अपात्र विकलांगता प्रमाणपत्रों से आरक्षण का लाभ लेने का मामला

नैनीताल। उत्तराखंड में अपात्र विकलांगता प्रमाण पत्रों के जरिए शिक्षा विभाग में आरक्षण का लाभ ले रहे दर्जनों कार्मिकों के प्रमाण पत्रों की जांच की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। पूर्व के आदेश पर राज्य सरकार ने जो लिस्ट पेश की, उससे कोर्ट संतुष्ट नहीं हुई। जिस पर कोर्ट ने स्वास्थ्य सचिव को कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कल कोर्ट में पेश होने को कहा गया।
मंगलवार को मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र एवं न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ में हुई। पूर्व में कोर्ट ने राज्य मेडिकल बोर्ड के महानिदेशक को नोटिस जारी किया था। शिक्षा विभाग में अध्यापकों व लिपिक वर्गीय श्रेणी में दिव्यांग आरक्षण के तहत राज्य बनने के बाद 52 पदों में हुई नियुक्तियों में से 13 नियुक्तियां मेडिकल बोर्ड ने सही पाई हैं। जबकि, बाकी कार्मिक साल 2022 में मेडिकल बोर्ड की ओर से दोबारे कराए गए मूल्यांकन में या तो अनुपस्थित रहे या फिर उनके प्रमाण पत्रों में भिन्नता थी। जबकि, कुछ को दिव्यांग श्रेणी में नहीं माना गया।
बता दें कि नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड उत्तराखंड की शाखा ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि अपात्र लोग धोखाधड़ी से श्दृष्टिबाधितश् श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ ले रहे हैं, जिससे वास्तविक दिव्यांग उम्मीदवार अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित हो रहे हैं, लेकिन इस पूरे मामले में प्रशासनिक स्तर पर शिकायत करने के बावजूद भी कोई ठोस एवं पारदर्शी कार्रवाई नहीं हो सकी।
याचिका में कहा गया है कि राज्य मेडिकल बोर्ड में साल 2022 में हुए मूल्यांकन में शिक्षा विभाग दिव्यांग श्रेणी के कई कर्मचारी मेडिकल जांच के लिए जानबूझकर उपस्थित नहीं हुए, जिससे उनके प्रमाण पत्रों के जाली होने का गहरा संदेह पैदा होता है। स्वास्थ्य सचिव को वीसी के जरिए कोर्ट में पेश होने के आदेशरू याचिकाकर्ता के वकील एडवोकेट गौरव पालीवाल ने कोर्ट को बताया कि इस मामले को देखने वाले राज्य आयुक्त, दिव्यांगजन ने भी शिकायत को खारिज कर दिया था। एम्स ऋषिकेश से दोबारे सत्यापन की मांग को नजरअंदाज कर दिया था। वहीं, अब 31 दिसंबर को स्वास्थ्य सचिव को कोर्ट में पेश होने के आदेश दिए गए हैं।