वर्ष 2025 में भारत के लिए अनेक संभावनाएं और चुनौतियां भी

गिरीश्वर मिश्र। आज भारत अपनी 140 करोड़ से अधिक की आबादी के साथ इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। आगे के समय में भारत की आर्थिक प्रगति वर्तमान सुधारों, तकनीकी प्रगति और जनसांख्यिकीय बदलावों से काफी प्रभावित होगी। ऐसा अनुमान है कि इस वर्ष भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अपने तेज कदम बढ़ा देगा,लेकिन यह ध्यान रहे कि भारत केवल विकास नहीं, बल्कि समावेशी विकास चाहता है, जो लाखों लोगों को गरीबी और असमानता से मुक्ति दिला सके। डिजिटल इंडिया जैसी पहलों और फिनट
ेक के संतोषदायी अनुभव से प्रोत्साहित होकर भारत का डिजिटल अर्थव्यवस्था में परिवर्तन नए रोजगार के अवसर पैदा कर सकता है और नवाचार को बढ़ावा दे सकता है। देश डिजिटल साक्षरता, बुनियादी ढांचे और उद्यमिता पर ध्यान केंद्रित करके तकनीकी सेवाओं, ई-कामर्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और डाटा साइंस में वैश्विक नेता बनने का लक्ष्य बना रहा है। उभरती प्रवृत्तियों को देखते हुए यह लग रहा है कि मेक इन इंडिया पहल के तहत अपने विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए भारत का प्रयास आत्मनिर्भरता और रोजगार सृजन हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।
बदलते परिवेश में भारत विशेष रूप से इलेक्ट्रानिक्स, आटोमोबाइल और दवा के क्षेत्र में एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर सकता है। उद्योगीकरण और स्थिरता के बीच संतुलन बनाने की हमारी क्षमता ही आर्थिक मामलों में हमारी प्रगति को निश्चित करेगी। देश का लक्ष्य अक्षय ऊर्जा, विशेष रूप से सौर ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक नेता बनना है, क्योंकि यह ग्रीन टेक्नोलाजी और टिकाऊ व्यवस्थाओं के अनुकूल है। आज भारत एआई और डाटा साइंस से लेकर अंतरिक्ष अन्वेषण तक कई तकनीकी क्रांतियों में अग्रणी रहने की स्थिति में है। भारत का तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र तेजी से बढ़ रहा है और 2025 में देश एआई, मशीन लर्निंग और आटोमेशन तकनीक का प्रमुख केंद्र बन सकता है। इससे कृषि और स्वास्थ्य सेवा से लेकर शहरी नियोजन और शिक्षा आदि को लाभ पहुंचेगा। हमारा इसरो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा पा रहा है। चंद्रयान, गगनयान (मानव मिशन) और संभावित चंद्र और मंगल मिशन आने वाले दिनों में भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में अग्रणी बना सकते हैं।
भारत का स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र तेजी से आगे बढ़ रहा है और यह अमेरिका के अलावा किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक यूनिकार्न (एक अरब डालर से अधिक मूल्य की कंपनियां) पैदा करने वाला देश हो सकता है। यह भारत को वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख नवाचार केंद्र के रूप में स्थापित करने में सहायक है, परंतु देश की प्रगति सिर्फ आर्थिक विकास पर ही निर्भर नहीं है, इसके लिए सामाजिक समावेशन, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और लैंगिक समानता भी जरूरी है।
यह अच्छी बात है कि भारत ने अपनी शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं, जिससे यह अधिक समावेशी और सुलभ बन सके। नए वर्ष में कक्षाओं में तकनीक का अधिक एकीकरण कर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के साथ छात्रों में कौशल विकास किया जा सकता है। उच्च शिक्षा और अनुसंधान पर जोर देकर विश्वस्तरीय संस्थानों का निर्माण किया जा सकता है। इसी तरह टेलीमेडिसिन, निदान और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में सुधार से भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की सुलभता और कुशलता प्रभावी हो सकती है।
सरकार की आयुष्मान भारत योजना स्वास्थ्य सेवा असमानताओं को कम कर सकती है। देश में लैंगिक समानता और सशक्तीकरण को बढ़ाने के लिए अभियान चल रहा है, जिसके अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। आशा है कि भारत में कार्यबल, राजनीति और नेतृत्व के पदों पर महिलाओं की प्रतिभागिता बढ़ेगी। इसके साथ-साथ शिक्षा, सुरक्षा और समान अधिकारों के लिए प्रयास एक समावेशी समाज के निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होंगे।
