देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में कई प्राचीन और अनोखे देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इनमें से कई मंदिरों का इतिहास सैकड़ों साल से भी अधिक पुराना है। ऐसा ही एक अनोखा मंदिर चमोली जिले के जोशीमठ विकासखंड की उर्गम घाटी में स्थित है। इस मंदिर के कपाट भक्तों के लिए साल में केवल एक दिन खुलते हैं। माना जाता है कि साल के बाकी 364 दिन यहाँ देवर्षि नारद भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं। इस मंदिर के कपाट रक्षाबंधन पर ही खोले जाते हैं और उसी दिन सूर्यास्त से पहले बंद भी कर दिए जाते हैं। यह मंदिर है भगवान वंशीनारायण मंदिर। यह मंदिर काफी लोकप्रिय है। भक्त साल भर इस मंदिर के दर्शन नहीं कर पाते, क्योंकि यह पूरे साल बंद रहता है। मंदिर के कपाट खास दिन पर सिर्फ 12 घंटों के लिए खोले जाते हैं। जिस दिन मंदिर के कपाट खुलते हैं, श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है। लोग यहां इस दिन पूजा अर्चना करते हैं और भगवान बंशी नारायण का आशीर्वाद लेते हैं।
भगवान वंशीनारायण मंदिर समुद्रतल से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवकाल में हुआ था। मंदिर कत्यूरी शैली में बना हुआ है और इसकी ऊँचाई 10 फीट है। इस मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है और मंदिर में स्थापित प्रतिमा में भगवान विष्णु और भोलेनाथ के एक साथ दर्शन होते हैं। एक पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार राजा बलि ने भगवान नारायण से आग्रह किया कि वे पाताल लोक की देखरेख संभालें। राजा बलि के कहने पर भगवान नारायण ने पाताल लोक में द्वारपाल की जिम्मेदारी संभाल ली। तब माता लक्ष्मी उन्हें ढूंढते हुए देवर्षि नारद के पास वंशीनारायण मंदिर पहुंचीं और उनसे भगवान नारायण का पता पूछा। तब नारद जी ने माता लक्ष्मी को बताया कि भगवान पाताल लोक में द्वारपाल बने हुए हैं। यह सुनकर माता लक्ष्मी बहुत परेशान हो गईं। तब नारद जी ने उन्हें भगवान नारायण को मुक्त कराने का उपाय बताया। देवर्षि नारद ने माता लक्ष्मी से कहा कि आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि के हाथों में रक्षासूत्र बांधकर उनसे भगवान को वापस मांग लें। तब माता लक्ष्मी ने नारद जी से कहा कि उन्हें पाताल लोक का रास्ता नहीं पता है और उनसे भी साथ चलने को कहा। तब नारद माता लक्ष्मी के साथ पाताल लोक गए और भगवान को मुक्त कराकर ले आए। मान्यता है कि सिर्फ यही दिन था जब देवर्षि नारद वंशीनारायण मंदिर में भगवान की पूजा नहीं कर पाए। उस दिन उर्गम घाटी के कलकोठ गांव के जाख पुजारी ने भगवान वंशी नारायण की पूजा की। तब से यह परंपरा चली आ रही है। रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के भोग के लिए मक्खन आता है। इस दिन भगवान वंशीनारायण का फूलों से श्रृंगार किया जाता है और श्रद्धालु व स्थानीय ग्रामीण भगवान वंशीनारायण को रक्षासूत्र बांधते हैं।
यह मंदिर 6 फीट से भी लम्बी विशालकाय शिलाओं से बना है। मान्यता है कि पांडवों यहीं से होकर बद्रीनाथ के लिए आगे बढे। मंदिर के पास नारायण की फूलों की बगिया हैं जहां स्थानीय लोग फूल नहीं तोड़ते साथ ही स्थानीय भेड़ बकरियां और जानवर भी इस स्थान पर नहीं जाते। स्थानीय लोग रक्षा बंधन के दिन यहां पूजा-अर्चना के लिए बड़ी संख्या में पहंुचते हैं। सबसे बड़ा आश्चर्य कि कुंवारी कन्याएं और विवाहित महिलाएं पहले वंशीनारायण को राखी बांधती हैं और फिर अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं। कत्यूरी शैली में बने 10 फिट ऊंचे इस मंदिर का गर्भगृह भी वर्गाकार है। यहां भगवान विष्णु चर्तुभुज रूप में विद्यमान हैं। मंदिर में स्थापित प्रतिमा में भगवान विष्णु और भोलेनाथ के एक साथ दर्शन होते हैं।
रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के लिए मक्खन आता है। इसी मक्खन से प्रसाद तैयार होता है।
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