-अंग्रेज फ्रेडरिक विल्सन को हर्षिल इतना पसंद आया था कि यहीं के हो गए
देहरादून। हर्षिल वैली एक ऐसी जगह है, जिसे उत्तराखंड का स्वर्ग माना गया है। उत्तराखंड में स्वर्ग जैसी दिखने वाली यह जगह राज्यवासियों के लिए ही नहीं बल्कि उन लोगों के भी गर्व की बात है जो अपना समय प्रकृति के साथ बिताना पसंद करते हैं। हर्षिल वैली भागीरथी नदी के किनारे स्थित घने देवदार के जंगलों के बीच स्थित एक छोटा सा हिल स्टेशन है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 2660 मीटर है। हर्षिल गांव प्रसिद्ध धाम गंगोत्री के पास बसा हुआ है। हर्षिल वैली की सुंदरता चारों तरफ घास के मैदान, बहती गंगा, ऊंचे हरे-भरे पहाड़ों के साथ हिमालय की बर्फीली वादियां साथ ही दूध की तरह बहने वाले झरने और घन देवदार के वृक्ष पर्यटकों को अपना दीवाना बना देते हैं।
हर्षिल, हिमालय की तराई में बसा एक गांव, जो चुम्बकीय शक्ति का आभास करता है। एक बार वहां पहुंच गए तो यह बिना किसी किन्तु-परंतु के अपनी तरफ खींचता ही रहता है। हर्षिल पहुंचकर मानो सपनों की दुनिया में पहुंच गए हों। पहाड़ पसंद लोगों के लिए यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। वहां की फिजाओं में अलग तरह की मादकता है। हर्षिल की खोज ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करने वाले अंग्रेज फेड्रिक विल्सन ने की थी। सन 1857 में जब फ्रेडरिक विल्सन ने ईस्ट इंडिया कंपनी को छोड़ दिया था जब वह गढ़वाल क्षेत्र में आए थे। जहां उन्होंने देखा भागीरथी नदी के तट पर एक शांत और खूबसूरत गांव है जिसके चारों ओर देवदार के जंगल थे। फ्रेडरिक विल्सन को यह जगह इतनी पसंद आई कि उन्होंने यहीं बसने का निर्णय लिया और स्थानीय लोगों के साथ मिलकर रहने लगे। उन्होंने गढ़वाली भाषा भी सीख ली थी। उसके बाद फ्रेडरिक विल्सन ने अपना घर बसाया और पहाड़ी लड़की से विवाह भी किया। विल्सन ने यहां इंगलैंड से सेब के पौधे भी मंगवाए थे और लगाए भी। इसलिए यहां सेब की एक प्रजाति विल्सन के नाम से ही जानी जाती है। इहर्षिल में सेब का पहला पेड़ फेड्रिक विल्सन ने इंग्लैंड से लाकर लगाया था तब से यहां पर सेब की खेती और व्यापार होने लगा। विल्सन ने ही हर्षिल को स्विट्जरलैंड की उपाधि दी थी।
भागीरथी नदी के तट पर स्थित हर्षिल घाटी में बर्ड वॉचिंग और ट्रैकिंग के साथ-साथ कई बेहतरीन जगहों पर घूमकर ट्रिप को जीवन भर के लिए एक यादगार बनाया जा सकता है। हर साल यहां हजारों सैलानी घूमने के लिए आते हैं। नदी का बहता पानी और पानी संगीत की तरह बहता है, जिसे देखने के लिए सभी सैलानी नजारे टिकाए रहते हैं। हर्षिल से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर मुखबा गांव स्थित है। यहां प्रकृति की खूबसूरती को देखते हुए बहती हुई ठंडी हवा की आवाज महसूस कर सकते हैं। यहां बर्फबारी का भी लुत्फ उठा सकते हैं। कई लोग इस जगह को देवी गंगोत्री का घर भी मानते हैं। हर्षिल प्राकृतिक खूबसूरती और गंगोत्री नदी के लिए प्रसिद्ध है, तो बर्डवॉचर्स के लिए के लिए भी यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। हर्षिल के घने जंगलों में पक्षियों की बृहद संख्या है। कहा जाता है कि यहां 5 सौ से भी अधिक पक्षियों की प्रजातियां मौजूद है। इन हजारों पक्षियों की मधुर आवाज यकीनन यात्रा को एक यादगार पल में तब्दील कर देती है। यहां हर तरफ सेब ही सेब के खेत दिखाई देंगे। हर्षिल में मौजूद झील में नौका विहार का आनंद उठाया जा सकता है। हर्षिल में हर साल उत्तरकाशी मेला लगता है, जो बेहद ही फेमस मेला है। इस मेले में स्थानीय संस्कृति का अनोखा संगम देखने को मिलता है।
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