इसके तहत आवास, पानी, स्वच्छता और बिजली जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुंच का विस्तार करके वंचितों के जीवन की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार लाया जा सकता है, जिससे लाखों लोग गरीबी से बाहर आ सकेंगे। देश अपनी ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न कर सकता है, जिससे उसका कार्बन उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो जाएगी।
आज देश जल की कमी की गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस साल इससे पार पाने के लिए हमें जल संरक्षण, रिसाइकिलिंग और प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना होगा। कुशल सिंचाई और जल वितरण के लिए तकनीक और बेहतर नीतियों से भी इन चुनौतियों का समाधान करने में मदद मिल सकती है। भारत में जैव विविधता बहुत समृद्ध है। वन्यजीवों, वनों और पारिस्थितिकी तंत्रों की सुरक्षा के लिए प्रयास और बढ़ाने होंगे। राष्ट्रीय उद्यानों, संरक्षित क्षेत्रों और टिकाऊ कृषि पद्धतियों के विस्तार से पर्यावरण की सुरक्षा में मदद मिल सकती है।
सांस्कृतिक कूटनीति, मीडिया और बालीवुड के माध्यम से देश की बढ़ती साफ्ट पावर इसकी वैश्विक स्थिति को और मजबूत कर सकती है। उन्नत तकनीकी, स्वदेशी रक्षा उत्पादन में वृद्धि और वैश्विक साझेदारों के साथ बढ़े हुए सहयोग द्वारा भारत की रक्षा क्षमताएं सुदृढ़ होंगी। भारत की जनसंख्या बढ़ती रहेगी, लेकिन इसमें महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय परिवर्तन भी होंगे। भारत में शहरी आबादी बढ़ने की उम्मीद है। हमें टिकाऊ, लचीले और तकनीकी रूप से उन्नत शहरों के निर्माण पर बल देना होगा, जो बेहतर जीवन स्तर प्रदान करते हैं।
इन अनेक संभावनाओं के बावजूद नए साल में भारत को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा। अमीर-गरीब के बीच की खाई को पाटने के लिए कराधान, पुनर्वितरण और सामाजिक सेवाओं में पर्याप्त सुधार की आवश्यकता होगी। सरकार के सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार को दूर करना सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण होगा। यद्यपि प्रगति हो रही है, फिर भी सड़क, रेलवे, ऊर्जा और शहरी नियोजन सहित बुनियादी ढांचे में बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत होगी।
जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और संसाधनों की कमी से निपटने के लिए साहसिक एवं दूरदर्शी नीतियों की आवश्यकता होगी। भारत की आकांक्षा वैश्विक आर्थिक महाशक्ति, तकनीकी एवं नवाचार में अग्रणी और सामाजिक कल्याण एवं पर्यावरणीय स्थिरता का चौंपियन बनने के इर्द-गिर्द घूमती है। यही भारत के आगे के मार्ग को आकार देगी।
आशा की जानी चाहिए कि देश ने अपने लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए हुए हैं, वे समय पर सही तरह से पूरे हों, ताकि विकसित भारत की दिशा में कदम बढ़ा रहे देश के समक्ष कोई अवरोध उत्पन्न न हों और यदि वे उत्पन्न हों भी तो उन्हें सफलतापूर्वक दूर किया जा सके।
अवरोधों को हटाने अर्थात समस्याओं का निराकरण करने की सबसे अधिक जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होती है और शासन-प्रशासन की सामर्थ्य बहुत कुछ देश की राजनीति के रुख-रवैये से तय होती है। इसीलिए यह कहा जाता है कि राजनीति का काम है लोगों को दिशा दिखाना।
हमारी राजनीति यह काम वास्तव में कर सके, इसके लिए राजनीतिक दलों को अपने रवैये में बदलाव लाने के लिए विशेष प्रयत्न करने होंगे। इसलिए और भी, क्योंकि बीते वर्ष टकराव और कलह की जो राजनीति देखने को मिली और इसके चलते देश की जनता का ध्यान वास्तविक मुद्दों से भटकाने की जैसी कोशिश की गई, वह बहुत ही निराशाजनक है।
बीते कुछ समय से राजनीति के स्तर पर यह जो प्रतीति कराने की कोशिश की जा रही है कि स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद हमारा संविधान खतरे में है, वह व्यर्थ का विचार है। इसी तरह यह प्रचारित करना भी सस्ती राजनीति का ही परिचायक है कि गांधी अथवा आंबेडकर की विरासत खतरे में पड़ गई है। ऐसे विचार भारत की राजनीतिक अपरिपक्वता और साथ ही छिछले सार्वजनिक विमर्श का परिचायक हैं।
जब इस पर देश और दुनिया एकमत है कि आने वाला कल भारत का है, तब उन संभावनाओं को भुनाने की हर संभव कोशिश होनी चाहिए, जो सामने दिख रही हैं। चूंकि संभावनाएं अपने साथ चुनौतियां लेकर भी आती हैं, इसलिए उनका सामना हमें पहले से अधिक दृढ़ता और मिलकर करना होगा। ऐसा किया जाना तब कहीं अधिक आसान होगा, जब नए विचार और नई कार्य संस्कृति को अपनाया जाएगा। इस संदर्भ में जितना सजग सरकारी तंत्र को रहना होगा, उतना ही समाज को भी।

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