में डाइबिटिज, मोटापा तेजी से बढ रहा, जैसी बीमारियाॅ तेजी के लिए ’मिलेट्स फूड’ रामवाण का काम करते हैं। ’नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ फूड टैक्नोलाॅजी एंटरप्रेन्योरशिय एंड मैनेजमैंट तंजावुर नें अभी हाल में मोटे अनाज को लेकर चेन्नई में ’मोटे अनाज सम्मेलन’ अथवा ’मिलेट समिट-2023‘ का आयोजन किया, जिसमें शामिल देश-विदेश के सभी विशेषज्ञों नें एक स्वर से मिलेट्स फूड के लाभों को स्वीकार किया, साथ ही आनें वाले समय के लिए ’’मिलेट्स फूड’’ के भविष्य की बात कहीं। देशभर के कृषि वैज्ञानिक भी अब मोटे अनाज की महत्ता को समझनें लगे हैं। इससे देश का किसान और अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, तो दूसरी ओंर देश स्वस्थ होगा। राष्ट्रीय स्तर पर भी किसी को संदेह नही है, कि मोटे अनाज का उत्पादन, खपत, प्रसस्करण, निर्यात और इसमें प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल बढेगा ।
देश के दो राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार मंे ’मिलेट्स फूड’ की असीम संभावनाऐं हैं। बिहार को 2015-16 में मोटे अनाज के वर्ग में पूरे देश में सर्वोच्च उत्पादन के लिए ’कृषि कर्मण पुरूस्कार’ दिया जा चूका है। देश में मोटे अनाज का समृद्व इतिहास रहा है। ये अनाज मुख्यतः ज्वार, बाजरा, मंडुवा, जौ, सांवा, कुटकी, कामनीं आदि जैसी फसलें हैं, फूड एण्ड एग्रीकल्चर आर्गिनाइजेशन (एफ0ए0ओ0 के अनुसार मिलेट्स फसलों को विश्व में 75.70 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में उगाया जाता है, जिसका उत्पादन 90.35 मिलियन मिट्रिक टन है। भारत ’मिलेट्स फूड’ फसलों का पाॅचवाॅ सबसे बडा निर्यातक है। लेकिन उत्पादन इससे ज्यादा है, साल 2020 में भारत का वैश्विक उत्पादन में 41 प्रतिशत योगदान था। किन्तु पिछले पचास-साठ सालों से देश में मोटे अनाज का सेवन उत्तरोत्तर घटा है। 1960 से 2018 तक मोटे अनाज का क्षेत्र 9.02 मिलियन हैक्टेयर से घटकर 7.38 मिलियन हैक्टेयर हो गया है।
उत्तराखण्ड सरकार द्वारा विगत माह 13 से 16 मई तक राजधानी के हाथीबडकला में मिलेट्स फूड को लेकर ’श्री अन्न महोत्सव’ का आयोजन किया गया, जो जन जागरूकता की दृष्टि से जरूरी था, कहा जा रहा है, कि अगला कार्यक्रम हल्द्वानीं में प्रस्तावित है, ताकि ’मोटे अनाज’ को लेकर लोंगों में फैली भ्रान्तियों को दूर किया जा सके ? इस सम्मेलन में भी पहुॅचे तमाम राज्य-केंद्रीय मंत्रियों और जानकारों नें भी एक स्वर में ’मिलेट्स फूडस’ अथवा मोटे अनाज के महत्व को स्वीकार किया। वहाॅ पहुॅचे तमाम लोंगों नें भी सप्ताह में एक दिन मोटे अनाज लेंनें का संकल्प लिया। निश्चित रूप से ’मिलेट्स फूड’ के लिए आयोजित इस उत्सव से विलुप्त हो रही इन फसलों को बढावा मिलेगा तथा रचनात्मक माहोल बनेगा।,
अब बारी ये है, कि सरकार मिलेट्स फूड्स को बढावा देंनें के लिए क्या-क्या करती, अथवा महज भाषण तक सीमित रखती है ? उत्तराखण्ड राज्य देश का तीसरा राज्य है, जिसनें मिलेट मिशन की शुरूवात की है, वही घोषणा कि गई कि मोटे अनाज को प्रोत्साहन देंनें के लिए जगह-जगह मार्ट खोले जायेंगें। चार धाम और दूसरे मंदिरों में प्रसाद के रूप में मोटे अनाजों का इस्तेमाल किया जायेगा। इससे जहाॅ मोटेे अनाज की खपत बढेगी वहीं आम लोगों के लिए रोजगार के दरवाजे खुलेंगें, किसानों को एक सशक्त मंच मिलेगा, अगर इसी तरह प्रोत्साहन व फसल का उचित मल्य मिलेगा तो किसान मोटे अनाजों को उगानें के लिए उत्साहित होंगें, क्योकि आमतौर से इन फसलों को उगानें के लिए कोई खास श्रम की जरूरत नहीं पडती है। ये फसलें कम उपजाऊ, भूमि में भी