देव कृष्ण थपलियाल। देहरादून। मतदान सकुशल सम्पन्न होंनें के बाद, आगामी 10 मार्च को राज्य का भविष्य तय करने वाला परिणाम प्राप्त हो होगा। संवैधानिक तौर पर चुनाव आयोग इस दायित्व कों सम्भालता है, संस्था नें पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता से अपनें दायित्वों का निर्वहन किया, मतदान और उससे पहले प्रचार तंत्र को भली-भॅाति नियंत्रित/निर्देशित किया, कई स्थानों पर पुलिस-प्रशासन द्वारा अवैध सामग्री को पकडकर उस पर तत्काल कार्यवाही कीं गईं, बडी मात्रा में शराब, नकदी और उपहार सामग्री को सील किया गया, इसके लिए आयोग बधाई का पात्र है। राज्य बननें के बाद यह पॉचवा विधान सभा चुनाव था। 82,37886 मतदाताओं ंपुरूष 42,24,288 तथा महिलाएं 39ं,19,334 हैं। 288 अन्य 94,471 सर्विस मतदाता तथा 24 शतायु वोटर व 1.50 लाख युवा वोटर हैं, जिन्होंनें पहली बार वोट किया, 66,648 दिव्यांग मतदाता हैं, 1,43553 मतदाता 80 साल के ऊपर के हैं। इसमें से महज 65.27 फीसदी लोंगों नें ही अपना मतदान का प्रयोग किया ? जो बीते 2017 के विधान सभा चुनावों के मुकाबले 0.27 फीसदी कम है। निर्दलीय समेत विभिन्न पार्टियों के 626 प्रत्याशियों नें अपना भाग्य अजमाया, जिसमें 10 फीसदी यानीं 62 महिलाओं भी शामिल हुईं, जो पिछले चुनाव के मुकाबले 1 फीसदी ज्यादा है।
एडीआर की रिर्पोट के मुताबिक चुनाव लडनें वाले सभी दलों के अधिकतर उम्मीदवार धनकुबेर हैं, भाजपा नें 86 प्रतिशत, कॉग्रेस 80 प्रतिशत आम आदमी पार्टी नें 31 प्रतिशत, बीएसपी नें 18 प्रतिशत, और यूकेडी नें 12 फीसदी करोडपति प्रत्याशियों को टिकट दिया है । भाजपा के 60 और कॉग्रेस के 56 उम्मीदवार करोडपति हैं, आम आदमी पार्टी के 31 बसपा के 18 और यूकेडी के 12 उम्मीदवार करोडपति है। चुनाव लड रहे सभी उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 2.74 करोड है, भाजपा के 70 उम्मीदवारो की औसत संपत्ति 2.74 करोड है, वहीं कॉग्रेस के 70 उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 6.93, भाजपा 70 उम्मीदवारों की औसत आय 6.53, आम आदमी पार्टी की औसत आय 2.95 यु0के0डी0 के 42 उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 2.79 तथा बीएसपी के 54 उम्मीदवारों की 2.23 करोड रूपया है।
उम्मीदवारों की पढाई-लिखाई जरूर अव्वल दर्जे की है, जिसकी प्रशंसा होनीं चाहिए, कुल 626 प्रत्याशियों में अनपढों की संख्या महज 03, साक्षर 26, पॉचवी पास 15, आठवीं पास 61, दशवीं पास 68, 12 वीं 100, ग्रेजुऐट 140 ग्रजुऐट प्रोफेशनल 59 पोस्ट ग्रेजुऐट 130 डॉक्टरेट 15 लोग हैं, डिप्लोमाधारी 07 हैं, 02 प्रत्याशियों नें अपनी शिक्षा नहीं बताई। एडीआर की रिर्पोट के अनुसार 27 फीसदी के साथ 167 युवा चुनाव मैंदान में, 41-60 साल के सबसे अधिक 57 फीसदी 356 लोग, 60 साल से 80 साल के 16 प्रतिशत यानें 101 प्रत्याशी तथा दो उम्मीदवार 80 से अधिक आयु वाले थे। देवभूमि की शान्तवादियों में बसे इस पहाडी प्रदेश के भावी लोकसेवकों की आकूत संपदा के साथ-साथ एडीआर नें उनकी अपराधिक प्रवृत्ति की भी विवेचना की है, एडीआर अपराधिक रिकार्ड कुल 626 प्रत्ययाशियों में से 107 पर मुकदमें 61 लोंगों पर गंभीर ंअपराधिक मामले दर्ज है जिसमें भाजपा में 13 यूकेडी 17 कॉग्रेस 23 आप 15 बीएसपी के 10 उम्मीदवार हैं जिन पर विभिन्न अदालतों में केस चल रहें हैं।
