साल दर साल बदलते रहे, पर ढर्रा नहीं…… ?

देव कृष्ण थपलियाल। बात सरकार के एक भारी-भरकम मंत्री जी के एक बयान से शुरू करते हैं, जिससे राज्य के हालातों का कुछ जायजा लिया जा सकेगा। सूबे के जिले रूद्रप्रयाग के मुख्यालय में विकास कार्यों की समीक्षा करते-करते मंत्री जी ने जिले की खराब-हालत सडकों की दूर्दशा भी बयॉ कर दी। खस्तेहाल सडकों की तस्वीर देखकर शायद वे ये भूल गये कि जिन उबड-खाबड सडकों की बात वे कर रहे हैं, उसके मंत्री वे स्वयं हैं उनकी मरम्मत और रख-रखाव का जिम्मा स्वयं उन्ही का है, तो फिर उन्हें ये दर्द कैसा ? स्थिति निश्चित रूप से भयावह है ? राज्य के पहाडी हिस्सों में आये-दिन खराब सडकों से दुर्घटनाओं का ग्राफ निरंतर बढ रहा है, जबकि असमय मौतों, खुशियों को मातम बदलते देखनें की फेहरिस्त हो, नौजवानों का बाइक-कारों से दुर्घटनाग्रस्त होना हो, के पीछे का सबसे बडा कारण खराब हालात सडकें ही हैं ? पिछले दिनों विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान भी मंत्री जी स्वीकार किया। राज्य में कुछ कंपनियॉ मनमाने तरीके से सडकों का निर्माण कर रही हैं, पिछले छह सालों में मात्र 1465 किलोमीटर सडकों का निर्माण हुआ, इन सडकों के निर्माण का काम जिन कंपनियों को दिया गया उन्होंनें काम पूरा करनें में मनमानीं की। भले ही काम पूरा न करनें की एवज में राज्य सरकार नें 306 फर्मों पर आर्थिक जुर्माना भी लगाया ? जिले की दूसरी प्रतिनिधि माननीया विधायक जी ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा कि उनके क्षेत्र में तो कोई विकास कार्य हुआ ही नहीं उनके वे अधिकारी-कर्मचारी तैनात किये जाते हैं, जो या ’पनीशमैंट’ के शिकार हैं या निठ्ठल्ले हैं। लैंसडौंन से चार बार के विधायक ने तो साफ स्वीकार किया की उनका क्षेत्र पर्यटन के अवसरों के अनुकूल हैं, पर सरकार नें कुछ नहीं किया ? अभी तक क्षेत्र का जो भी विकास हुआ है, अथवा हो रहा है, उनके निजी प्रयासों से ही हुआ है, अब इसे बिडम्बना ही कहेंगें की सरकार नुमांइदे ही जब ऐसी दलीलें देंनें लग जाय तो फिर पहाडी राज्य के विकास की आस ही व्यर्थ है ?
बेलगाम अफसरशाही को लेकर पिछले माह मसूरी स्थित लाल बाहदूर शास्त्री ऐकेडमी में तीन दिन का ’चिंतन शिविर‘ संपन्न हुआ, जिसमें मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव नें ऐसे सभीे अधिकारी-कर्मचारियों से सख्ती से निपटनें की बात कहीं जो जनहित के कामों में को रूकावट पैदा करते हैं, उन्होंनें फाइलों की लेटलतीफी के लिए जिम्मेदारी तय करनें की भी बात हुई, बावजूद हालात में कोई सुधार नजर नही आता है ?
तमाम जनांदोलनों के बाद भी इस साल का सबसे चर्चित ’’अंकिता हत्याकांड’’ को जिस गतिशीलता से न्याय मिलनें की उम्मीद थीं, अब वह धीरे-धीरे समय बदलनें के साथ धूमिल पडनें लगी है ? पूरे राज्य के लोंगों नें इस मामले को सी0बी0आई को सोंपनें की मॉग कर कर रहें हैं, लेकिन सरकार अपनीं जिद्द पर अडी हुई है, जिसे सरकार माननें को तैयार नहीं है । सरकार द्वारा की गईं कार्यवाही पहले ही संदेह के दायरे में रहीं। सबूतों को मिटानें को रिर्जाट में आग लगा दी, आरोपी की फैक्ट्री को जला दिया गया तथा तत्कालीन जिले के डी0एम0-एस0एस0पी को हटाना इस बात की ओंर संकेत कर रहा है, कि सब कुछ ठीक नहीं हैं, फिर राज्य सरकार सी0बी0आई को मामले को सोंपनें में इतनीं कोताही क्यों कर रही है ?