आसानीं से पैदा हो जाती है। इसके जरूरी है कि सरकार उसके लिए बाजार तैयार करे ताकि किसानों को इसका उचित मूल्य मिले, जगह-जगह मार्ट और दूसरी तरह की कंपनियों को खेला जाय, पतंजलि योगपीठ मोटे अनाज उत्पादों के लिए बडा प्लेटफार्म बना रहा है, श्री अन्न महोत्सव में पहुॅचे आचार्य बालकृष्ण नें कहा कि मोटे अनाजों को प्रात्साहित करनें के लिए पतंजलि नें अपनें अपनीं प्रोसेंसिग क्षमता के लक्ष्य को बढानें का निर्णय कर लिया है। वर्तमान में पतंजलि 1200 टन अनाज का खाद्य प्रसंस्करण करता हैं इसको 10,000 टन तक ले जानें का लक्ष्य है। कृषि मंत्री बताते हैं, सरकार नें बजट में ’मोटे अनाज’ के प्रोत्साहन के लिए करीब 73 करोड रूपये का प्रावधान किया है, जो मोटे अनाज के उत्पादन को प्रोत्साहित करेगा ।
इसके अलावा इसके ’मोटे अनाज’ से बनें खाद्य पदार्थो के सेवन में जो कठनाई है, वह अभी आम जनमानस में फैली मान्यता है, इसे गरीबों, पिछडों और वंचितों का भोजन माना जाता है, विपत्ति और दुःख के समय के ही साथीं मानें जानें की परम्परा है। पहाड में लोग अक्सर ’मोटे अनाजों’ से बनें भोजन मुफलिसी के दौर में गुजारे दिनों से करते हैं ? राज्य आॅदोलन के शुरूवाती दिनों में लोंगों नें नारा दिया था, ’कोदा-झंगोरा खायेंगें’ उत्तराखण्ड बनायेंगें’ यानीं राज्य के बन जानें बाद भी कुछ नहीं मिलेगा तो यह फसल ही हमें सहारा देगी, हमारा जीवन यापन करायेगी, यानीं इस तरह की फसलें हमारी संस्कृति, अस्मिता का भी द्योतक है। फिर हम क्यों इन फसलों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोंण अपनातें है, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल के सूझाव को मानें अब इस नारे को बदलें और कहें ‘कोदा-झंगोरा खायेंगें, उत्तराखण्ड को स्वस्थ बनायेंगें’’ वास्तव में यही सही स्लोगन भी है, इन फसलों में कई ऐसे गुण हैं, जिनसे गंभीर से गंभीर बीमारी टल जाय या उपचार हो जाय। सरकार और आम जनमानस को इन गुणकारी फसलों को प्रोत्साहित करने का प्रयत्न करना चाहिए। प्रत्येक सरकारी कार्यक्रमों व दफ्तरों में अथितियों व मेहमानों को ’मोटे अनाजों’ से बनें भोजन को अवश्य परोसा जाय, अगर सरकार ’मिलेट्स फूड’ को प्रोत्साहित करनें के लिए स्वयं सरकारी स्तर पहल करे तो निश्चित ही पहाड में बंजर पडी खेती को नये पंख लग सकते हैं। किसानों की भी आय में वृद्वि होगी।
पहाड में किसानों-काश्तकारों की सबसे बडी परेशानी विपणन और स्टोर को लेकर है। कुछ स्थानों पर जरा सी देरी पर होंनें पर फसलें बर्बाद हों जाती हैं, वहीं कहीं जगह पर फसलें तो अच्छी हों जाती है, परन्तु बाजार उपलब्ध न होंनें के कारण फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। जिसके कारण किसानों में निराशा ओर कुंण्ठा पैदा हो जाती हैं। परिणामस्वरूप किसान खेती करना छोड देता हैं, सबसे पहले सरकार को चाहिए वह बाजार व्यवस्था को मजबूत बनाए, किसान जो कुछ भी पैदा करे, उसे किसान के घर से ही उठाए अथवा उसे निश्चित स्थान पर स्टोर करनें का प्रबन्ध करे, और उसे उचित मूल्य दे कर विश्वास का वातावरण बनाऐ । पहाड में ’पलायन’ एक विकराल समस्या के फैल चूकी है, गाॅव के गाॅव खाली हो चूके हैं, ऐसे में जंगली जानवर लगातार फसलों को नुकसान पहॅुचा रहें हैं। चुकि इनको मारनें का कानून अधिकार भी आम आदमी को नहीं हैं, फिर खेती-किसानीं की बात करना ही बेवकूफी है। ’मोटे अनाज’ अथवा ’मिलेट्स फूड’ के लिए सरकार सबसे पहले विश्वास का वातावरण बनाए, तो निश्चित ही किसान आर्थिक रूप से मजबूत होगा और राज्य भी स्वस्थ बनेगा।

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