ं 623 नये बुथों के साथ इस बार मतदाता केंद्रों की संख्या में 11,647 कर दी गईं, माइग्रेट बूथों की संख्या 1556, बर्फवारी प्रभावित क्षेत्र 766, नया काम ये हुआ कि इस मतदान केंद्र पर 1500 की के स्थान पर अब 1200 मतदाता थे निर्धारित थे, औसत 700 वोटर मतदान केंद्र पर है पंजीकृत हैं । 21 जनवरी से नामांकन शुरू हुआ और 28 जनवरी को नामांकन की अंतिम तारीख रखी गईं थीं, जॉच का दिन 29 जनवरी तथा 31 जनवरी तक नाम वापस लिया जा सकता था । 14 फरवरी को निर्विघ्न मतदान संपन्न हुआ, और अब 10 मार्च की तिथि का बेसब्री से इंतजार है। उस दिन मतगणना के बाद प्रदेश के भविष्य तय होगा, कौंन हारेगा ? कौंन जीतेगा ? किस दल-नेता की सरकार बनेगी ? इसका जबाब नेता/जनप्रतिनिधियों के साथ आम जनमानस तक पहुॅच जायेगी ? असल सवाल ’विधान सभा चुनाव 2022’ चालबाजियों से है ?
जब राज्य के निवर्तमान मुख्यमंत्री सरेआम पैसा बॉटते हुऐ कैमरे में कैद हो हुऐ ? चुनाव जीतनें के लिए सत्ताधारी समेत अन्य दलों नें भी अनेक विधान सभा क्षेत्रांे में भी शराब, पैसा और प्रलोभनों के साथ मतदाताओं को रिझानें की पूरजोर कोशिश की, कई स्थानों पर महिलाओ को साडियॉ-पैसा और पुरूष और युवाओं को शराब परोसी गईं, जिसे दूसरे दलों के नेता-कार्यकताओं नें मौके पर मोबाइल कैमरे में कैद कर सोशल मीडिया पर अपलोड कर आम जनमानस तक पहुॅचाया ? इससे साफ जाहिर हो रहा था, कि भावी उत्तराखण्ड का क्या स्वरूप होगा ? ’समान आचार संहिता’ को लेकर चुनाव प्रचार के दौंरान राज्य के निवर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का हास्यास्पद बयान लोंगों के लिए मनोरंजक साबित हुआ ? दुःखद ये है कि ये उम्मीद नहीं की जा सकती थीं कि ’मुख्यमंत्री’ जैसे जिम्मेदार ओहदे पर बैठे व्यक्ति को ये नहीं मालूम कि यह विषय ‘संघ सूची’ का है, जिस पर कानून बनानें हक संसद को है ? यह वक्तव्य न केवल मुख्यमंत्री पद की गरिमा के प्रतिकुल है, अपितू संविधान की मर्यादा को ठेस पहुॅचानें वाला भी है ?
विगत भाजपा शासन काल में तीनों मुख्यमंत्रियों के तथाकथित ’सामान्य’ ज्ञान की खुब चर्चा हुई, पहले उनके अल्प ज्ञान पर खुब तंज कसे गये, फिर चुनाव प्रचार के दौंरान बडे विपक्षी नेताओं नें इसे हथियार बना लिया ? बडी चुनाव रैलियों में प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं नें इन बयानों पर खुब चटकारे लिए, खुब तालियॉ बटोरी गईं परन्तु ये नहीं बताया कि उनके चुनाव जीतनें के बाद राज्य के लिए उनका ’विजन’ क्या है ? पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के महिला के वस्त्र-विन्यास सबंन्धी बयान को लेकर नेताओं नें वाहवाही लुटी ? भले भाजपा शासनकाल के ये तीनों मुख्यमंत्री नकारा साबित हुऐ हों परन्तु, उनके निक्कम्मेपन का कहीं भी जिक्र नहीं हुआ ? उनकी प्रशासनिक अक्षमता और निर्णय लेंनें की क्षमता पर कहीं भी प्रश्न नहीं उठा ? वैश्विक महामारी ’कोरोना’ में सरकार में बैठे नीतिकारों नें लोंगों मरनें के लिए छोड दिया था, बल्कि बडी संख्या में होटल उद्योग व्यवसायों कल-करखानों में लगे लोंगों का भी रोजगार छिन गया और लोग बेरोजगार हो गये ? परन्तु सरकार की तरफ से कोई सूध नहीं ली गईं ? अपनें घर पहाड लौटने पर उन्हें बडे-बडे सपनें तो दिखाये गये पर जमीनी हकीकत कुछ भी नहीं थी ?
