-विरासत महोत्सव में स्कूलों के बच्चों ने सीखे मिट्टी के बर्तन बनाने,पतंग बनाना तथा अन्य कई आइटम बनाने की विधि
…..और उषा उत्थुप ने बना लिया सभी को अपना “दीवाना”
देहरादून, गढ़ संवेदना न्यूज: विरासत महोत्सव में आज भिन्न-भिन्न स्कूलों के 86 स्कूली बच्चों ने प्रतिभाग कर तरह-तरह की कलाओं में अपने-अपने हुनर का रोचक एवं अद्भुत प्रदर्शन किया I उन्होंने मिट्टी के बर्तन बनाना, पतंग बनाना, कागज के फूल इत्यादि बनाने के अलावा कपड़े से भिन्न-भिन्न प्रकार की आकर्षक और बेहतरीन वस्तु बनाना भी आज के विरासत कार्यक्रम में सीखें I विरासत महोत्सव में बच्चों के लिए पेंटिंग एवं अन्य भिन्न-भिन्न कलाओं से संबंधित हुनर दिखाने के आकर्षक कार्यक्रम की प्रस्तुति की गई I आज के कार्यक्रम में लतिका बिहार स्कूल के 40, ओलम्पस हाई के 10 बच्चों के अलावा श्री गुरु राम राय पब्लिक स्कूल बालावाला के 16 तथा लतिका रॉय फाऊंडेशन के 20 स्कूली बच्चों ने शिरकत करके अपने-अपने हुनर भिन्न-भिन्न कलाओं में दिखाए। बच्चों ने क्राफ्ट कार्यशाला में डॉल बनाने, ग्लास और बोतलों पर पेंटिंग करने के अलावा ब्लॉक पेंटिंग आदि भी सीखे I बच्चों में इस दौरान काफी उत्साह और उमंग विरासत में आयोजित इस क्राफ्ट कार्यशाला में देखने को मिला I विरासत में जहां एसजीआरआर पब्लिक स्कूल बालावाला के छात्र विदित बर्थवाल ने दिल्ली के देवेंद्र चाचा से मिट्टी के बर्तन बनाने की विधि को सीखा, तो वही ओलंपस हाई के बच्चों ने भी देवेंद्र चाचा से मिट्टी के बर्तन बनाना सीखा I आयोजित की गई क्राफ्ट कार्यशाला में स्कूल के बच्चों ने रामपुर, उत्तर प्रदेश के शावेज मियां से भी पतंग बनाने के अलावा और भी अन्य आकर्षक आइटमों को बनाने की कलाकार का हुनर सीखाI स्कूली बच्चों ने पूरी दिलचस्पी एवं उत्साह के साथ प्रतिभाग कर भिन्न-भिन्न प्रकार की कला में अपनी-अपनी प्रतिभाओं का शानदार हुनर दिखाया, तो वहीं क्राफ्ट में बच्चों ने अपनी अद्भुत प्रतिभाओं के जलवे उत्साह पूर्वक दिखाए I क्राफ्ट कार्यशाला में विरासत की तरफ से वॉलिंटियर्स में नेहा जोशी, अरिहंत, अनुज आदि उपस्थित रहे I उन्होंने सभी स्कूली बच्चों के साथ पूर्ण सामंजस्य एवं घुल-मिलकर कार्यक्रम को और भी बेहतरीन बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी I रीच संस्था द्वारा आयोजित इस विरासत में आज भी स्कूली बच्चों द्वारा अपनी कलाओं का हुनर दिखाने में काफी अधिक उमंग और उत्साह दिखाई दिया I
विरासत की संध्या में आज के मुख्य अतिथि यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस की सीएमडी सुश्री गिरिजा एस. रहीं I उन्होंने विरासत के आयोजन को कलात्मक एवं शास्त्रीय संगीत के दृष्टिगत बहुत ही महत्वपूर्ण बताया और कहा कि इस तरह के आयोजन सदैव होते रहने चाहिए I
शाश्वती मंडल के हिंदुस्तानी शास्त्रीय राग-संगीत ने विरासत में चलाया “जादू”
…….और मद-मस्त हो गए विरासत की महफिल के मेहमान