उत्तराखण्ड राज्य अधीनस्त चयन आयोग यू0के0एस0एस0एस0सी घोटाले को लेकर भी सरकार राज्य के होनहार युवाओं को आश्वस्त नहीं कर पाई कि उनके भविष्य के साथ किसी प्रकार का खिलवाड नहीं किया जायेगा ? कुछ अधिकारियों पर कार्यवाही अवश्य हुई है, किन्तु बडे मगरमच्छ अभी पकड से बाहर हैं, इसी बात को लेकर युवा संशकित हैं, एक अविश्वास का वातावरण अभी भी पूरे राज्य में कायम है। एक अदनें से जिला पंचायत सदस्य के ऊपर पूरी गफलत का ठीकरा फोडना ’समझ से बाहर’ है । अभी जॉच वहॉ तक पहुॅची ही नहीं जहॉ असली गुनहगार हैं ? ये सभी जानते हैं, जॉच के नाम समस्या को उलझाए रखनें से अविश्वास ही बढेगा । दरोगा भर्ती घोटाले के आरोपियों की संपत्ति में बेशुमार इजाफा हुआ है, एक-एक भर्ती में 10 से 15 लाख रूपये लिए जाने का अंदेशा है, पूरी भर्ती प्रक्रिया में 15606 अभ्यार्थियों नें परीक्षा दीं जिससे 339 का चयन हुआ। विजिलेंस नें जॉच शुरू होते ही नकल सिंडिकेट और परीक्षा संस्थान के संदिग्ध आरोपियों की संपत्ति का डाटा खंगालना शुरू किया तो करीब 50 आरोपियों के खजानें में दोगुनी से भी ज्यादा वृद्वि हुई हुई है, पाई गईं।
विधान सभा बैकडोर भर्तियों को लेकर काफी हंगामा बरपा, साल 2016 के बादं नियुक्त सैकडों कर्मियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है, हालांकि इसे ’ठोस कार्यवाही’ या ’बहुत बढिया सोच’ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इन कर्मियों की बर्खास्तगी से उनकी रोजी-रोटी, बच्चों की पढाई व बूढे मॉ-बाप की देखरेख का संकट खडा हो गया है ? अब सवाल ये भी है, कि उन्हें नौकरी पर रखनें वाले क्यों आजाद हैं ? अब ऐसे 228 कर्मियों व उनके परिवारों के भविष्य के सामनें एक बडा संकट खडा हो गया है, उन्हें बीच मझधार में छोडना भी अन्याय जैसा ही है । फिर सरकारी खजानें से गई उनकी मोटी पगारों का हिसाब कौंन देगा ? इस पर भी चर्चा जरूरी है ? वैसे भी सरकारी लूट की चर्चा अब सामान्य हो चली है, जनता की खून-पसीनें की गाढी कमाई को नेता-अफसर कुछ समझते ही नहीं है। हर साल आनें वाली ‘कैग‘ रिर्पोट इसकी तस्दीक कर रही होती है।
साल 2018-19 की ‘कैग रिर्पोट भी महत्वपूर्ण संस्थानो की वित्तीय कुप्रबंधन और कमजोरियों को ही उजागर कर रही है, शहरी निकायों से लेकर पंचायतों तक वसूली में फिसड्डी है, अपितू इनमें संसाधनों की बर्बादी भी खूले हाथों से की गईं है। रिर्पोट के अनुसार राज्य के 13 में से 11 जिला पंचायतों में ’सम्मति कर’ व किराये की वसूली नहीं की गईं। न पट्टे से आय का निर्धारण किया गया ऑकडे बता रहे हैं, कि इससे इन जिला पंचायतों में करों की आय में 9.4 करोड रूपये की कमी दर्ज हुई । 