चूनाव जितनें और सरकार बनानें को लेकर नेताओं का जातिगत विद्वेष फिर चरम पर था, सांप्रदायिकता को भी खुब परोसा गया, जय श्री राम के नारों के साथ एक पार्टी विशेष नें तो यह संदेश देंनें की पूरी कोशिश की कि पार्टी विशेष से इतर वोट दिया तो हिन्दु खतरे में पड जायेगा ? वहीं विपक्षी दल कॉग्रेस नें जय श्री गणेश के नारों के साथ असली हिन्दू होंनें का दम भरा, आम आदमी पार्टी पहले ही प्रदेश को ’आध्यात्मिक’ राजधानी बनानें को लेकर पहले ही छलांग लगा चूकी थी ? राजनीतिक दलों नें प्रचार के लिए डिजिटल माध्यम का सहारा लिया, लेकिन उससे समाज में जिस तरह का वैमनस्य फैलानें का काम किया, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया, नेताओं के कथित विवादित बयानों/भाषणों को सोशल मीडिया के जरिये गडे. मुर्दे उखाड कर कर जबरदस्ती क्षेत्र, समाज-जाति विशेष के लोंगों को भ्रमित करनें का पूरा प्रयास हुआ ?
ऐंन चुनावों के वक्त नेताओं की पार्टी-दलोें के प्रति जो निष्ठा बदली वह सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक करनें वाली थी, हालॉकि नेताओं के लिए इस तरह की घटना कोई ज्यादा मायनें नहीं रखती, परन्तु बडे पैमानें पर नेताओं का दल-बदल भविष्य की अच्छी राजनीति का संकेत नहीं हैं ? जिस पार्टी/नेता नें उन्हें विधायक, मंत्री, राज्य मंत्री दर्जाधारी यहॉ तक की पार्टी के भीतर विशिष्ट पदों की कमान सौेपी थीं, पूर्व में पार्टी अध्यक्ष रहे किशोर उपाध्याय, डॉ0 हरक सिंह रावत, ओम् गोपाल रावत आदि बडे नामों की बडी लम्बी फेहरिस्त है, जो इतिहास बनानें जा रही हैें, जिन्होंनें मौके की नजाकत देख तुरंत पाला बदला ? पार्टी/गुटों के भीतर आपसीं ख्ंिाचातानी और भितरघातियों की सक्रियता से नुकसान भले प्रत्याशी/पार्टी दल को हुआ हो किन्तु अच्छे उम्मीदवार की जीत पर भी प्रश्न चिंन्ह लगा? कहा जा सकता है कि ये नेता उसी दल/नेता के नहीं हुऐ, तो आम जनता के क्या हो पायेंगें ? आम जनमानस उन कैसे भरोसा कर सकेगा ? अपनीं राजनीति महत्वाकॉक्षा व कुर्सी की लालसा नें देवभूमि के नेताओं नें यू0पी0 और बिहार से जैसे राज्यों के नेताओं को भी पीछे छोड दिया ? अब हम किस संदर्भ में उत्तराखण्ड देवभूमि में बसा प्रदेश कहेंगें ?
विधान सभा चुनाव-2022 के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है, कि इसनें जमीनी मुद्दों को कहीं नहीं छुआ ? चंद नेताओं की महत्वाकॉक्षा और स्वार्थ पूर्ति की लडाई में चुनाव निपट गया, जबकि वास्तविक मुद््दे वाट जोहते रह गये ? राज्य के सपने चकनाचूर हुऐ ? खेत-खलिहानों से लेकर आम व्यक्ति व पहाड का विकास केवल भाषणों तक सिमटे रहे ? काश्तकार-किसान सुअर, लंगूर और भालूओं से अपनीं फसलों को नुकसान पहुॅचानें, की गुहार के साथ माल्टा को बंदरों व पक्षियों से बचानें के लिए उपर्युक्त खरीददारों की तलाश में बिचौलियों को औने-पौने दामों पर बेचनें के लिए मजबूर हैं ? खेती-किसानी की समस्या के साथ उत्तराखण्ड की बडी समस्या बेरोजगारी व पलायन है, इसके कोई ठोस नीति-निर्धारण चुनावों से लगातार दूर थीं ? यानि आम जनता फिर अपनें आप को ठगा सा महसूस करेगी ?
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