दिल्ली से देहरादून को कमजोर करने वालों को लगा झटका

-धामी सरकार के कई मंत्रियों की कुर्सी भी आई खतरे की जद में

-जल्द धामी सरकार के मंत्रीमंडल विस्तार में दिखेंगे चौंकाने वाले चेहरे, कई की होगी छुट्टी

-दिल्ली की दो टूक, पहले लाओ सीएम धामी की एनओसी

देहरादून। भाजपा के मंत्रियों, विधायकों की दिल्ली, देहरादून दौड़ से राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। राज्य में हमेशा अस्थिरता का सपना सजोने वाले इस दौड़ को राज्य में सत्ता परिवर्तन से जोड़ कर अपनी कुंठित मानसिकता जाहिर कर रहे हैं। जबकि इस पूरे मामले में जो असल मामला सामने निकल कर आया है, वो राज्य में धामी सरकार के मंत्रीमंडल में फेरबदल से लेकर मंत्रीमंडल विस्तार से जुड़ा है। कई मौजूदा मंत्रियों की कुर्सी जाने की सूचनाएं हैं। यही मंत्री दिल्ली दौड़ लगा रहे हैं। वहीं कुछ विधायकों ने खाली हो रहे पदों पर अपनी दावेदारी जताई है। मंत्री और विधायकों को केंद्रीय आलाकमान ने दो टूक साफ कर दिया है कि मंत्री पद बचाने से लेकर मंत्री बनने से पहले उन्हें सीएम पुष्कर सिंह धामी का विश्वास जीतना होगा।
उत्तराखंड की सियासत में 24 साल से हर मुख्यमंत्री को अस्थिरता की अफवाहों से जूझना पड़ा है। नित्यानंद स्वामी से शुरू हुआ ये दौर हमेशा हर दौर में रहा। राज्य में अस्थिरता की हवा फैलाने में मीडिया, नेताओं और अफसरों को वो गुट आगे रहता है, जिनकी मौजूदा सरकार में दाल नहीं गल रही होती। खनन, तबादला उद्योग के एक्सपर्ट मीडिया का चोला ओड़ कर रखने वाले तथाकथित पत्रकार इस पूरे खेल में सबसे आगे रहते हैं। वही हमेशा इस तरह का माहौल बनाए रखते हैं, ताकि अस्थिरता की हवा फैला कर वो अपनी जगह बनाए रखें। यदि मौजूदा सरकार उनसे ब्लैकमेल नहीं होती, तो उसके खिलाफ बाकायदा गिरोहबंदी कर काम किया जाता है। इस काम में तथाकथित मीडिया के इस गिरोह को सरकार के ही कुछ अफसर शह देते हैं। ये वही अफसर रहते हैं, जिनके साथ ये मीडिया के भेष में मौजूद काली भेड़ें खनन, तबादला, टेंडर के खेल में शामिल रहते हैं।
इस बार भी इस गिरोह ने सरकार के मंत्रियों के दिल्ली दौरों और विधायकों के सीएम धामी से मुलाकात के सिलसिले को राज्य में राजनीतिक अस्थिरता से जोड़ दिया। जबकि इस मामले में असल हकीकत यही बताई जा रही है कि सरकार में मंत्रियों के खाली चार पदों को भरने की तैयारी है। चार नए मंत्री बनाए जाने के साथ ही पुराने मंत्रियों को भी घर बैठाने की तैयारी में है। जिन मंत्रियों के विभागों में पिछले कुछ समय में विवाद उठे हैं, विभाग जांच के दायरे में आए हैं, उन मंत्रियों को घर बैठाने की तैयारी है। यही मंत्री सबसे अधिक उठापठक और दिल्ली दौड़ में लगे रहे। जबकि दिल्ली ने साफ कर दिया है कि मंत्रीमंडल विस्तार में सीएम धामी को फ्रीहैंड दिया जाएगा। वे अपनी टीम किस तरह सेट करते हैं, ये पूरी तरह उनका विशेषाधिकार रहेगा।
यही वजह है, जो पिछले सवा दो साल से पूरी तरह सीन से गायब रहने वाले भाजपा नेता मदन कौशिक, बिशन सिंह चुफाल ने भी सीएम से मुलाकात में बिल्कुल भी समय नहीं गंवाया। कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत ने भी न सिर्फ सीएम से मुलाकात की, बल्कि एक साथ भोजन कर सीएम की गुडबुक में होने का संदेश दिया। भाजपा केंद्रीय आलाकमान उत्तराखंड को लेकर इस बार बिल्कुल पूरी तरह स्पष्ट मूड में है। केंद्रीय आलाकमान का साफ मानना है कि 2022 में उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा का लगातार दूसरे टर्म में सरकार बनाना, कोई सामान्य घटना नहीं है। क्योंकि उत्तराखंड, राजस्थान और हिमाचल में दशकों से यही चलन रहा है कि हर पांच साल में सरकार का बदलना तय है। उत्तराखंड जैसे राज्य में ये इसीलिए भी अहम हो जाता है, क्योंकि जुलाई 2021 में जब सीएम धामी ने सत्ता की बागडौर संभाली थी, उस समय भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ था। भाजपा के कद्दावर नेता भी खुलकर ये स्वीकार करने से परहेज नहीं करते थे कि 2022 में भाजपा का दहाई के आंकड़े में पहुंचना भी मुश्किल है। इसके बाद भी उत्तराखंड में भाजपा ने 47 सीटों के साथ जोरदार रिकॉर्ड बनाया। सवा दो साल के कार्यकाल में धामी सरकार ने ऐसे ऐसे फैसले लिए, जिन्हें न सिर्फ भाजपा ने अपने लोकसभा के चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किया, बल्कि कई राज्यों ने तो खुलकर धामी सरकार के फैसलों को अपने यहां लागू भी कराया।
सीएम धामी की मजबूत होती इसी पकड़ और राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते कद से उत्तराखंड की यही माफिया लॉबी परेशान है। इस माफिया लॉबी के हिस्सेदार कथित पत्रकार, अफसर, ठेकेदारों की नींद उड़ी हुई है। इस लॉबी को उत्तराखंड में मजबूत स्थिर सरकार रास नहीं आ रही है। इसीलिए हर दूसरे दिन कुछ न कुछ नया शिगूफा छोड़ कर जनता में भ्रम पैदा किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। माफियाओं के इस गठजोड़ की पूरी जानकारी देहरादून से लेकर दिल्ली तक भाजपा के सभी नेताओं को है। इस माफिया गठजोड़ का हिस्सा बनने के कारण भाजपा के कई खुद को दिग्गज समझने वाले नेताओं को व्यक्तिगत नुकसान तक हो गया है। मोदी कैबिनेट का हिस्सा बनने का सपना संजोने वाले इन नेताओं की अब अपनी मूल कुर्सी भी खतरे की जद में आ गई है।

 377 total views,  1 views today

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *