देहरादून। उत्तराखंड नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में एक नई पहचान बना रहा है। “सौर स्वरोजगार योजना” इसका एक प्रभावी उदाहरण है, जिसके तहत राज्य के युवाओं को स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने के साथ-साथ स्वच्छ और सतत ऊर्जा के उपयोग को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। “सौर स्वरोजगार योजना” की शुरुआत इस सोच के साथ हुई थी कि पर्वतीय क्षेत्रों में खाली पड़ी भूमि का उपयोग करते हुए सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए और स्थानीय युवाओं को आत्मनिर्भर बनाया जाए। इस योजना में कुछ बदलाव कर इसे और भी अधिक व्यवहारिक और लाभकारी बनाया गया है। राज्यवासियों को यह योजना खूब पसंद आ रही है।
आंकड़ों के अनुसार 1304 लाभार्थियों को सोलर सिस्टम के लिए आवंटन पत्र जारी किए गए हैं, जो कुल 2,42,120 किलोवाट की क्षमता को दर्शाता है। इनमें से 264 सौर संयंत्रों की स्थापना हो चुकी है, जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 47,680 किलोवाट है। शेष 1040 लाभार्थियों की प्रक्रियाएं प्रगति पर हैं, जो आगामी महीनों में ऊर्जा उत्पादन में और इजाफा करेंगे। पर्वतीय जिलों में इस योजना को विशेष सफलता मिली है। केवल टिहरी जिले में 417 आवंटन दिए गए हैं, जिनमें से 129 सिस्टम स्थापित हो चुके हैं। ब्याज मुक्त ऋण, अनुदान और तकनीकी सहायता जैसी सुविधाएं देकर इस योजना को ज़मीनी स्तर पर पहुँचाया गया है। जिला प्रशासन और स्थानीय पंचायतों को योजना के कार्यान्वयन में सशक्त भूमिका सौंपी गई है।
उत्तराखंड में “सूर्य घर योजना” भी तेजी से गति पकड़ रही है, जिसका उद्देश्य हर घर की छत को ऊर्जा का स्रोत बनाना है। इस योजना के अंतर्गत प्रदेश के शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में लाखों परिवारों को रूफ़टॉप सोलर सिस्टम लगाने के लिए अनुदान और तकनीकी सहायता प्रदान की जा रही है। प्रदेश में 67,093 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 34,461 रूफटॉप इंस्टॉलेशन पूरे हो चुके हैं, जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 1,27,300.975 किलोवाट है। योजना के अंतर्गत 2,60,16,12,697 की सब्सिडी वितरित की जा चुकी है। यह योजना न केवल घरेलू बिजली व्यय को कम कर रही है, बल्कि ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में उत्तराखंड को अग्रणी बना रही है। उत्तराखंड जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील राज्य में स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल पर्यावरण संरक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक है। एमएसएसवाई के माध्यम से जहां एक ओर कार्बन उत्सर्जन में कमी आई है, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की स्थिरता और पहुंच में सुधार हुआ है। स्थानीय युवाओं को स्वरोजगार के माध्यम से पहाड़ों में ही रोजगार मिलना पलायन की बड़ी समस्या को भी कम कर रहा है। एमएसएमई सेक्टर से जुड़कर कई लाभार्थियों ने सौर ऊर्जा के संयंत्रों से आय के स्रोत विकसित किए हैं।
हालांकि योजना की प्रगति उत्साहजनक रही है, फिर भी कुछ जिलों में कार्यान्वयन की गति अपेक्षाकृत धीमी रही है। इसके पीछे भूमि चयन, तकनीकी प्रशिक्षण और बैंकिंग प्रक्रियाएं जैसी चुनौतियां प्रमुख रही हैं। राज्य सरकार का लक्ष्य अगले दो वर्षों में कम से कम 5000 नए सौर संयंत्रों की स्थापना करना है। इससे न केवल ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि होगी, बल्कि हजारों युवाओं को स्थायी रोजगार भी मिलेगा। साथ ही, उत्तराखंड को ‘हरित राज्य’ बनाने की दिशा में यह एक बड़ी छलांग होगी।
ऊर्जा निगम ने काउंसिल आन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) के सहयोग से एक संयुक्त अध्ययन भी प्रारंभ किया है। इसका उद्देश्य राज्य में लगे सोलर संयंत्रों की उत्पादन क्षमता, रख-रखाव एवं परिचालन स्थिति का मूल्यांकन करना है, ताकि उपभोक्ताओं को अधिकतम लाभ मिल सके और सौर ऊर्जा के प्रति जागरूकता भी बढ़े। एक किलोवाट का संयंत्र लगाने पर 50 हजार रुपये की सब्सिडी (33 हजार केंद्रांश और 17 हजार राज्यांश), दो किलोवाट का संयंत्र लगाने पर एक लाख रुपये की सब्सिडी (66 हजोेेेेर केंद्रांश और 34 हजार राज्यांश) और तीन किलोवाट का संयंत्र लगाने पर एक लाख 36 हजार 800 की सब्सिडी (85800 केंद्रांश और 51000 राज्यांश) प्रदान किया जा रहा है।
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