उतराखंड तब और अब

हेमचंद्र सकलानी। 9 नवंबर 2025 को उत्तराखंड राज्य स्थापना के 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इसी कारण इस वर्ष को रजत जयंती वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। 2000 में उत्तरांचल को देश के 27 वें राज्य के रूप में स्थापित होने का अवसर मिला था पर बाद में जनता की मांग के कारण उतरांचल से इसका नाम उत्तराखंड में परिवर्तित हुआ। इसमें कोई संदेह नहीं की इन 25 वर्षों में उत्तराखंड राज्य ने उन्नति और विकास के नए आयाम स्थापित किये।
एक समय पूरे विश्व में और अपने देश में उत्तराखंड और देहरादून का एक विशेष आकर्षण तथा पहचान यहां के पर्वतीय क्षेत्र के कारण,नदियों के कारण,वृक्षों के कारण,जंगलों के कारण तो थी ही पर प्रसिद्ध दून स्कूल, इंडियन मिलेट्री एकैडमी,व लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी के कारण विश्व में भी थी और विशेष कर देहरादून की पहचान सुंदर चाय के बागानों और लीची के बगीचों,बासमती की खुशबू तथा सुंदर स्वच्छ पर्यावरण के कारण पर्यटक़ों के विशेष आकर्षण का केंद्र रहता था। जिस कारण गर्मियों में पर्यटक दौड़ दौड़ के यहां आते थे। भाई जी-भाई जी का शब्द यहाँ के पर्वतीय क्षेत्र के जनमानस की सुंदर पहचान होती थी। बाहर के लोग नहीं के बराबर दिखाई पड़ते थे।
अब पर्वतीय मूल्य के लोगों को ढूंढना पड़ता है खोजना पड़ता है।आज इन चंद वर्षों में देहरादून की आबादी एक लाख से बढ़ कर दस लाख से भी अधिक हो गयी।वाहनों की संख्या सतर अस्सी हजार से लगभग दस लाख से ऊपर हो गयी।कभी कुछ दशक पहले साईकिल तक नहीं थी लोगों के पास आज स्कूटर कार टैक्सी टैम्पों विक्रम बस ट्रक जरूर खरीद लिए लोगों ने पर चलाने की तमीज किसी को आज तक नहीं आयी। आबादी के बढ़ने से वन क्षेत्र कृषि क्षेत्र और पर्यावरण का भयंकर विनाश हुआ।
इन 25 वर्षों में सैकड़ों स्कूल,कॉलेज, मेडिकल कॉलेज खुले,हज़ारों उद्योग धंधे स्थापित हुए, हजारों फ्लैट की कॉलोनी जगह जगह बनी, इस तरह पूरा खूबसूरत सुंदर शहर एक तरह से कंक्रीट के जंगल में तब्दील हुआ। पर्वतीय क्षेत्र से पर्वतीय क्षेत्र के लोगों का जबरदस्त पलायन हुआ क्योंकि कि नहीं अच्छी शिक्षा,नहीं जीवन यापन के लिए किसी रोज़गार की संभावना,यहां तक की बिमारी की अवस्था में घंटों की यात्रा कर देहरादून आना के कारण पलायन होना ही था। दुर्भाग्य की बात तो यह रही की बाहरी तो बात अलग अपने पर्वतीय मूल के डाक्टर, इंजीनियर, टीचर, क्लर्क तक पर्वतीय क्षेत्र में जाने से कतराते रहे। जबकि नदियों के किनारे,नहरों के किनारे ही नहीं पर्वतीय क्षेत्र से गुजरती सड़कों के किनारे खाली होने के कारण बाहर के असमाजिक तत्वों का जबरदस्त आगमन हुआ और फिर जमीनों पर कब्जा हुआ। जनसंख्या में तो अकल्पनीय वृद्धि हुई लेकिन वाहनों के सड़कों पर अंधाधुंध चलन से पैदल चलना जहां बड़ा कठिन हुआ वहीं नित्य सैकड़ों दुर्घटनाओं के कारण जीवन पर भयंकर संकट उत्पन्न हो गया। जिस उत्तराखंड में, देहरादून में अपराधिक घटनाएं कभी सुनाई नहीं पड़ती थीं वहां आज प्रतिदिन हत्याओं, चोरियों, डकैतियों,आपसी लड़ाई झगड़ों से अखबार भरे पड़े रहते हैं। गैरसैंण राजधानी के नाम पर अरबो रुपए खर्च हुए पर कोई पूछे उत्तराखंड को उससे क्या हासिल किया हुआ। उत्तराखंड का कोई पूरुष,स्त्री, बच्चा भीख मांगता नहीं मिलेगा। पर उत्तराखंड की हर गली सड़क मोहल्ले में भिखारियों के रूप में बड़े बूढ़े,स्त्री पुरुष रूपी और छोटे बच्चों बच्चों की भीख मांगते या हाथ में पैन पेंसिल बेचते भीड़ नजर आती है। वह पच्चीस तीस वर्ष पहले का उत्तराखण्ड न जाने कहां खो गया। निसंदेह इसके लिए दोषी और कोई नहीं हमारे पर्वतीय मूल के लोग और हमारी राजनीति के अलावा और कोई नहीं है। इस पर भी अनेक सफलताओं असफलताओं के बीच उत्तराखण्ड ने उसके निवासियों ने सफलता तथा विकास के‌ अनेक कीर्तिमान स्थापित किये।

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