देहरादून। उपनल महासंघ के प्रदेश मीडिया प्रभारी प्रदीप सिंह चौहान ने सरकार पर उपनल कर्मियों के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए कहा कि प्रदेश भर में उपनल के माध्यम से विभिन्न विभागों में कई वर्षो से अपनी सेवाएं दे रहे लगभग 22 हजार कर्मचारियों के साथ सरकार का दोहरा मापदंड उनके भविष्य के लिए ठीक नहीं है।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने वर्ष 2018 में प्रदेश सरकार को उपनल कर्मचारी के चरणबद्ध नियमितीकरण वह समान कार्य के लिए समान वेतन देने का आदेश दिया था, किंतु सरकार द्वारा इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई। सुप्रीम कोर्ट में मामले को लगभग 6 वर्ष होने को है लेकिन वहां से अभी तक कोई फैसला न आने से उपनल कर्मियों के हाथ निराशा लगी है।
इतना ही नहीं प्रदेश सरकार ने बाकायदा उपनल कर्मियों को न हटाए जाने का शासन आदेश जारी भी किया गया, बावजूद उसके कई विभागों से उपनल कर्मियों की सेवाएं समाप्त कर दी गई। ताजा मामला उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय का है जहां 44 उपनल कर्मियों की सेवाएं समाप्त कर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। जब कार्मिक उच्च न्यायालय की शरण में गए तब न्यायालय द्वारा विश्वविद्यालय को हटाएंगे 44 कर्मियों की पुर्ननियुक्ति के आदेश दिए गए, इस आदेश की अवमानना करते हुए विश्वविद्यालय ने मात्र 19 कार्मिकों की पुनर्नियुक्ति की जबकि 25 कार्मिकों की सेवाएं फिर भी बहाल नहीं की गई।
इनदिनों हरिद्वार का भी एक मामला सामने आया जहां विधिक सेवा प्राधिकरण न्याय विभाग से एक कार्मिक की सेवाएं समाप्त कर दी गई। सरकार कहीं संविदा कर्मचारियों के नियमित कारण की बात कर रही है, तो कहीं उपनल से तैनात कार्मिकों की सेवाएं यथावत बनाए रखने का शासनादेश जारी करती है, तो वहीं दूसरी ओर कई विभागों से उपनल कार्मिकों की सेवाएं समाप्त कर उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है, सरकार का ऐसा दोहरा मापदंड उपनल कार्मिकों के भविष्य के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
इन दिनों प्रदेश सरकार संविदा कर्मियों को नियमितीकरण की बात कर रही है, लेकिन सरकार द्वारा यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि इस संविदा नियमितीकरण में उपनल, पीआरडी एवं अन्य माध्यमों से लगे कार्मिक सम्मिलित नहीं है। जब प्रदेश सरकार के महत्वपूर्ण उपक्रम उपनल और पीआरडी के माध्यम से तैनात कार्मिक संविदा कर्मचारी की श्रेणी में नहीं है तो वह कौन संविदा कर्मचारी हैं जिनको सरकार नियमित करने की बात कह रही है?
विभिन्न विभागों में अपने जीवन के 18 से 20 वर्ष की सेवाएं देने के बाद उपनल कर्मी आज अपने सुरक्षित भविष्य की गुहार सरकार से लगा रहे हैं। कई बार सरकार से मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी वापस लेकर उत्तराखंड हाई कोर्ट के निर्देशानुसार कार्मिकों का नियमितीकरण और समान कार्य समान वेतन दिया जाए। कार्मिकों के सब्र का बांध अब टूटता नजर आ रहा है, नतीजन अब आर-पार की लड़ाई को उपनल कर्मचारी तैयार हो चुके हैं। प्रदेश के शासकीय कार्यों मैं बाधा उत्पन्न न हो सरकार को इसका ध्यान रखना जरूरी है और उपनल कर्मियों की जायज मांगों पर विचार कर एक ठोस कदम उठाना चाहिए जिससे प्रदेश के शासकीय कार्यों की व्यवस्था भी बनी रहे और उपनल कर्मियों का भविष्य भी सुरक्षित बन सके।
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