-हेमचन्द्र सकलानी
अनोखे व्यक्तित्व के धनी प्रिय आनंद सिंह “आनंद” जी का काव्य संग्रह “शब्दों के हार” अभी हाल में इसका लोकार्पण हुआ मुझे प्राप्त हुआ। सबसे पहले तो पुस्तक के शीर्षक “शब्दों के हार” ने मुझे मोहित करके रख दिया।`शब्द` जिसे ब्रह्म मान पूजा प्रार्थना मंत्र आदि में हमारी संस्कृति में पूजा गया उसका हार पाठकों के सामने पहुंचा तो मन का प्रफुल्लित होना स्वाभाविक था। लगभग 25 वर्षों से आनंद जी से परिचित हूं और मैं यह मान कर चलता हूं कि साहित्य की रचना धर्मिता में लेखक के व्यक्तित्व के भी हमें दर्शन होते हैं।उनके शांत,निश्चल,निर्मल स्वभाव की झलक उनकी रचनाओं में भी हमें देखने को मिलती है। काव्य संग्रह की उनकी 51 रचनाओं में हमे अलग-अलग तरह के प्रतिबिंब देखने को मिलते हैं।
प्रसिद्ध साहित्यकार असीम शुक्ल जी ने कितना सही आनंद जी के बारे में लिखा है “सीधे-साधे सरल सहज दिखने वाले भाई आनंद सिंह जी का व्यक्तित्व संग्रह की रचनाओं में सहज ही बिम्बित हो उठता है। हर रचना अपने अलग रंग में है।” निसंदेह संगति विसंगति एक ही सिक्के के दो पहलू जैसे हैं अगर विसंगति न हो तो संगति का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। वहीं डॉ विजेंद्र पाल शर्मा जी ने आनंद जी के काव्य संग्रह की रचनाओं पर अपनी सुंदर सटीक अभिव्यक्ति यह कह कर दी कि “आनंद की रचनाएं पर्वों,उत्सवों की मनभावन चित्रशाला है तो ऋतुओं की अठखेलियां भी इनमे बड़े जतन से साकार हुई हैं।”
प्रसिद्ध कवि शिव मोहन सिंह जी बिना किसी लाग लपेट के बड़े सरल शब्दों में काव्य संग्रह से गुजरने के बाद कहते हैं “शब्द कवि के लिए मात्र शब्द नहीं होता वरना उसके गर्भ में एक सार होता है जो विस्तार परक होता है। कवि जब लिखता है तो पूरी कोशिश करता है शब्दों में निहित सार अपना पूर्ण विस्तार भर कर,संदर्भ सहित पाठक के मानस पटल पर अपने यथार्थ को अंकित करे।”
कविता हो कहानी हो या साहित्य की कोई भी विधा हो बिना भावों में मंथन से जन्म नहीं ले सकती है यह मंथन सिर्फ संवेदनशील व्यक्ति में ही हो सकता है और मंथन से सिर्फ सत्य और यथार्थ निकल कर आता है। और फिर वही रचनाएं सफल सिद्ध होती हैं या पाठक को श्रोताओं को मंत्रमुग्ध या प्रभावित करती हैं। भाव विहीन रचना, रचना नहीं होती वह तालियां जो बजवा देगी लेकिन हिर्दय को स्पर्श नहीं करेगी और जो स्पर्श न करें जो कोई सार्थक सुंदर संदेश न दे रही हो वह रचना हो ही नहीं सकती।
कवि पवन शर्मा जी बड़ी सुंदरता से आनंद जी की रचनाओं के बारे में अपना मत व्यक्त करते हैं कि “आनंद जी स्वयं यथार्थ में विश्वास करते हैं, कर्मठता उनके रग-रग में बसी है,वो साहित्य के लिए अपना अमूल्य समय निकालने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। वेदना संवेदना दर्द को अंदर तक महसूस करते हैं फिर वही सब उनकी कविताओं से होकर कागज पर उतरता है।” निसंदेह साहित्य सृजन करना बहुत से लोगों के लिए बहुत आसान सा काम होता है बिल्कुल हंसी खेल बातें बनाने जैसा, लेकिन कुछ के लिए रचना धर्मिता किसी पूजा तपस्या साधना आराधना से कम नहीं होती बहुत कुछ सहना झेलना व्यय करना पड़ता है। अंत में आनंद जी को बधाई उन्हीं की कविता की कुछ सुंदर पंक्तियों का उल्लेख कर के देना चाहूंगा
“बनता मिटता जीवन खेला श्रृंगार सदा ही जीवित है, मानव मन की अभिलाषाएं,मनुहार सदा ही जीवित है।”
“लोग लम्हों के सांचे में ढलते रहे, मौसमों की तरह बदलते रहे।”
“यह जीवन अनमोल बहुत है इसमें सुर संगीत सजा ले,खुश रहना है दुनिया में तो जीवन को तू गीत बना ले।”
“मुश्किल बहुत निवाले होंगे कब सोचा था,पीने गम के प्याले होंगे कब सोचा था। वीर शहीदों वाली इस पावन धरती पर,खुलकर खूब हवाले होंगे,कब सोचा था।” जैसी पंक्तियां बहुत कुछ सोचने को पाठक को मजबूर करती हैं। भावों की सुंदर अभिव्यक्ति आनंद जी की रचनाओं में देखने को मिलती है। बेहद सुंदर काव्य संग्रह में संकलित रचनाओं के लिए,सुंदर कवर पृष्ठ तथा काव्य संग्रह शीर्षक “शब्दों के हार” के चयन के लिए आनंद जी को बहुत बहुत बधाई।🙏🙏🙏☝️🍏