उत्तराखंड के युवा उद्यमी मोहित मैठाणी ने पहाड़ में स्वरोजगार का अनूठा मॉडल स्थापित किया

 देहरादून, गढ़ संवेदना न्यूज। उत्तराखंड के एक युवा उद्यमी, मोहित मैठाणी, ने अपनी माटी और लोगों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता दिखाते हुए लाखों की विदेशी नौकरी को ठुकरा कर पहाड़ में स्वरोजगार का एक अनूठा मॉडल स्थापित किया है। दिल्ली से बी.फार्मा की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह राष्ट्रीय राजधानी के कई प्रतिष्ठित अस्पतालों और कंपनियों से जुड़े रहे। इसके बाद, उन्हें विदेश में नौकरी करने का एक प्रस्ताव मिला, इसके साथ ही विश्व स्वस्थ्य संगठन के साथ मिलकर उन्होंने कई देशांे में अपनी सेवाएं भी दी, परन्तु, कोरोना महामारी के दौरान विदेश में कार्यरत आकर्षक नौकरी को ठुकराते हुए उन्होंने अपने पैतृक गांव लौटकर स्वरोजगार की दिशा में कदम बढ़ाया।


टिहरी जिले के विकासखंड कीर्तिनगर के न्यूली गांव निवासी मोहित का स्व-रोजगार मॉडल न केवल उनकी व्यक्तिगत सफलता है, बल्कि उनके गांव की औरतों और पुरुषों के लिए भी रोज़गार का जरिया बन गया है। उन्होंने पहाड़़ के लुप्त हो रहे उत्पादों को संरक्षित करने और उन्हें बाजार में एक नई पहचान दिलाने का काम किया है। सरकारी योजनाओं का उपयोग कर उन्होंने अपने गांव में एक मसाला उद्योग-‘मैठाणी पहाड़ी मसाले’ स्थापित किया, जहां आज आधुनिक मशीनों से सुध और उच्च गुणवत्ता वाले मसाले तैयार किये जा रहे हैं। इस कदम से उन्होंने न केवल खुद का बल्कि गांव के कई लोगों का भविष्य संवारने का काम किया है, जिससे उत्तराखंड में रिवर्स पलायन की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।


मोहित के उत्पादों की मांग आज टिहरी, पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग, देहरादून, हरिद्वार जैसे उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में ही नहीं, बल्कि दिल्ली, चंडीगढ़ और गुड़गांव जैसे प्रमुख शहरों में भी है। उन्होंने पहाड़ के शुद्ध और प्राकृतिक मसालों को देश-विदेश में पहुंचाने का बीड़ा उठाया है, जिससे न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है बल्कि प्रवासी लोगों के लिए भी एक प्रेरणा बन चुके हैं। उनके प्रयासों से कई प्रवासी लोग भी अब अपने गांव लौटकर स्वरोजगार को अपना रहे हैं।
इसके अलावा, मोहित मैठाणी को कविता और गजल लिखने का भी शौक है। वे नियमित रूप से कवि सम्मेलनों में भाग लेते हैं और अपनी कविताओं और गजलों के माध्यम से समाज को प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी में पहाड़ों की सादगी और जीवन के संघर्ष की झलक मिलती है।


अपने बेटे की शिक्षा के लिए भी मोहित ने एक अनूठा कदम उठाया। उन्होंने अपने बेटे को पहले देहरादून के प्रतिष्ठित स्कूल से गांव के विद्यालय में दाखिला दिलाया ताकि वह अपनी जड़ों से जुड़ा रहे। बाद में उन्होंने उसे श्रीनगर के एक स्कूल में दाखिल कराया ताकि उसे उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति का ज्ञान मिल सके।
पिता के देहांत के बाद मोहित ने अपने परिवार को शहर से गांव वापस लाने का निर्णय लिया और उन्हें स्व-रोजगार के प्रति प्रेरित किया। मोहित मैठाणी के उद्योग ‘मैठाणी पहाड़ी मसाले’ से तैयार शुद्ध मसाले और उत्पाद आज बड़े बाजारों में अपने स्वाद और गुणवत्ता से लोगों का दिल जीत रहे हैं।

 469 total views,  469 views today

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *