देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक आशुतोष जी महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ-भगवान श्रीराम का जीवन चरित्र समस्त मानव जाति के लिए प्रेरणा का स्रोत है। शब्द राम का तो विस्तार ही-राइट एक्शन मैन है अर्थात् सदा उचित कृत्यों को करने वाला व्यक्तित्व। सद्गुणों से परिपूर्ण श्रीराम का अनुसरण करके ही मानवता श्रेष्ठता को छू सकती है। और ऐसा करना अव्यावहारिक भी नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि राम के चरित्र को धारण कर हर क्षेत्र में सफलता के गगनचुंबी लक्ष्य पाए जा सकते हैं। आइए, राम नवमी के उपलक्ष्य में, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के गुण-सागर से कुछ गागर हम अपने लिए भरते हैं। सम अवस्था-श्रीराम ऐसे उत्तमपुरुष हैं, जिन पर परिस्थितियों का प्रभाव नहीं पड़ता। प्रभु के इसी सद्गुण का बखान करते हुए कहा गया (अयोध्या काण्ड/2)-रघुकुल को आनन्दित करने वाले श्रीराम के मुख की शोभा मंगल प्रदायिनी है। उनके कमल रूपी मुख पर न तो राज्याभिषेक का समाचार सुनकर प्रसन्नता की रेखा उभरी और न ही वनवास का श्रवण कर विषाद के चिह्न प्रकट हुए। अतः उन्होंने ऐसे समत्व स्थित योगी का आदर्श स्थापित किया, जिसने परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर ली।
विनम्रता व दृढ़ता का समन्वय-श्री राम के आचरण में शालीनता व वाणी की मधुरता के साथ-साथ शौर्य, पराक्रम व दृढ़ता भी कूट-कूट कर भरी है। वे एक साथ दोनों गुणों को धारण करते हैं। यह तथ्य अति विलक्षण है। बालकाण्ड में अंकित श्रीराम और परशुराम वार्त्ता इसी शौर्य पूर्ण शालीनता व शीलयुक्त दृढ़ता को दर्शाती है। जोसेफ जोबर्ट के शब्द हैं-‘पॉलिटेनेस्स इज द फ्लावर ऑफ ह्यूमैनिटी- विनम्रता मानवता का पुष्प है।’ पर श्रीराम की शालीन शूरवीरता मानवता से आगे पूर्णता की परिचायक है। उदारता- अहित करने वाले व्यक्ति को भी सहजता से क्षमाकर देना- यही उदारता है। श्री राम के उदारव करुणामयी वचनों ने माता कैकेयी की ग्लानि व मलिनभावों से युक्त मन का उपचार कर दिया। इसका एक दूसरा पक्ष भी है। दूसरों के प्रति उदार भाव रखने से स्वयं पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसीलिए हम इस अद्भुत गुण से स्वयं को अवश्य सींचे। कभी अपने भीतर इसे लुप्त न होने दें। अदम्य आत्मविश्वास-जटायु को रघुनन्दन द्वारा कहे गए वचन उनके अदम्य आत्मविश्वास के द्योतक हैं (अरण्यकाण्ड-31)- है तात! आप परलोक में जाकर सीता हरण का समाचार पिता दशरथ को न दें। क्योंकि यदि मैं राम हूँ, तो आपको विश्वास दिलाता हूँ कि लंकापति रावण कुटुम्ब सहित मृत्यु को प्राप्त होकर परलोक वासी होगा और स्वयं सारा विवरण दशरथ जी को सुनाएगा।
ऐसा ही हुआ। रावण, उसके भाई और उसके पुत्र मृत्यु को प्राप्त हुए। तीनों लोकों को जीतने वाला रावण भी परलोक सिधारा। असंभव भी संभव हो गया। ऐसे अद्भुत साहस और आत्मविश्वास के धनी थे श्रीराम। सारतः आदर्श चरित्र श्री राम उक्त वर्णित सभी गुणों के स्वामी थे। उन्होंने अपनी विभिन्न लीलाओं द्वारा धर्म के इन लक्षणों व गुणों को समाज के समक्ष रखा। ताकि मानव इनसे प्रेरणा प्राप्त कर सद्गुणों को अपने आचरण में ढाल सके। इसीलिए हमारा परम कर्तव्य है कि हम केवल राम को माने ही नहीं, अपितु उन्हें तत्वतः जानकर उनके चरित्र को अपने व्यवहार में ढालने का प्रयास करें। राम का चरित्र हमारे मानस में उतर जाए और प्रत्येक घट में रामचरितमानस साकार हो उठे।
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