युवाओं की यह सोच है कि धर्म ग्रंथ बुढ़ापे में पढ़ने के लिए होते हैं। श्रीमद्भागवत जैसे ग्रंथ को भी युवा नहीं पढ़ते हैं, इसे भी वृद्धावस्था में समय काटने का साधन मानते हैं लेकिन सच यह है कि यह ग्रंथ केवल युवाओं के लिए है। यह युवा अवस्था की ही कहानी है और इसमें जीवन प्रबंधन के जो सूत्र हैं वे भी युवाओं के लिए हैं, जीवन के उपयोगी सूत्र हैं। महात्मा गांधी ने अपनी युवा अवस्था में इस ग्रंथ को पढ़ा था और उसके बाद ही उनके जीवन में वह बदलाव आया, जिसने उन्हें बेरिस्टर मोहनदास गांधी से महात्मा गांधी बना दिया।
इसमें जीवन प्रबंधन के गूढ़ रहस्य हैं, जिन्हें कई लेखक प्रेरित होकर जीवन प्रबंधन की अपनी पुस्तकों में शामिल कर रहे हैं।
ऐसा क्या है श्रीमद्भागवत में ••••••••
वास्तव में भागवत पुराण भगवान विष्णु के अवतारों की कहानी है। भगवान के चौबीस अवतारों का वर्णन है, जिसमें भगवान ने जीवन में सफलता के सूत्र स्थापित किए हैं। महर्षि वेद व्यास ने इसकी रचना करते समय युवाओं को ही ध्यान में रखा, इसलिए इस पूरे ग्रंथ के सूत्रधार दो युवा ही हैं। पहले हैं राजा परीक्षित जिन्होंने यह कथा सुनी और दूसरे हैं वेद व्यास के 16 वर्षीय पुत्र शुकदेव जिन्होंने राजा परीक्षित को यह कथा सुनाई। इस ग्रंथ की विशेषता यह है कि इसमें जितनी भी कहानियां हैं, अधिकांश युवाओं की है जिन्होंने अपने युवा जीवन में अद्भुत कर्म किए। इसमें वृद्धावस्था का वर्णन बहुत थोड़ा है, सारे युवा राजाओं, भगवान के अवतारों की ही कथा है। जिनके जरिए यह संदेश दिया गया है कि अगर मनुष्य अपने लक्ष्य को जल्द ही पहचान ले तो वह बहुत कम समय में कैसे अधिक सफलता हासिल कर सकता है और जीवन के सारे सुख भोग सकता है।
यह ग्रंथ युवा अवस्था के ऐसे डर को दूर करता है जो अमूमन हर व्यक्ति के जीवन में होते हैं। अगर आपके जीवन में भी ऐसे कोई डर हों, सही रास्ता नहीं सूझता हो, मन में अशांति रहती हो तो श्रीमद्भागवत का पाठ करें और इसमें छिपे सफलता के सूत्रों को समझने का प्रयास करें, आपको खुद के भीतर ही परिवर्तन महसूस होने लगेगा। श्रीमद् भागवत से प्राप्त भक्ति, ज्ञान और वैराग्य जीवन में बदलाव लाते हैं। मनुष्य अधर्म अर्थात गलत कार्यों को छोड़कर धर्म के अर्थात़् अच्छाई के मार्ग पर चलता है। जब मनुष्य प्रत्येक वस्तु या प्राणी में ईश्वर को देखता है तो अन्याय, अनीति, अत्याचार और अपमान करने से बचता है। उसमें दया और सद्भाव के गुण आते हैं। माया-मोह, लोभ, मद और वासना जैसी बुराइयों से मुक्त हो जाता है। आज जब सारे संसार में आपसी द्वेष और स्वार्थ का युद्ध छिड़ा हुआ है, ऐसे में श्रीमद् भागवत ही संपूर्ण विश्व को मानवता, सद्भाव और संवेदनशीलता का संदेश दे सकती है। श्रीमद् भागवत केवल मानव-मानव के बीच ही नहीं प्राणीमात्र के प्रति हमें सहिष्णु बनाती है, वहीं प्रकृति और मनुष्य के बीच भी समन्वय स्थापित करती है। आवश्यकता इस बात की है कि हम श्रीमद् भागवत को आज के संदर्भ में समझें और जन-जन को इसके संदेश से परिचित कराएं।
911 total views, 3 views today