वैविध्यपूर्ण व समृद्ध है महाराष्ट्र के आदिवासियों की संस्कृति

मुंबई। महाराष्ट्र में लगभग 73 लक्ष आदिवासी हंै। उनके कई अलग समुदाय व उन समुदायों की उतनी ही अलग परम्पराएँ हैं चूंकि वे अलग प्रदेशों में और अलग परिस्थितियों मे रहे है, उन की संस्कृति एक वैविध्यपूर्ण तथा समृद्ध है। प्रकृति के करीब रहकर मानो इन्होने अपनी कला को प्रकृति के रंगों मे ढाला है। शहरी जीवन से निराली उनकी अपनी पहचान है और इसे वे बड़े नाज से सँभालते है। इस लेखद्वारा जानते है ऐसी ही एक आदिम कला को-वारली कला को।
वारली कला का इतिहास
वारली समुदाय महाराष्ट्र की , संख्या में, सबसे बड़ी समुदाय है। यह लोग ज्यादातर मुम्बई के करीब पालघर, ठाणे तथा गुजरात सीमा के करीब दादरा- नगर-हवेली में पाए जाते है द्य कोंकण प्रान्त में वारली कई जगहों पर मौजूद है द्य इनकी जीने की बुनियाद प्रकृति के आधार पर बनी है और वही उनका जीवन निर्धारित करती है द्य इस समुदाय का मुख्य व्यवसाय खेती-बाड़ी है क्यूंकि कोंकण प्रान्त में खेती के लिए आवश्यक कई संसाधन सालों से पाए गए है द्य वारली समुदाय कितने अर्सों से इस प्रान्त में रह रहे यह तय करना मुश्किल है द्य इस विषय पर कला इतिहास अभ्यासक यशोधरा दालमिया अपने पुस्तक ‘द पेंटेड वर्ल्ड ऑफ द वारलीज’ में लिखा है के उनकी परंपरा ईसापूर्व २५०० से ३००० वर्ष पुरानी है।