अच्छा होगा कि मतदाता सूचियों को सही करना एक सतत प्रक्रिया का हिस्सा बने। नीर-क्षीर ढंग से चुनाव के लिए मतदाता सूचियों का सही होना आवश्यक है। यह केवल चुनाव आयोग के कर्मियों के तौर पर बीएलओ की ही जिम्मेदारी नहीं कि मतदाता सूचियां दुरुस्त हों। यह जिम्मेदारी आम लोगों को भी उठानी होगी, क्योंकि लोकतंत्र को पुष्ट करना हर नागरिक का दायित्व है। चुनाव आयोग को केवल इस पर विचार ही नहीं करना चाहिए कि मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआइआर एक निश्चित अवधि में हो, बल्कि उसे अपने इस विचार को अमल में लाने के लिए कोई ठोस व्यवस्था भी बनानी चाहिए। यह ठीक नहीं कि 2002-03 के बाद से अब जाकर एसआइआर कराने का फैसला लिया गया। यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि इतने लंबे अंतराल के बाद एसआइआर होने के चलते विपक्षी दलों को यह माहौल बनाने का बहाना मिल गया कि चुनाव आयोग कोई नया-अनोखा काम कर रहा है। औसत लोग भी इससे अवगत नहीं थे कि एसआइआर चुनाव आयोग का एक संवैधानिक दायित्व है और उसे समय-समय पर कराया ही जाना चाहिए। जनगणना की तरह एक निश्चित अंतराल पर एसआइआर केवल इसलिए नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। इसकी आवश्यकता इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि अब रोजगार, शिक्षा एवं अन्य कारणों से लोग कहीं अधिक संख्या में अन्यत्र प्रवास करते हैं। इनमें से बड़ी संख्या में दूसरे शहर या राज्य में बस भी जाते हैं। इसके अतिरिक्त एक ही शहर में रहने वाले लोग भी अपने ठिकाने बदलते रहते हैं। जितना जरूरी यह है कि नए वोटर मतदाता सूची में अंकित होते रहें, उतना ही यह भी कि जिनका निधन हो गया हो या फिर जो अन्य कहीं जाकर बस गए हों, उनके नाम उससे हटते भी रहें। यदि यह काम एक निश्चित अंतराल में नहीं किया जाएगा तो मतदाता सूचियों को दुरुस्त किया जाना संभव नहीं होगा और इसके अभाव में उनमें गड़बड़ी की शिकायतों से कभी छुटकारा नहीं मिल पाएगा। यदि सभी राजनीतिक दलों ने अपने बूथ लेवल एजेंट सक्रिय किए होते तो संभवतः बीएलओ का काम कहीं अधिक आसान होता। राजनीतिक दलों के साथ आम लोगों के लिए भी यह आवश्यक है कि वे एसआइआर की प्रक्रिया में सहयोग देने के लिए तत्पर रहें।
विशेष गहन पुनरीक्षण उन जमा हुई त्रुटियों और छूटों को ठीक करता है जो चुनाव की साख को प्रभावित करती हैं। भूतपूर्व मतदाता और डुप्लीकेट प्रविष्टियों को हटाकर, विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) “एक व्यक्ति, एक वोट” के सिद्धांत को सुदृढ़ करता है और इस प्रकार लोकतंत्र में जनता के विश्वास को दृढ़ बनाता है। यह सुनिश्चित करता है कि पिछले अपडेट के बाद 18 वर्ष के हुए लाखों नए प्रथम-बार मतदाता सूची में शामिल हों, जिससे मतदाता भागीदारी बढ़ती है। परिसीमन के बाद अद्यतन यह सुनिश्चित करते हैं कि नामावलियाँ आधिकारिक निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं से सुमेलित हों, जो निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह मतदाता के पते को जनसंख्या परिवर्तनों के अनुरूप अपडेट करता है, निर्वाचन क्षेत्र की सटीकता बनाए रखता है और प्रवासियों के मताधिकार हनन को कम करता है। एसआईआर संवैधानिक प्रावधानों (अनुच्छेद 326) और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम का पालन करता है, जिससे पात्रता और अयोग्यता नियमों का पालन सुनिश्चित होता है। मसौदा/ड्राफ्ट सूचियों का प्रकाशन और दावे व आपत्तियाँ आमंत्रित करना मतदाताओं के विश्वास को बढ़ाता है। एसआईआर मतदाता सूचियों के डिजिटल एकीकरण का समर्थन करता है तथा प्रवासियों के लिये दूरस्थ मतदान जैसी नीतिगत सुधारों को सक्षम बनाकर पहुँच एवं कार्यकुशलता को बढ़ाता है। मोहिंदर सिंह गिल बनाम भारत निर्वाचन आयोग मामला, 1977 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 324 के अंतर्गत निर्वाचन आयोग की व्यापक शक्तियों को मान्यता दी, ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किये जा सकें। इसमें आवश्यकता पड़ने पर पुनर्मतदान कराने की शक्ति भी शामिल है। साथ ही, न्यायिक समीक्षा को अनुच्छेद 329(इ) के अनुसार चुनाव के दौरान सीमित बताया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि अनुच्छेद 327 और 328 के अंतर्गत बने कानून किसी विषय पर मौन हों, तो निर्वाचन आयोग स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकता है। आंतरिक प्रवासी, बेघर लोग और जनजातीय समुदाय जैसे संवेदनशील वर्ग प्रायः मतदाता सत्यापन हेतु आवश्यक औपचारिक दस्तावेजों से वंचित रहते हैं, जिससे उनके मताधिकार से वंचित होने का खतरा