इस अवसर पर हमने सुमित खंडेलवाल से बात करी और आनंदम ब्रांड के बारे में विस्तार से जाना।
प्र.) क्या आप हमें आनंदम की 120 साल की विरासत के बारे में संक्षिप्त में बता सकते हैं?
उ.) आनंदम की विरासत की शुरुआत मेरे परदादा गदरमल गणेशी लाल से हुई, जिन्होंने अपना नाम बनाया। उसके बाद मेरे दादा लाला प्रह्लाद स्वरूप गुप्ता, जिन्हें प्रह्लाद रेवाड़ीवाला के नाम से जाना जाता है, स्वादिष्ट रेवाड़ी बनाने के लिए प्रसिद्ध थे। आज मेरे पिता, आनंद स्वरूप गुप्ता, जो 68 वर्ष के हैं, एक 18 वर्षीय बच्चे की तरह काम करते हैं और मेरे लिए प्रेरणा के सबसे बड़े स्रोतों में से एक हैं।
प्र.) आनंदम को इस मुकाम पर पहुंचाने के अपने सफर के बारे में बताएं?
उ.) मैं अपनी स्कूली शिक्षा समाप्त करने के बाद से ही अपने पारिवारिक व्यवसाय में शामिल हो गया। अपने सीखने के चरण के दौरान, मैंने महसूस किया कि हमारा व्यवसाय सदियों से बिना किसी नवाचार के चल रहा था। यह देखते हुए मैंने ये ठान लिया की एक दिन ऐसा एक आउटलेट खोलूंगा जिसमे अच्छा माहौल और स्वच्छता रहे। एक ऐसा आउटलेट जहां ग्राहकों को न केवल स्वादिष्ट मिठाई बल्कि पूर्ण व्यंजन खाने को मिलें, और आने वाला हर ग्राहक खुश होकर लौटे। इस सोच और सपने को साकार करते हुए हमने 2009 में आनंदम को आकार दिया।
प्र.) अपने ब्रांड का नाम ‘आनंदम’ रखने के पीछे क्या कहानी है?
उ.) ‘आनंदम’ नाम दो शब्दों से मिलकर बना है – आनंद और अम। आनंद मेरे पिता का नाम है, और मैं हमेशा से एक ऐसा ब्रांड नाम लेकर आना चाहता था जो इतने वर्षों में मेरे पिताजी द्वारा की गई कड़ी मेहनत का सम्मान कर सके। वहीँ आनंदम का सामूहिक अर्थ सुख/ख़ुशी है।
प्र.) किसी भी व्यवसाय की तरह, आपको कई संघर्षों का सामना करना पड़ा होगा? क्या आप कोई संघर्ष के बारे में बता सकते हैं? कठनाइयों के बीच आप कैसे सफलता की राह पर बढ़ते रहे?
उ.) उतार-चढ़ाव हम सभी के जीवन के एहम हिस्से हैं। मैंने भी अपनी राह में कई कठनाइयों का सामान करा लेकिन मुझे हमेशा से पता था कि मेरा उद्देश्य क्या है, और मैं कभी भी इससे विचलित नहीं हुआ। रास्ते में कई संघर्ष आए, लेकिन मैंने हमेशा उन्हें एक चुनौती के रूप में लिया और अंततः उन पर विजय प्राप्त की। मैं कभी निराश नहीं हुआ और इसे जीवन की सीख के रूप में लिया।
मेरे सफर के दौरान एक बड़ा संघर्ष था गुप्ता स्वीट्स को आनंदम में तब्दील करना। मेरे परिवार के सदस्यों सहित कई लोगों ने पुराने ब्रांड का नाम बदलने और शुरुआत से शुरू करने के मेरे फैसले को खारिज कर दिया था। मेरे एक बहुत करीबी मित्र ने मुझसे कहा कि मैं एक प्रसिद्ध और स्थापित ब्रांड का नाम बदलकर एक नए ब्रांड में तब्दील करने पर अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती कर रहा हूँ। यही कारण था कि मैंने बहुत मेहनत करी क्योंकि मुझे आनंदम को देहरादून के प्रमुख आउटलेट के रूप में स्थापित करके सभी को गलत साबित करना था।
प्र.) एक प्रसिद्ध कहावत है की, “हलवाई कभी अपनी दुकान की मिठाई नहीं खाता”। क्या आप इस कहावत का पालन करते हैं और अपने उत्पादों को खाने से परहेज करते हैं?
ए.) बिल्कुल नहीं! मैं वो हलवाई हूं जो अपनी दुकान की मिठाई जरूर खाता है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि अपने खुद के ब्रांड की मिठाइयाँ खा कर, मैं अपने उत्पादों की अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित कर सकता हूँ और इस तरह समय दर समय गुणवत्ता जाँच करता रहता हूँ। अगर मैं अपने उत्पादों की जांच खुद से नहीं करूँगा, तो मैं अपने ग्राहकों को अपने उत्पादों द्वारा गुणवत्ता प्रदान करने की उम्मीद कैसे कर सकूंगा?
प्र.) क्या आने वाले वर्षों में आनंदम के लिए आपका कोई लक्ष्य है?
उ.) मुझे लगता है कि हमने अभी तक जो कुछ भी हासिल किया है वह सिर्फ एक शुरुआत है। मेरा लक्ष्य आनंदम के लिए वो स्तर प्राप्त करना है जहां आनंदम का बैग ले जा रहा कोई भी व्यक्ति हवाई यात्रा, ट्रेन या बस के माध्यम से भारत में कहीं भी यात्रा कर रहा हो तो आनंदम का नाम देखते ही आस पास के लोगों को पता चले है कि वह व्यक्ति देहरादून से आ रहा है।