त्रिपुरा के एंजेल चकमा की हत्या पर सामाजिक संगठनों में आक्रोश

देहरादून। बीती 9 दिसंबर को त्रिपुरा के छात्र एंजेल चकमा के साथ हुई मारपीट फिर उसकी 26 दिसंबर को ग्राफिक एरा हॉस्पिटल में मौत के बाद तमाम संगठनों में आक्रोश देखने को मिल रहा है। सोशल मीडिया पर भी एंजेल की न्याय को लेकर कैंपेन चलाया जा रहा है। इसी मामले में देहरादून के सामाजिक संगठनों में भी आक्रोश देखने को मिला।
शहर में मौजूद कई सामाजिक संगठनों ने एकजुट होकर देर शाम गांधी पार्क में एंजेल चकमा की हत्या पर न्याय मांगा और सरकार से गुहार लगाई कि वो प्रदेश में फैल रहे नफरत की राजनीति को कम करें। उनका कहना था कि जिस तरह से उत्तराखंड एक शांतिप्रिय राज्य के रूप में जाना जाता है, इसकी अबोहवा में नफरत ना फैलाएं। गांधी पार्क पर इकट्ठा हुए सामाजिक संगठनों में कई छात्रों और आम लोगों ने भी भाग लिया। विशेष तौर से इस कैंडल मार्च में समाजसेवी अनूप नौटियाल, राज्य आंदोलनकारी रही कमला पंत, मूल निवास भू कानून संघर्ष समिति के संयोजक लुशुन टोडरिया, प्रदीप सती के अलावा अलग-अलग सामाजिक संगठनों के साथ छात्र-छात्राएं, महिलाएं और युवा भी शामिल हुए।
समाजसेवी अनूप नौटियाल ने कहा कि लोगों में बहुत ज्यादा नाराजगी है। लोगों की नाराजगी साफतौर से सोशल मीडिया के साथ कैंडल मार्च में भी देखी जा सकती है। उन्होंने कहा लोगों में 24 साल के उस युवा छात्र एंजेल चकमा की मौत का दुख भी है, संवेदनाएं भी है तो वहीं सरकार से कुछ अपेक्षाएं भी है।
इसके अलावा पुलिस की ओर से हत्याकांड में शामिल अपराधियों का नॉर्थ ईस्ट से होने की बात अनूप नौटियाल ने कहा कि इसमें से केवल एक अपराधी नॉर्थ ईस्ट से है, इससे ये स्पष्ट नहीं हो जाता है कि सारे नॉर्थ ईस्ट से हैं। उन्होंने कहा कि यह हिमालयी राज्यों का विषय है कि एक हिमालय राज्य का युवा दूसरे हिमालय राज्य के युवा के साथ नफरत की भावना रखता है। जो कतई नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि सरकार चाहती है कि लोगों का आक्रोश ना बढ़े तो इसके लिए पुलिस को इस केस को अन्य सामान्य केसों की तुलना में फास्ट ट्रैक करना पड़ेगा। स्थानीय महिला और समाजसेवी नलिनी तनेजा का कहना है कि इस तरह की घटनाएं काफी पहले से होती आ रही हैं। जब वो भी बचपन के दौर से गुजरे तो उस समय भी इस तरह से ईव टीजिंग और नस्लभेद टिप्पणियां की जाती थी, लेकिन लोगों की इतनी हिम्मत नहीं थी कि इन मामलों पर किसी की जान ले ले।
उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाएं बताता है कि हमारा युवा किस दिशा में जा रहा है और वो किस माहौल में जी रहा है। उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले में अगर सरकार की भूमिका की बात की जाए तो सरकार को जिम्मेदारी तय करनी चाहिए। नलिनी तनेजा ने कहा कि प्रदेश में इतनी बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटीज खोली जा रही हैं। देश-विदेश से लोग यहां पर आ रहे हैं और इस तरह से नस्लभेद और भेदभाव को बढ़ावा दिया जाएगा तो निश्चित तौर से वो आपराधिक प्रवृत्ति को जन्म देगा। ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लोग भी कैंडल मार्च में शामिल हुए। ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट ओशीन ने कहा कि देहरादून में पढ़ने वाले छात्र देश के अलग-अलग राज्यों और शहरों से आते हैं। ऐसे में क्षेत्रवाद के दृष्टिकोण से बिल्कुल भी भेदभाव नहीं होना चाहिए। यह समाज के काले पहलू को दिखाता है। उन्होंने कहा कि देश संविधान से चलता है और संविधान किसी की भी जाति, क्षेत्र और वर्ग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसके बावजूद भी उत्तराखंड की राजधानी में ऐसी घटना हुई है। इस मामले में हत्या तक हुई है, यह बेहद शर्मनाक है। उन्होंने कहा यह हमारे राज्य ही नहीं बल्कि, हमारे राज्य की सरकार के लिए भी बेहद शर्मनाक है।