युवा नशे के मकड़जाल में फंसकर बर्बादी के कगार पर पहुंच रहे हैं। इससे उनकी सेहत तो खराब हो ही रही है साथ ही उनका सामाजिक स्तर भी गिरता जा रहा है। नशे का सामान मेडिकल स्टोरों और बुक डिपो आदि पर आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इस पर रोक लगाने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग की ओर से बार-बार कार्रवाई की जाती है, लेकिन इसके क्रेता और विक्रेता अपनी आदत में बदलाव लाने को तैयार नहीं हैं। युवा वर्ग नशे के दलदल में फंसता जा रहा है। नशाखोरी की आदत 12 से 28 साल तक के युवाओं में अधिक देखने को मिल रही है। इससे आने वाली पीढ़ी के भविष्य पर संकटों के बादल मंडराने लगे हैं। यह नशा शराब या सिगरेट का नहीं है, बल्कि गांजा, कोकीन, अफीम, डेंडराइट, स्मैक और नशीली दवाओं का है। इस तरह का नशा करने की वजह से युवाओं की मानसिक स्थिति बिगड़ती जा रही है। युवा पीढ़ी द्वारा नशे के ज्यादा आदि हो जाने से अपराध भी लगातार बढ़ रहे हैं।
आज देश बुरी तरह से नशे की समस्या से जूझ रहा है। यह बेहद जटिल और बहुआयामी मुद्दा है जो देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक ताने बाने को क्षति पहुँचा रहा है। नशीली दवाओं की लत लगातार बढ़ने से निजी जीवन में अवसाद, पारिवारिक कलह, पेशेवर अकुशलता और सामाजिक सह-अस्तित्व की आपसी समझ मे समस्याएं सामने आ रही हैं। हमारे युवा नशे की लत के ज्यादा शिकार हैं। चूँकि युवावस्था में कैरियर को लेकर एक किस्म का दबाव और तनाव रहता है। ऐसे में युवा इन समस्याओं से निपटने के लिए नशीली दवाओं का सहारा लेता है और अंततः समस्याओं के कुचक्र में फंस जाता है। इसके साथ ही युवा एक गलत पूर्वधारणा का भी शिकार होते हैं। उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर धुएँ के छल्ले उड़ाना और महँगी पार्टीज में शराब के सेवन करना उच्च सामाजिक स्थिति का प्रतीक भी जान पड़ता है। यदि भारत सरकार के नशे की स्थिति पर हालिया आंकड़ांे को देखें तो ये बेहद चैंकाने वाले है। यहाँ की 10 फीसदी से अधिक आबादी अवसाद, न्यूरोसिस और मनोविकृति सहित मानसिक विकारों से पीड़ित है। इसके साथ ही प्रत्येक 1000 में से 15 व्यक्ति नशीली दवाओं का सेवन करते हैं और प्रत्येक 1000 में से 25 लोग क्रोनिक अर्थात स्थायी शराब सेवन के शिकार हैं। भारत में मनोरोग और नशा मुक्ति बिस्तर की उपलब्धता आवश्यक संख्या का केवल 20 प्रतिशत है। इस प्रकार, देश भर में 80 प्रतिशत मनोरोगी और नशा की समस्या से पीड़ित रोगियों को अस्पताल की सुविधा भी मयस्सर नहीं होती। जब नशीली दवाओं का दुरूपयोग किसी व्यक्ति के सामान्य और पेशेवर जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करता है तो उसे नशे का लती कहा जाता है। यह न सिर्फ नशेड़ी व्यक्ति के व्यक्तित्व में परिवर्तन लाता है बल्कि उसके आसपास रहने वाले व्यक्तियों के व्यवहार में भी चिड़चिड़ापन ला देता है। सामान्य शब्दों में कहे तो एक नशेड़ी व्यक्ति अपने आसपास के समाज पर एक लहर प्रभाव उत्पन्न करता है जिसके कारण शनै-शनै सामाजिक ताना बाना बिगड़ता जाता है।
नशे की लत इतनी ज्यादा खतरनाक है कि कई बार लोग इसके अति सेवन से और न मिलने पर आत्महत्या तक कर डालते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार नशे की लत के कारण लोग बड़ी संख्या में अपनी जीवन की लीला को समाप्त कर रहे हैं।
यदि निवारक उपायों की बात की जाए तो सरकार ने नशीली दवाओं की मांग में कमी लाने हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना, नशा मुक्त भारत अभियान आदि जैसी विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों की शुरुआत की है। नशीली दवाओं की मांग में कमी लाने हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना का उद्देश्य जागरूकता सृजन, क्षमता निर्माण, नशा मुक्ति और पुनर्वास के माध्यम से नशीली दवाओं की मांग को कम करना है। नशा मुक्त भारत अभियान का उद्देश्य स्कूली बच्चों में नशीली दवाओं के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। इसके साथ ही सरकार ने निदान और एनसीओआरडी (छब्व्त्क्) नामक पोर्टल की शुरूआत की है। यह एक डेटाबेस है जिसमें छक्च्ै अधिनियम के तहत गिरफ्तार किये गए सभी संदिग्धों और दोषियों की तस्वीरें, उंगलियों के निशान, अदालती आदेश, जानकारी एवं विवरण शामिल हैं, जिसे राज्य तथा केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा एक्सेस किया जा सकता है।
नशे की समस्या से निपटने हुए भारत के समक्ष पर्याप्त चुनौतियाँ भी हैं। सबसे पहले तो इस दिशा में पर्याप्त बुनियादी ढाँचे का अभाव है। नशीले पदार्थों की तस्करी और दुरुपयोग से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये प्रशिक्षित कर्मियों, विशेष उपकरणों और उचित बुनियादी ढाँचे की कमी है।इसके अलावा भारत में नए साइकोएक्टिव पदार्थों का उपयोग बढ़ रहा है और ये दवाएँ अकसर मौजूदा ड्रग नियंत्रण कानूनों के अंतर्गत नहीं आती हैं। इस कारण से कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिये उन्हें प्रभावी ढंग से विनियमित करना जटिल हो जाता है। इसके अलावा डार्क नेट इजिंग ड्रग ट्रैफिकिंग की भी समस्या सामने आ रही है। नशीली दवाओं की समस्याओं से निपटने हेतु सरकार को मौजूदा कानूनों के प्रवर्तन को सख्त बनाना होगा। इसके साथ ही निवारक उपायों के प्रभावी उपयोग को भी सुनिश्चित करना होगा। इसके साथ ही अफीम की खेती एम अवैध रूप से संलग्न किसानों के लिए वैकल्पिक फसल योजना की भी शुरूआत करनी होगी।