उत्तराखंड में छठें राज्य वित्त आयोग का गठन, पूर्व सीएस की अध्यक्षता में गठित हुई कमेटी

-छठवां राज्य वित्त आयोग राज्यपाल को सौपेगी अपनी सिफारिशें
-त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों का भी करेगा आकलन

देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने छठवें राज्य वित्त आयोग का गठन कर दिया है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव रहे एन रविशंकर की अध्यक्षता में गठित किए गए आयोग में पूर्व आईएएस अधिकारी पीएस जंगपांगी और डॉ। एमसी जोशी को इसका सदस्य बनाया गया है। इसके साथ ही अपर सचिव वित्त डॉ। अहमद इकबाल को छठवें राज्य वित्त आयोग का सचिव बनाया गया है। वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव, आनंद बर्द्धन ने छठवें राज्य वित्त आयोग के गठन संबंधित अधिसूचना भी जारी कर दी है।
जारी आदेश के अनुसार छठवें राज्य वित्त आयोग का कार्यकाल एक साल का होगा। ये आयोग एक अप्रैल 2026 से अगले पांच साल की अवधि के लिए अपनी सिफारिश देगा। अपने कार्यकाल के दौरान आयोग, त्रिस्तरीय पंचायत राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिति का आकलन करेगा। इसके बाद रिपोर्ट में आयोग अपनी सिफारिशें तैयार कर राज्यपाल को सौंपेगा। कुल मिलाकर छठवें राज्य वित्त आयोग के गठन का मुख्य उद्देश्य यही है कि वित्तीय स्थिति को कैसे मजबूत किया जा सके साथ ही अतिरिक्त संसाधन जुटाने के लिए लिए क्या पहल किया जा सकते हैं इसकी सिफारिश करेगा।
छठवें राज्य वित्त आयोग को तमाम अधिकार दिए गए हैं। जिसके तहत, आयोग किसी भी अधिकारी या प्राधिकरण से कोई भी सूचना या दस्तावेज मांग सकता है। आयोग किसी भी व्यक्ति को साक्ष्य के लिए या दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए बुला सकता है। साथ ही आयोग को अपनी प्रक्रिया स्वयं निर्धारित करने की पावर दी गई है। ये आयोग 31 मार्च, 2025 तक सभी स्तरों पर पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों के लोन की स्थिति का आकलन कर सकता है। साथ ही राज्य की वित्तीय जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सुधारात्मक उपाय सुझा सकता है।
आयोग राजस्व और पूंजी दोनों पक्षों पर खर्च के लिए निधियों की व्यवस्था के संबंध में सिफ़ारिश देगा। इसमें साथ ही आयोग, सत्रहवें वित्त आयोग के लिए मुद्दों को भी चिन्हित करेगा। वित्त आयोग करों, शुल्कों, टोल और फीसों की शुद्ध आय अपने-अपने हिस्से का सभी स्तरों पर पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों के बीच आवंटन करेगा। उनकी वित्तीय स्थिति को मजबूत करने के उपाय सुझाएगा। इसके साथ ही करों, शुल्कों, टोल और फीसों का निर्धारण जो त्रिस्तरीय पंचायतों स्थानीय निकायों को सौंपे जा सकते हैं।

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