बचपन बचाओ आंदोलन ने बर्बरता की शिकार नाबालिग घरेलू सहायिका को मुक्त कराया

नई दिल्ली।  एसोसिएशन फॉर वालंटरी एक्शन जिसे बचपन बचाओ आंदोलन के नाम से जाना जाता है, ने होली के दिन बर्बरता की शिकार एक नाबालिग घरेलू सहायिका को मुक्त कराया। बच्ची की शिकायत पर नियोक्ता के खिलाफ गाजियाबाद के इंदिरापुरम थाने में मामला दर्ज कर आगे की कार्रवाई की जा रही है। मामला दर्ज करने के बाद पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी की रहने वाली इस बच्ची को चिकित्सा जांच के लिए ले जाया गया जहां उसकी गंभीर हालत को देखते हुए डॉक्टरों ने उसे अस्पताल में भर्ती कर लिया।

देश जब होली के रंगों की खुशियां मना रहा था, उसी समय बचपन बचाओ आंदोलन को किसी ने फोन कर सूचित किया कि गाजियाबाद के वसुंधरा इलाके में एक घरेलू सहायिका के साथ बर्बरता की गई है और उसकी स्थिति गंभीर है। सूचना के बाद बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे और बच्ची को मुक्त कराया। कार्यकर्ताओं ने पाया कि बच्ची के दोनों हाथ सूजे हुए थे और उसके कान एवं चेहरे सहित जिस्म का हर हिस्सा जख्मी था। उसकी पीठ पर बेलन से मारा गया था जिसकी वजह से वो बोल नहीं पा रही थी । गर्दन पर जले एवं कटे के निशान भी थे। दाएं पैर पर खौलता हुआ पानी डाला गया था जिसकी वजह बच्ची के पैर जल गए थे। बाए पैर में जख्म था जो पिटाई की वजह से फट गया था और एक जगह टांग में हड्डियों से खून रिस रहा था।

बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता उसे लेकर इंदिरापुरम थाने पहुंचे और उसकी नियोक्ता रीना शर्मा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। बच्ची पिछले एक साल से यहां काम कर रही थी। बच्ची ने बताया कि होली की रात रीना शर्मा ने उसे बेरहमी से पीटा और मदद के लिए पुकार लगाने पर वह उसके सीने पर बैठ गई। सुबक रही बच्ची ने दरवाजा थोड़ा सा खुला देखा तो वहां से भाग निकली और रात को सीढ़ियों पर छिपी रही। सुबह किसी ने उसे देखा और बचपन बचाओ आंदोलन को सूचना दी।

बच्ची ने बताया कि नियोक्ता रीना शर्मा उसकी डंडे से पिटाई करती थी और उससे सुबह छह बजे से लेकर रात को दो बजे तक काम कराया जाता था। नाबालिग ने अपने जले हुए पांव दिखाते हुए बताया कि एक बार वह कोई काम पूरा नहीं कर पाई तो मालकिन उसके पैर खौलता पानी फेंक दी। होली से एक दिन पहले भी उसकी बेरहमी से पिटाई की गई थी।

बच्ची की मां सिलीगुड़ी के एक चाय बागान में काम करती हैं जबकि पांव की चोट के कारण पिता घर पर ही रहते हैं। बच्ची ने बताया कि उसे पखवाड़े में एक बार अपने घर फोन करने की इजाजत दी जाती थी और इस बीच अगर उसने इशारों में भी यहां के बदतर हालात के बारे में कुछ बताने की कोशिश की तो उसे बेरहमी से पीटा जाता था। बच्ची ने बताया कि तनख्वाह के नाम पर उसके हाथ में कभी एक पैसा भी नहीं मिला और उससे कहा जाता था कि हर महीने 4,000 रुपए उसके घर वालों को भेजे जाते हैं। बच्ची को एक प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए यहां भेजा गया था। बताया जा रहा है कि रीना ने इससे पहले भी एक घरेलू सहायिका को बुरी तरह पीटा था।

देश में घरेलू सहायकों के काम करने के हालात और उनकी स्थिति पर चिंता जताते हुए बचपन बचाओ आंदोलन के निदेशक मनीष शर्मा ने कहा, “शहरी भारतीयों के बढ़ते लालच को पूरा करने के लिए देश के दूरदराज के इलाकों के गरीब व लाचार परिवारों की लड़कियों को ट्रैफिकिंग के माध्यम से लाया जा रहा है। जैसे एक मासूम से उसका बचपन और घर छीन लेना ही काफी नहीं है, इन बच्चों को यातनाएं दी जाती हैं, उन पर अत्याचार किए जाते हैं और उन्हें वीभत्स स्थितियों में रहने को मजबूर किया जाता है। अगर हम अपने बच्चों को शोषण और उत्पीड़न से बचाना चाहते हैं तो हमें और कड़े कानूनों व प्लेसमेंट एजेंसियों की निगरानी की आवश्यकता है। लेकिन जिस तरह से किसी ने बच्ची के बारे में सूचना दी और आस पड़ोस के लोगों ने जिस तरह बच्ची को मुक्त कराने में सहयोग दिया, वह ऐसी तमाम बच्चियों के लिए आशा की किरण जगाने वाला है। अगर देश की सभी रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्लूए) इसी तरह से सक्रिय भूमिका निभाएं जैसा कि इस मामले में देखने को मिला है तो हम बाल मजदूरी और बच्चों की ट्रैफिकिंग पर लगाम कसने में कामयाब हो सकते हैं। जाहिर है कि जब तक यह सबका दायित्व नहीं बन जाता तब तक यह किसी का कर्तव्य नहीं बन पाएगा।”

 154 total views,  1 views today

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *