#देवलसारी #महादेव #मंदिर #टिहरी: इस #शिवालय की हैं #अनूठी #परंपराएं

देहरादून। देवलसारी शिवालय की अनूठी परंपराएं और कई रहस्य श्रद्धालुओं को हैरत में डाल देते हैं। जबकि सभी शिव मंदिरों में शिवलिंग के साथ जलेरी होती ही है, लेकिन प्राचीन देवलसारी महादेव मंदिर में शिवलिंग के साथ जलेरी न होना लोगों को आश्चर्य में डालता है। मान्यता है कि यहां स्वंयभू शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाले हजारों लीटर जल की निकासी कहां होती है, इस रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठा पाया है। दुनियाभर में तमाम शिव मंदिरों में पूजा-अर्चना और जलाभिषेक के बाद शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का विधान है। यानी जलेरी को लांघा नहीं जाता है, और जलेरी तक पहुंचकर परिक्रमा को पूर्ण मान लिया जाता है, लेकिन देवलसारी महादेव में जलेरी नहीं होने के कारण मंदिर की पूरी परिक्रमा की जाती है।
देवलसारी मंदिर में जलाभिषेक की परंपरा भी कुछ अलग ही है। प्राचीन समय से चली आ रही परंपराओं के अनुसार आज भी मंदिर का पुजारी ही भक्तों के लाए हुए जल को खुद शिवलिंग पर अर्पित करता है। कहा जाता है की जब एक ग्वाला की गाय जंगल से चारके घर की ओर आती थी तो वह गाय मार्ग में कहि पर अपना दूध गिर के आती थी के घर आती थी तो वह अपना दूध किसी स्थान पर गिरा के आ जाती थी, इसे वह ग्वाला बहुत परेशांन हो गया था तब उस ग्वाले ने उस स्थान को देखने के लिए गया जहां उसकी गाय अपना दूध गिरा देती थी वह उसने देखा की झाड़ियों के बीच में एक शिवलिंग है जिसके ऊपर उसकी गाय हमेशा अपना दूध गिरा देती थी जब उसने उस शिवलिंग को देखा तो उसने इसकी सूचना टिहरी के राजा को दी तब राजा ने उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण कराया बाद में उत्तराखंड में जब गोरखाओ ने आक्रमण किया तो उन्होंने उत्तराखंड के कई मंदिरों को तहस-नहस किया।
वे जब इस मंदिर में आए तो इसे भी क्षति पहुंचाने के लिए उन्होंने इस शिवलिंग को उखाड़ने की कोशिश की किंतु बहुत ज्यादा खोदने ने पर भी शिवलिंग नहीं उखड़ा जिससे गुस्सा होकर उन्होंने शिवलिंग पर एक वार किया जिसके कारण शिवलिंग का एक टुकड़ा देवलसारी में गिरा तभी से यह का नाम देवलसारी महादेव मंदिर पड़ा। इस मंदिर में शिवलिंग के ऊपर दूध की जगह जल चढ़ाया जाता है लेकिन एक रोचक बात यह है की जो जल यह चढ़ाया जाता है उसका निकास स्थान कहाँ है, यह आज तक किसी को नहीं पता क्योंकि जब इस शिवलिंग में जल चढ़ाया जाता है तो शिवलिंग सूखा ही रहता है तथा यहाँ जल किधर जाता है यह एक रहस्य ही बना हुआ है मंदिर के पुजारी द्वारा भक्तों के लाए हुए जल को शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है। दूसरी रोचक बात यह है कि यहाँ नाग-नागिन के जोड़े दिखाई देते है, किन्तु बहुत कम लोगो को आज तक ये जोड़े दिखाई दिए। वहां के लोगांे का कहना है की ये महादेव के मंदिर की रक्षा करते हंै, लोगांे की यह भी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति यहाँ जो भी कुछ मांगता है उसी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। यह मंदिर ऋषिकेश से 75 किलोमीटर दूर और नई टिहरी से 30 किलोमीटर दूर टिपरी के पास टिहरी बांध के सामने स्थित है।

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