एएससीआई और अनस्टीरियोटाइप एलायंस ने विज्ञापनों में विविधता और समावेशन पर अपना अध्ययन पेश किया

– दुनिया भर में 33 फीसदी उपभोक्ताओं की तुलना में 48 फीसदी भारतीयों ने ब्रांडों द्वारा अधिक समावेशी प्रतिनिधित्व की आवश्यकता व्यक्त की

-पुरुष पात्रों की तुलना में महिलाओं का चित्रण ज्यादा रूढ़िवादी (त्वचा का रंग, रूप और उम्र) तरीके से किया जाता

– एलजीबीटीक्यूआई, न्यूरोडायवर्जेंट, दिव्यांग, वरिष्ठ नागरिक समेत अन्य समूह भारतीय विज्ञापनों से लगभग नदारद

देहरादून: एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया (एएससीआइ) और यूएन वुमन द्वारा आयोजित अनस्टीरियोटाइप एलायंस (यूए) ने भारतीय विज्ञापनों में विविधता और समावेशन (डी एंड आई) पर अपना साझा अध्ययन लॉन्‍च किया है। यह संयुक्‍त रिपोर्ट भारतीय विज्ञापन के डी एंड आई प्रतिनिधित्व की तुलना ग्लोबल  डी एंड आई प्रतिनिधित्व से करती है। यह तुलना 2023 ग्लोबल मॉनिटर सर्वे के आंकड़ों पर आधारित है। यह रिपोर्ट भारतीय विज्ञापन इंडस्ट्री के बारे में कई ट्रेंड्स का खुलासा करती है। इस रिपोर्ट में दुनिया भर के 28 बाजारों में डीएंडआई प्रतिनिधित्व के कुछ प्रमुख आयामों जैसे उम्र, लिंग, सेक्सुअल ओरिएंटेंशन, नस्ल, शारीरिक बनावट, सामाजिक वर्ग, विकलांगता और धर्म पर प्रकाश डाला गया है।

वैश्विक आयाम

दुनिया भर में 33 फीसदी उपभोक्ताओं की तुलना में, 48 फीसदी भारतीयों का कहना है कि ब्रांडों द्वारा अपने विज्ञापनों में ज्यादा समावेशी प्रतिनिधित्व की जरूरत है। भारत के सामाजिक रूप से जागरूक उपभोक्ता समावेशन की राह पर चल रहे ब्रांड्स के लिए एक प्रोत्साहन हैं और उन लोगों के लिए एक चेतावनी है जिन्होंने अभी तक डीएंडआई को नहीं अपनाया है।

भारतीय अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष: भारतीय विज्ञापनों में प्रतिनिधित्व विविधता का लगभग अभाव पाया गया है। इस अध्ययन में भारतीय विज्ञापनों में एलजीबीटीक्यू+ समुदाय का प्रतिनिधित्व निराशाजनक पाया गया है। इनका प्रतिनिधित्व 1 फीसदी से भी कम है। विकलांग लोगों को 1 फीसदी से भी कम विज्ञापनों में दिखाया गया है और केवल 4 फीसदी भारतीय विज्ञापनों में 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को दिखाया गया है।

महिला प्रतिनिधित्व: हालांकि भारतीय विज्ञापनों में महिलाओं की उपस्थिति पुरुषों के बराबर थी, लेकिन रूढ़िवादिता अभी भी कायम है। अधिक महिलाओं को गोरी त्वचा के साथ चित्रित किया जाता है (स्क्रीन पर 58 फीसदी महिलाओं बनाम 25 फीसदी पुरुषों को)। इसके अलावा भारतीय विज्ञापनों में शारीरिक बनावट के आधार पर भी भेदभाव देखने को मिला है। स्क्रीन पर 39 फीसदी महिलाओं को 16 फीसदी पुरुषों की तुलना में पतला दिखाया गया। महिलाए गैर-पारंपरिक भूमिकाओं में भी महिलाओं के कम दिखाया गया है। 17.5 फीसदी महिलाओं को अकेले देखभाल करने वाली के रूप में चित्रित किया गया जबकि 3.5 फीसदी पुरुष पात्रों को इस भूमिका में दिखाया गया है।

एएससीआई की सीईओ और सेक्रेटरी जनरल मनीषा कपूर ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि विज्ञापन समाज को आकार देते हैं। भारतीय विज्ञापन में अलग तरह की सभी को शामिल करने वाली कहानियों का अभाव है जो ब्रांड्स को वास्तविक बढ़त प्रदान कर सकते हैं। इस अध्ययन से भी यही पता चलता है। द अनस्टीरियोटाइप एलायंस और अन्य साझेदारों के साथ, एएससीआई विज्ञापन उद्योग को उसके डीईआई प्रतिनिधित्व को सही करने के लिए प्रेरित करना और उसका समर्थन करना चाहता है। जिन ब्रांड्स ने डीईआइ को अपना लिया है, वे इस बात से सहमत हैं। डियाजियो इंडिया की चीफ मार्केटिंग ऑफीसर रुचिरा जेटली ने कहा, “मार्केटर्स के रूप में, हमें समावेशन और विविधता को बढ़ावा देने और ब्रांड कैंपेन के जरिए विविध और प्रगतिशील आवाजों को उठाने वाली कहानियां बताने में बड़ी भूमिका निभानी होती है, इसमें स्क्रिप्ट से लेकर स्क्रीन तक हर किसी का प्रतिनिधित्व होता है।

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