-किया गया अखिल भारतीय ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन
-पंचम अखिल भारतीय संस्कृत ज्ञान प्रतियोगिता के परिणाम हुए घोषित। दस लाख से भी अधिक संस्कृत प्रेमियों ने दिखाई सकारात्मकता
-प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को किया जायेगा पुरस्कृत
-डॉ. मैठाणी के जीवन पर आधारित गीतों पर भावविभोर हुए श्रोता
देहरादून। संस्कृत के उत्थान हेतु अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक कार्य करने वाले राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित, शिक्षाविद् स्व. डॉ. वाचस्पति मैठाणी की 75वीं जन्मजयन्ती बड़ी धूमधाम के साथ अन्तर्राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार के साथ अखिलभारतीय स्तर पर मनाई गई। 165 से अधिक बालकों, युवाओं एवं ज्ञानवृद्ध संस्कृतानुरागी जनों ने प्रतियोगिता में प्रतिभाग करके संस्कृत के प्रचार-प्रसार में सहयोग करते हुए स्वर्गीय डॉ. वाचस्पति मैठाणी का पुण्य स्मरण करते हुए गुणगान किया। कार्यक्रम का आयोजन मुख्य रूप से स्मृति मञ्च के संरक्षक मण्डल एवं पदाधिकारियों की प्रेरणा से प्रेरित होकर कैलाशपति मैठाणी द्वारा किया गया। कार्यक्रम की रूपरेखा उत्तराखण्ड के पूर्व शिक्षामन्त्री मन्त्रीप्रसाद नैथानी ने परिचयात्मक उद्बोधन के साथ प्रस्तुत की तथा स्व. डॉ. वाचस्पति मैठाणी जी के जीवन पर प्रकाश डाला। आनलाईन संगोष्ठी में एक समय में 100 से अधिक तथा सम्पूर्ण कार्यक्रम में 200 से अधिक जिज्ञासुओं ने सम्मिलित होकर डॉ. मैठाणी के व्यक्तित्व का ज्ञानलाभ प्राप्त किया। स्मृति मंच के संरक्षक पूर्व शिक्षामन्त्री ने बताया कि डॉ. वाचस्पति मैठाणी की स्मृति में निरन्तर पाँचवी आनलाइन संस्कृत प्रतियोगिता का आयोजन संस्कृत की विभिन्न प्रतियोगिताओं के साथ किया गया जिसे अब तक दस लाख से भी अधिक लोगों ने अपनी सकारात्मकता दिखाई। जिनके परिणाम निम्नवत् रहे-
संस्कृत देशभक्ति गीत प्रतियोगिता (विजेताप्रतिभागी- 9 से 14 आयु वर्ग में क्रमश: संस्कृति, अनिरुद्ध बहुखंडी, अक्षित बडोनी 15 से 24 आयु वर्ग में कु. गीता, अर्चना, हिमांशु राणा 25 से 50 आयु वर्ग में श्रीकांत दुदपुड़ी, रोशन बलूनी, सुनील कुमार धस्माना 51 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में सरिता मैंदोला, माधव सिंह नेगी, संगीता बहुगुणा प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर रहे।
वाल्मीकि रामायण श्लोकोच्चारण प्रतियोगिता (विजेताप्रतिभागी- 9 से 14 आयु वर्ग में क्रमश: कु. मृणालिनी कांडपाल, आयुष थपलियाल, नियति सेमवाल 15 से 24 आयु वर्ग में कार्तिकेय जगुड़ी, कु. राजुली, साहिल जगुड़ी 25 से 50 आयु वर्ग में सुनील कुमार धस्माना, नीलम थपलियाल, पुष्पा रावत जबकि 51 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में दिनेश चंद्र कांडपाल, संगीता बहुगुणा व माधव सिंह नेगी प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर रहे।
संस्कृत नृत्य प्रतियोगिता (विजेताप्रतिभागी- 6 से 10 आयु वर्ग में क्रमश: कु. अनुकृति नवानी, समृद्धि नेगी, अद्विका राणा 11 से 15 आयु वर्ग में जागृति जोशी, डिंपल गुसाईं, प्राची राणा तथा 16 से 25 आयु वर्ग में संस्कृति धस्माना, कल्पना रावत, वंशिका भट्ट प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर रहे।
