प्रकृति से बड़ा धरा पर कोई शिक्षक नहीं, प्रकृति से बड़ा कोई यहॉ चिकित्सक नहीं

-हेमचंद्र सकलानी-   
प्रकृति से बड़ा, धरा पर कोई शिक्षक नहीं
   प्रकृति से बड़ा कोई यहॉ चिकित्सक नहीं।
  प्रकृति  से  बड़ा  कोई भविष्य  वक्ता  नहीं
  प्रकृति से  बड़ा  जग  में  कोई  पिता  नहीं। 
  प्रकृति  से  बड़ा कोई  यहॉ दानी  भी नहीं 
  प्रकृति से  बड़ा  हो  कोई, यहॉ ज्ञानी नहीं।
  प्रकृति से सुन्दर यहाँ कोई मौन वाणी नहीं  
  प्रकृति  वह  है  जिसका  कोई सानी  नहीं।
  प्रकृति से बड़ कर, यहां कोई सुंदरता नहीं 
  प्रकृति से बड़ी हो  कोई,ऐसी  ममता नहीं।
  प्रकृति से बड़ी ऐसी,कोई यहॉ जननी नहीं
  प्रकृति से बड़ा,इस धरा पर, कुछ भी नहीं।
  प्रकृति, पेड़, पवन, पानी, पर्यावरण  नहीं 
  फिर तो, सॉसों का  यहॉ, आवागमन नहीं।
  प्रकृति को, बस तुम सुंदर जीवन जीने दो  
  इस धरा  पर  हरा- भरा  जीवन  गहने दो।