प्रो. केवी सुब्रमण्यन। बीते कुछ दशकों में भारत के श्रेष्ठ प्रतिभाशाली लोगों ने बेहतर अवसरों की तलाश में विदेश जाने को वरीयता दी है। विशेष रूप से अमेरिका इन प्रतिभाओं की प्राथमिकता में होता है। चूंकि अमेरिका में विदेशियों की आवक पर अंकुश के उपाय शुरू हो गए हैं, इसलिए भारत को इन लोगों के लिए देश में ही उचित अवसर तैयार कर इस रुझान को पलटने का अनूठा मौका है। अमेरिका में एच1वी वीजा और ग्रीन कार्ड की राह कठिन करने की तैयारी हो रही है तो विदेश में बसे भारतीय भी स्वदेश वापसी की संभावनाएं तलाश रहे हैं, बशर्ते कि उन्हें यहां अनुकूल आर्थिक अवसरों के साथ ही एक अच्छा रहन-सहन मिल सके। ऐसा नहीं है कि भारत में अनुकूल आर्थिक अवसर नहीं हैं। देश में पहले की तुलना में कहीं अधिक आकर्षक मौके बने हैं। अपनी किताब ‘इंडिया/100’ में मैंने विस्तार से इसका उल्लेख भी किया है कि डालर के लिहाज से भारत की जीडीपी में सालाना 12 प्रतिशत तक की दर से वृद्धि करने की संभावनाएं हैं। किसी अर्थव्यवस्था में पेशेवरों का वेतन औसत जीडीपी विकास दर की तुलना में 25 प्रतिशत की दर से बढ़ता है। इसका अर्थ है कि जीडीपी 12 प्रतिशत बढ़ेगी तो पेशेवरों का वेतन 15 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ेगा।
इस 15 प्रतिशत बढ़ोतरी के लिहाज से देखें तो हर पांच साल में वेतन दोगुना हो जाएगा। औसत 40 साल के करियर में ऐसी बढ़ोतरी आठ बार मानकर चलें तो भारत में अपना करियर शुरू करने वाले पेशेवरों का वेतन डालर के संदर्भ में करीब 250 गुना हो जाएगा। इसके उलट अमेरिका की स्थिति देखें तो वहां जीडीपी विकास दर (5 प्रतिशत) कम होने से पेशेवरों का वेतन करीब 6.25 प्रतिशत की दर से बढ़ेगा। वहां 6.25 प्रतिशत की रफ्तार से वेतन में हर 12 साल पर ही वह दोगुना हो पाएगा।
यानी 40 साल के करियर में करीब तीन बार ही तनख्वाह दोगुनी होगी और समूचे करियर में केवल 10 गुना बढ़ोतरी का लाभ मिलेगा। इस तरह देखा जाए तो अगर भारत में शुरुआती तनख्वाह डालर के लिहाज से अमेरिका की चौथाई भी हो, तब भी अपने पूरे करियर में भारत में कमाने वाला पेशेवर डालर के हिसाब से अमेरिका से कहीं अधिक कमाई करने में सक्षम होगा। इसके अतिरिक्त भारत में अपना काम और बच्चों की परवरिश पर अधिक ध्यान दिया जा सकता है, क्योंकि घरेलू कार्यों के लिए मदद अपेक्षाकृत आसान होती है।
वर्तमान परिस्थितियों में भारत के पास ब्रेन ड्रेन यानी प्रतिभा पलायन के रुझान को पलटने का स्वर्णिम अवसर है। विदेश में रहने वाले बहुत से स्किल्ड प्रोफेशनल विभिन्न कारणों से स्वदेश वापसी के विकल्प पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। हालांकि इसे संभव बनाने के लिए केवल आर्थिक अवसर ही नहीं बल्कि जीवन स्तर के पहलू भी निर्णायक होंगे।
अमेरिका जैसे देशों में ऐसी सुविधा बहुत मुश्किल होने के साथ ही अत्यंत महंगी भी है। निरूसंदेह ये परिस्थितियां भारत को लेकर एक संभावनाशील परिदृश्य का निर्माण करती हैं, पर इसका लाभ उठाने के लिए भारत को शहरों में जीवनशैली बेहतर बनानी होगी। अन्यथा जो लोग भारत लौटने के बारे में सोच रहे हैं, वे भी दोबारा विदेश जाने की संभावनाएं तलाशने लगेंगे।