बढ़ जाता है। आधार, राशन कार्ड या यहाँ तक कि मतदाता पहचान-पत्र जैसे व्यापक रूप से प्रयुक्त पहचान पत्रों को बाहर रखने से वंचित मतदाताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। भारत में मतदाता सूची के पुनरीक्षण/संशोधन के दौरान जन्म प्रमाण-पत्र या पैतृक दस्तावेज जैसी पहचानें माँगना व्यावहारिक रूप से नागरिकता-परीक्षा जैसा कार्य करता है। इससे गंभीर चिंता उठती है कि सामाजिक-आर्थिक और ऐतिहासिक कारणों से ऐसे दस्तावेजों से वंचित हाशिये और अल्पसंख्यक समुदायों को व्यवस्थित रूप से चुनावी प्रक्रिया से बाहर किया जा सकता है। अप्रभावी सत्यापन तंत्र के कारण अवैध आप्रवासियों को पंजीकृत होने का अवसर मिल गया है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बढ़ गई हैं। विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान विशाल स्तर पर क्षेत्रीय कार्य किया जाता है, जिसमें हज़ारों बूथ स्तर अधिकारियों की भागीदारी होती है। दूरदराज़ क्षेत्रों में इन अधिकारियों को पर्याप्त प्रशिक्षण, पर्यवेक्षण और संसाधन उपलब्ध कराना एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती है। हटाने या सत्यापन की प्रक्रिया में मानव या प्रणालीगत त्रुटियों के कारण वैध मतदाताओं के नाम सूची से छूट जाने का खतरा रहता है। पिछले पुनरीक्षण अभियानों में हज़ारों लोगों को अपने नाम पुनः जोड़ने हेतु दावा प्रस्तुत करना पड़ा, जिससे प्रक्रियागत कमियों का संकेत मिलता है। विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया का राजनीतिकरण हो सकता है, जिसमें राजनीतिक दलों पर चुनावी लाभ के लिये मतदाताओं को जोड़ने या हटाने का आरोप लगाया जाता है। अप्रभावी प्रारंभिक डेटा कैप्चर/संग्रह, रिकॉर्ड में असमानता और तकनीकी ढाँचे की कमियाँ सुचारु सत्यापन में बाधा डालती हैं। कड़े नामांकन को सुनिश्चित करना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसे नागरिकों के मतदान अधिकारों के साथ संतुलित करना चाहिये। सुप्रीम कोर्ट समावेशी प्रक्रियाओं की आवश्यकता को मानता है, वहीं धोखाधड़ीपूर्ण पंजीकरण की रोकथाम को भी कड़ा रखने की आशा करता है, जिससे यह एक संवेदनशील कानूनी और नैतिक चुनौती बन जाती है।
मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रभावशीलता और समावेशिता बढ़ाने के लिये कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं? आधार, मतदाता पहचान-पत्र और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को स्वीकार करना, ताकि प्रवासियों और सीमांत समूहों का मताधिकार कम न हो। सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची अपडेट करने के लिये आधार, मतदाता पहचान-पत्र और राशन कार्ड जैसे व्यापक रूप से स्वीकार किये जाने वाले दस्तावेजों पर विचार करना चाहिये। बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण, फेसियल रिकग्निशन और क्रॉस-चेक का उपयोग करके सत्यापन को दृढ़ करना ताकि सटीकता सुनिश्चित हो। बिहार के मोबाइल ई-वोटिंग पायलट में ब्लॉकचेन का उपयोग कर अवैध प्रविष्टियों को रोकने के अनुभवों से सीख ली जा सकती है। बूथ स्तर के अधिकारियों को सटीक डोर-टू-डोर (घर-घर जाकर) सत्यापन के लिये व्यापक प्रशिक्षण, तकनीकी उपकरण और पर्यवेक्षण प्रदान करना, जिससे त्रुटियाँ और बहिष्कार कम हों। सार्वजनिक परामर्श आयोजित करना जिसमें नागरिक समाज और नागरिकों को शामिल किया जाए, ताकि पक्षपातपूर्ण हस्तक्षेप से बचा जा सके, पारदर्शिता बढ़े तथा समावेशी भागीदारी सुनिश्चित हो। जर्मनी में राजनीतिक दलों और स्वतंत्र पर्यवेक्षकों को पारदर्शिता के लिए मतदाता सूचियों की निगरानी की अनुमति दी जाती है। संविधान के प्रावधानों (अनुच्छेद 326) और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम का पालन सुनिश्चित करना, सुप्रीम कोर्ट और निर्वाचन आयोग की समीक्षा के साथ, जिससे लोकतांत्रिक अधिकार सुरक्षित रहें। एसआईआर को चरणबद्ध तरीके से लागू करना, उच्च-जोखिम वाले क्षेत्रों से शुरुआत करना जहाँ अधिक प्रवासन या विसंगतियाँ हों और पूर्ण पैमाने पर लागू करने से पहले प्रतिक्रिया के आधार पर तरीकों को परिष्कृत करना शामिल है। दस्तावेज संबंधी कमियों, डुप्लीकेट प्रविष्टियों और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसी चुनौतियों से निपटने के लिये, निर्वाचन आयोग को सरल सत्यापन, बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण, सार्वजनिक जागरूकता अभियान और विश्वसनीय प्रक्रिया का चरणबद्ध क्रियान्वयन सुनिश्चित करना चाहिये, ताकि सहभागी और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किये जा सकें।