आयोजन के मुख्य आकर्षक विषय के रूप में दो सत्रों में क्रमशः “संस्कृत साहित्य में विश्व शान्ति के उपाय” “डॉ. वाचस्पति मैठाणी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व व पञ्चम अखिल भारतीय संस्कृत ज्ञान प्रतियोगिता का परिणाम” रहे। कार्यक्रम के प्रथम सत्र की अध्यक्षता वर्तमान निदेशक संस्कृत शिक्षा डॉ. आनन्द भारद्वाज जी ने की। मुख्य अतिथि की महत्त्वपूर्ण भूमिका में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने की साथ ही अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय कैथल, हरियाणा के कुलपति प्रो. रमेश चन्द्र भारद्वाज रहे। प्रो. भारद्वाज ने कहा कि संस्कृत भारत की आत्मा है और इस आत्मा रूपी संस्कृत के सशक्तीकरण हेतु डॉ. वाचस्पति ने अपना सर्वस्व प्रदान किया। संस्कृतनिष्ठ भारतीय संस्कृति दैवीय सृष्टि है इसके विपरीत पाश्चात्य संस्कृति शैतानी चालचलन के समान है।
द्वितीय सत्र की अध्यक्षता प्रो. दिनेश चन्द्र शास्त्री (कुलपति उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार) ने तथा मुख्य अतिथि की भूमिका में सचिव संस्कृत शिक्षा एवं उत्तराखण्ड शासन दीपक कुमार गैरोला ने किया।
दीपक गैरोला सचिव संस्कृत शिक्षा (शासन) ने कहा कि सभी प्रतियोगिताओं का आनलाईन आयोजन होना अद्भुत, आश्चर्यकारक एवं आकर्षक के साथ-साथ सुविधापूर्ण है। भविष्य में इस तरह की आनलाईन विद्वत् चर्चा निरन्तर होनी चाहिए। संस्कृत के उत्थान प्रचार एवं प्रसार हेतु वैदिक गणित का अध्ययन अध्यापन कराया जाये। डॉ. वीरेंद्र सिंह बर्तवाल ने कहा कि डॉ. वाचस्पति मैठाणी के अथक प्रयासों से ही देवप्रयाग में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। शोधपत्र वाचन करते हुए डॉ. शैलेन्द्र प्रसाद उनियाल, डॉ. ओम प्रकाश पुर्वाल ने वैदिक विभाजन को स्पष्ट करते हुए वेदों में सन्तुष्टी को विश्वशान्ति का उपाय बताया। डॉ. हरीश चन्द्र गुरुरानी ने वेदों में सम्पूर्ण भूमण्डल की शान्ति हेतु शान्तिपाठ जैसे अनेक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए विषय की पुष्टि की। प्रसिद्ध समाजसेविका हरिप्रिया तुरखिया ने गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले सभी प्रतिभागियों को पुरस्कार देने की घोषणा की।
उत्तराखण्ड के जनकवि बेलीराम कंसवाल ने गढ़वाली में, विनय अंथवाल व संगीता बहुगुणा ने हिंदी में, डॉ. कृपाल सिंह शीला ने कुमाऊनी में तथा राजस्थान की श्रीमती सरोज शुक्ला ने संस्कृत में डॉ. वाचस्पति मैठाणी के जीवन संघर्षों पर आधारित सुंदर गीत और कविताएं प्रस्तुत की। जिससे कई बार श्रोता भावुविभोर भी हो गए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुभाष डोभाल एवं कमलापति मैठाणी ने किया। ऑनलाइन मीटिंग में कपार्ट के पूर्व निदेशक डॉ. भगवती प्रसाद मैठाणी, साहित्यकार शंभू शरण रतूड़ी, डॉ. विजय कुमार त्यागी, गांधी विचारक विजय कुमार हांडा, प्रशान्त जोशी, उपेन्द्र मैठाणी, चंद्र किशोर मैठाणी, कमल किशोर बडोनी, दिनेश डोभाल, उत्तम सिंह असवाल, रामलाल नौटियाल आदि ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर श्रीमती संतोषी, श्रीमती कविता, दिवसपति, आलोकपति, एकता एवं उन्नति मैठाणी आदि उपस्थित रहे।
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