तमाम लोग भारत वापस आने से इसलिए हिचकते हैं, क्योंकि यहां शहरी ढांचा कमजोर है। सफर में समय अधिक लगता है। प्रदूषण बहुत ज्यादा है। ऐसे में सरकारों को चाहिए कि वे शहरों को रहने के लिहाज से अनुकूल बनाएं ताकि अधिक से अधिक भारतीय प्रतिभाओं की स्वदेश वापसी हो सके। खासतौर से शहरों में एक जगह से दूसरी जगह जाने में लगने वाला समय बहुत दुखदायी हो जाता है। मुंबई, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे शहरों में किफायती हेलीकाप्टर सेवाएं शुरू करने पर विचार किया जा सकता है, जो प्रमुख व्यावसायिक केंद्रों को जोड़ सकें।
पर्वतीय स्थलों विशेषकर तीर्थस्थलों पर रोपवे जैसी व्यवस्था भी शहरों के भीड़भाड़ वाले इलाकों में उपयोगी हो सकती है। किफायती होने के साथ ही इसमें जगह की भी जरूरत कम पड़ती है। इसके अलावा, ट्रैफिक का बोझ कम करने के लिए दफ्तरों के समय को भी लचीला बनाया जा सकता है। कंपनियां तीन शिफ्ट की पहल कर सकती हैं। एक सुबह 6 बजे से दोपहर 2 बजे तक, दूसरी 10 बजे से शाम 6 बजे तक और दोपहर 2 बजे से रात 10 बजे तक। इससे ट्रैफिक का दबाव समय-समय पर बंट जाएगा और आवाजाही सुगम होगी।
वायु प्रदूषण भी पेशेवरों की स्वदेश वापसी में बड़ा अवरोधक है। दिल्ली और बेंगलुरु विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल हैं। प्रदूषण का सीधा असर लोगों की सेहत और उत्पादकता पर पड़ता है। प्रदूषण से निपटने के लिए सरकारों को बीजिंग जैसे शहर के अनुभवों से सीख लेते हुए सख्त कदम उठाने होंगे। निजी क्षेत्र भी प्रदूषण घटाने वाली तकनीकों में निवेश करे।
जैसे इलेक्ट्रिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट, उद्योगों में एमिशन कंट्रोल सिस्टम और एडवांस्ड एयर प्यूरीफायर टेक्नोलॉजी। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिये स्वच्छ शहरों की संकल्पना को साकार किया जा सकता है। इसी तरह सौर और पवन ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने से प्रदूषण फैलाने वाले ईंधनों पर निर्भरता कम होगी। ऐसे में हरित ऊर्जा को अपनाने पर जोर दिया जाए। उसके प्रोत्साहन के लिए सब्सिडी दी जा सकती है।
शहरों में बड़े पैमाने पर पेड़ लगाना, ऊंची इमारतों पर वर्टिकल गार्डन और ग्रीन कारिडोर बनाना भी प्रदूषण घटाने और पर्यावरण को बेहतर बनाने में मददगार होंगे। सार्वजनिक परिवहन को उन्नत बनाने और सीवेज एवं कचरा प्रबंधन में आधुनिक तौर-तरीके अपनाना भी समय की आवश्यकता हो गई है। बढ़ती शहरी आबादी के लिए किफायती आवास सुविधाओं का विकास भी उतना ही आवश्यक है।
वर्तमान परिस्थितियों में भारत के पास ब्रेन ड्रेन यानी प्रतिभा पलायन के रुझान को पलटने का स्वर्णिम अवसर है। विदेश में रहने वाले बहुत से स्किल्ड प्रोफेशनल विभिन्न कारणों से स्वदेश वापसी के विकल्प पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। हालांकि इसे संभव बनाने के लिए केवल आर्थिक अवसर ही नहीं, बल्कि जीवन स्तर के पहलू भी निर्णायक होंगे। अगर सरकारें शहरों में सफर का समय घटाने, प्रदूषण से लड़ने और शहरी ढांचा बेहतर बनाने के प्रयास करें तो भारत के बड़े शहर वैश्विक प्रतिभाओं को लुभाने के केंद्र बन सकते हैं। यह केवल शहरों में निवेश नहीं, बल्कि भारत के भविष्य में निवेश होगा।