18 पंचायती राज संस्थाओं नें ठेकेदारों से 51.31 लाख रूपये की रायल्टी नही वसूली गईं पिछडा क्षेत्र अनुदान निधि के तहत जिला चमोली व चंपावत जिले में 8.74 करोड की लागत से 528 कार्य करीब पॉच करोड रूपये खर्च करनें के बाद भी अधुरे पडे हुए हैं । एक हजार से अधिक कार्य 17 करोड रूपये का बजट उपलब्ध होंनें के वाबवजूद आधा-अधुरे पडे हुए हैं। सीमान्त जनपद चमोली में 52.87 लाख रूपये की लागत से बनें चार पर्यटक अतिथि गृह बिना इस्तेमाल के पडे हुए हैं। कई जगह पंचायतों में बिल, स्टोर, मस्टरोल और संपत्ति स्टोर तक नहीं हैं। वही राज्य के शहरी निकायों में गृह कर की वसूली 13 से 74 फीसदी तक ही हो पा रही है। कोई भी शहरी निकाय 90 प्रतिशत से अधिक कर वसूली के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया। चार निकायों नें दुकान के किराये के रूप में भी 138 लाख की वसूली लंबित थीं। वही निकायों पर कर्मचारियों का वेतन, पेंशन बकाया के रूप में भी 52.88 करोड रूपये का बकाया चल रहा है।
पहाड में लोग रोजगार और मजबूत आर्थिकी के अभाव में पहले ही गॉवों को छोड चुके है,ं वन्य जीवों व जंगली जानवरों के आतंक से खेती-बाडी व कृषि को जो नुकसान हुआ उसकी परिणिति ये हुईं की लोंगों नें तंग आकर उपजाऊ-तलाऊ खेती ही छोडकर मैंदानी इलाकों में पलायन करनें को मजबूर हो गये ? आज स्थिति ये है, कि ये हिंसक जंगली जानवर मासूम लोगों को निशाना बनानें में लगे हुए हैं, पिछले तीन सालों में 161 लोंगों की जान ले ली तथा 641 लोंगों को बूरी तरह से घायल कर दिया । 66 लोग गुलदार, 28 हाथी, 13 लोग बाघ 44 सॉप तथा 05 लोग वन्य जीवों के शिकार हुए, जबकि 186 लोग गुलदार नें घायल कर दिए, भालू नें 178, हाथी नें 27, सॉप नें 145 बाघ नें 23 लोंगों को बूरी तरह से घायल कर दिया। भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिक डॉ0एस0 सत्यकुमार के अनुसार मानव वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों का कम होंना है, तथा मानवीय दखलअंदाजी की वजह से भोजन पानीं का संकट गहरा चूका है।
पहाडों में अभी तक जो भी विकास हुआ है, वह दिल्ली-देहरादून के व्यवसायियों व अमीरांे के लिए हुआ, पहाडों में सैर-सपाटा और उनकी पहली पंसद रही है। कर्णप्रयाग-ऋषिकेष रेल लाइन हो चाहे केदारनाथ पुर्ननिर्माण, बडी-बडी हेली-सेवाओं की सेवा लेंना हो ? इन सबसे यहॉ की बेशुमार खुबसूरत व समृद्व प्राकृतिक संपदा और उनमें निवास करनें वाले वन्य जीवों के सामनें भोजन व जीवन का संकट खडा हो गया है, जिससे वे कई भरी दोपहरी में गॉव-कस्बों में सरेआम घूमते-विचरण करते हुए, देखे जा सकते हैं, शाम ढलते अथवा बच्चों-महिलाओं को अकेले पाकर सीधे शिकार करनें में बाज नहीं आते, बंदर, सुअरों, भालूओं ने ंतो खेत-खलियानों को बंजर कर ही दिया है, जिससे पहाड लोंगों नें खेती-कृषि को अलविदा कह चूके है। पर अब यहॉ रहनें वाले वाशिंदों को जान बचानें के भी लाले पडे हुए हैं। बार-बार सरकारों के दावों-वादों से पहाड के लोग हताशा हैं, नये राज्य की अवधारणा सत्ता के गलियारों में कहीं खो सी गईं है। समर्थ लोगों नें यहॉ से खिसकनें की नीति अपनाई, तो गरीब लोंग अपनीं बद नसीबी पर ऑसू बहा रहे हैं, शायद इससे अतिरिक्त दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है ?

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