सिलक्यारा सुरंग हादसे ने खोल दी श्रमिक सुरक्षा मानकों की पोल

देहरादून। सिलक्यारा सुरंग हादसे ने श्रमिक सुरक्षा मानकों की पोल खोल दी है। सुरंग निर्माण कार्य से जुड़े श्रमिकों की सुरक्षा के लिए मजबूत व ठोस व्यवस्था किए जाने की जरूरत है। उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालकर हमने बड़ी सफलता हासिल की है, लेकिन इसका जश्न मनाने के साथ यह भी सोचना होगा कि यह हादसा हुआ क्यों। सवाल यह भी है कि देश में श्रमिकों की सुरक्षा को लेकर सरकारें और संस्थान कितने गंभीर हैं। सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों के रेस्क्यु ऑपरेशन की अद्भुत सफलता के बाद अब क्या भारत सरकार की एक प्रमुख परियोजना में उत्तरकाशी एक्सिडेंट एक सबक है। यह श्रमिकों की सुरक्षा की समीक्षा की जरूरत बताता है। यह बताता है कि विधायी और नियामकीय स्तर पर बहुत कुछ करने की जरूरत है। यह कोई रहस्य नहीं है कि श्रमिकों को खतरनाक परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्हें काम करते वक्त अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करवाने के अधिकार जैसी अवधारणा नहीं के बराबर है। श्रम कानूनों की गुत्थियों में उलझे ऐसे कुछ अधिकार हैं भी तो वो अक्सर केवल कागज पर ही होते हैं क्योंकि श्रमिक शब्द को ही समान रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। यह बस एक अड़चन है। देशभर में वर्कप्लेस पर हादसों, चोटों और मौतों को बहुत कम रिपोर्ट किया जाता है। कई श्रम कानून सुरक्षा मानकों और मुआवजे का उल्लेख करते हैं, लेकिन अनुपालन खराब है। निगरानी और पर्यवेक्षण तो और भी बदतर है।
13 श्रम कानूनों को व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2019 में समेटने के प्रयास 2020 में ठप पड़ गए क्योंकि इसमें कई कमियां सामने आ गईं। श्रमिक शब्द अभी भी परिभाषित नहीं किया गया था। भारत ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) श्रमिक सुरक्षा पर दो सम्मेलनों में से किसी का भी अनुमोदन नहीं किया है। देश में व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य पर कोई प्राथमिक कानून नहीं है। मृत्यु पर श्रमिकों या उनके परिवारों को मुआवजा देने की प्रथा है। लेकिन इसका भी दावा करना काफी मुश्किल होता है। कार्यस्थल पर दुर्घटनाएं और मौतें बढ़ रही हैं। निर्माण स्थलों पर श्रमिकों को ही लें। सभी भारतीय शहरों में तेजी से निर्माण गतिविधि हो रही हैं। श्रमिकों का बड़ा हिस्सा एक राज्य से दूसरे राज्य में काम करने वाले प्रवासी हैं, जो उन्हें और भी अधिक असुरक्षित बनाता है। एंप्लॉयर भी ऐसे प्रवासी कामगारों के प्रति लापरवाही भरा रवैया रखते हैं। निर्माण स्थलों पर सुरक्षा की निगरानी के लिए कोई विशिष्ट राज्य एजेंसी नहीं है। राज्य श्रम विभाग निर्माण स्थलों पर उपकरणों, लिफ्टों और क्रेनों की सुरक्षा को प्रमाणित करने के लिए एक बाहरी एजेंसी का उपयोग करता है। सिलक्यारा में ड्îूटी कर रहे श्रमिकों के जीवन को आफत में डालने और रेस्क्यु ऑपरेशन को इतना दुरूह बनाने वाली चूकों की जांच हो रही है।
सिलक्यारा हादसे ने सुरंग के निर्माण मानकों की पोल खोल दी है। पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील हिमालयी इलाके में सुरंगों के निर्माण में नियमों की खुली अनदेखी हो रही है। 4.5 किमी लंबी और लगभग 865 करोड़ की लागत से बन रही सिलक्यारा सुरंग पर तरह तरह के सवाल उठ खड़े हुए हैं। सुरंग बनाने के मानदंडों का उल्लंघन होने के आरोप लगने के बावजूद सिल्क्यारा सुरंग निर्माण में लगी कंपनी नवयुग सरकार और मीडिया की नजरों से दूर ही है। सिल्क्यारा सुरंग के निर्माण कंपनी की जवाबदेही तय करने की मांग भी राजनीतिक और सामाजिक संगठन करने लगे हैं। उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्र में इतनी बड़ी संख्या में सुरंग आधारित परियोजनाओं के निर्माण स्थल पर बचाव के कोई इंतजाम किए बिना मजदूरों के जीवन से खेला जा रहा है। यहां सुरंगों के धंसने और निर्माणाधीन सुरंगों के ऊपर बसी बस्तियों के धंसने की शिकायत आम हैं। उत्तराखंड एक विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों वाला राज्य है। यहां की जनता को उनकी जिन्दगी की मुश्किलें कम करने के लिए अच्छी सड़कों की जरुरत तो है ही बिजली-पानी और अन्य आधुनिक सुविधाओं की भी आवश्यकता है। लेकिन पहाड़ों पर सड़कें बनाना तो आसान है मगर उन सड़कों के निर्माण से उत्पन्न परिस्थितियों से निपटना अत्यधिक कठिन है। पहाड़ों को काटकर बनने वाली सड़कों के चलते पहाड़ से इरोजन रोकना चुनौती बन जाता है।
पहाड़ में मिलने वाले तेज ढलान के कारण पनबिजली उत्पादन के लिए हिमालयी क्षेत्रों को सबसे अनुकूल समझा जाता है। पन बिजली पैदा करने के लिए ग्रेविटी या ढलान की तेज धार या पानी की भौतिक ऊर्जा से पावर हाउस की टरबाइन बिजली का उत्पादन होता है। इसके लिए भी यहां सुरंगें बन रही हैं। भूमिगत बिजली घर बनने के बाद अब पहाड़ी शहरों की ट्रैफिक समस्या के समाधान के लिए भी भूमिगत पार्किंग को इस समस्या का समाधान माना जाने लगा है। उत्तराखंड में चार धाम ऑल वेदर रोड और ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल परियोजना की सुरंगों के अलावा जल विद्युत उत्पादन और शहरों में पार्किंग लिए भी सुरंगें बन रही हैं। सिलक्यारा सुरंग हादसे के बाद हिमालयी क्षेत्र में सुरंग निर्माण को लेकर कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। हिमालय जटिल भूगर्भीय संरचनाओं वाला एक भूकंपीय दृष्टि से सक्रिय क्षेत्र है, जिसमें विभिन्न प्रकार की चट्टानें, भ्रंश रेखाएं और अस्थिर भूभाग शामिल हैं। यहां कठिन चट्टानों, भूस्खलन और भूगर्भीय अस्थिरता के कारण सुरंग बनाने के लिए चुनौतियां पैदा होती हैं। कम तापमान, ऑक्सिजन की कमी और कठिन पहुंच जैसी चुनौतियां निर्माण को और दुष्कर बनाती हैं। कठोर चट्टनों में सुरंग बनाने, पानी के प्रवेश का प्रबंधन करने, वेंटिलेशन सुनिश्चित करने और खड़ी चट्टानों में स्थिरता बनाए रखने के लिए उन्नत इंजीनियरिंग तकनीकों और विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है। हिमालय में भूगर्भीय निर्माण गतिविधियों का यहां नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

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