विख्यात हिन्दुस्तानी संगीत के कलाकार शाश्वती मंडल ने अपने गायन की शुरुआत राग जयजयवंती में विलंबित ख्याल में बंदिश “माथे जद चंदा…..” से की। तत्पश्चात् उन्होंने धृत एक ताल में एक बंदिश गाई, ”बैरन जागी……” उन्होंने अपने कार्यक्रम का समापन राग खमाज में एक खूबसूरत टप्पा के साथ किया, ”चल पहचानी ए मिया मैं तो..’ विरासत की महफिल में उनके साथ हारमोनियम पर पं. धर्मनाथ मिश्र, तबले पर पं. मिथिलेश झा और तानपुरा पर उनकी शिष्या चिन्मयी आठले साठे ने बेहतरीन एवं भव्य संगत की।
भारतीय शास्त्रीय संगीतों के सुर और भिन्न-भिन्न रागों से हर दिन विरासत महोत्सव की शाम एक यादगार शाम के रूप में दर्ज होती जा रही है I इसी कड़ी में आज विरासत की संध्या काल में प्रसिद्ध हिंदुस्तानी लोक गायक शाश्वती मंडल की मनमोहक प्रस्तुति भी सभी के लिए यादगार बन चुकी है I देश-विदेश में विख्यात यह नामचीन महिला हस्ती आज विरासत में मौजूद रहीं और उन्होंने अपने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत से सभी के दिल और दिमाग पर राज कर लिया I
शाश्वती मंडल एक मशहूर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत गायिका हैं। वे ग्वालियर घराने की एक प्रतिपादक हैं। उनका जन्म संगीतकारों के एक परिवार में हुआ था। उनके नाना पंडित बालाभाऊ उमड़ेकर ‘कुंडलगुरु’ ग्वालियर के शाही दरबार में गायक थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शास्त्रीय शिक्षा बहुत कम उम्र में अपनी मां श्रीमती कमल मंडल के मार्गदर्शन में शुरू की। उन्हें ग्वालियर घराने के दिग्गज गायक पंडित बालासाहेब पूंछवाले से सीखने के लिए संस्कृति विभाग,भारत सरकार से छात्रवृत्ति मिली, जिन्होंने उन्हें ग्वालियर गायकी की बारीकियाँ सिखाईं और उन्हें जीवंत अर्ध-शास्त्रीय शैली, टप्पा गायन की कला का भी प्रशिक्षण दिया।
उन्होंने ठुमरी के लिए पूर्णिमा चौधरी, ध्रुपद के लिए गुंदेचा बंधुओं और ग़ज़ल गायन के लिए सरबत हुसैन से भी कुछ समय तक शिक्षा प्राप्त की। उन्हें गंधर्व महाविद्यालय नई दिल्ली के मधुप मुद्गल के अधीन अध्ययन हेतु संस्कृति फाउंडेशन की मणि मान फ़ेलोशिप प्राप्त हुई। इसके अतिरिक्त वे कुमार गंधर्व की गायकी और जयपुर-अतरौली घराने के प्रदर्शनों की सूची से भी काफ़ी प्रभावित हैं। उन्हें टप्पा गायन की अग्रणी गायिकाओं में से एक माना जाता है। उन्होंने भारत और विदेशों में व्यापक रूप से प्रदर्शन किया। उनके कुछ प्रमुख प्रदर्शनों में पुणे में सवाई गंधर्व भीमसेन महोत्सव, यूनाइटेड किंगडम में दरबार महोत्सव, अहमदाबाद में सप्तक वार्षिक संगीत महोत्सव और कई अन्य उत्सव शामिल हैं।
शाश्वती ऑल इंडिया रेडियो में एक ‘उच्चतम’ श्रेणी की कलाकार हैं और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद में एक सूचीबद्ध कलाकार हैं। उन्हें अपने करियर में कई पुरस्कार मिले हैं I शाश्वती ने ऑल इंडिया रेडियो, भोपाल में एक स्टाफ कलाकार और मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई में संगीत के सहायक प्रोफेसर के रूप में भी काम करके अपनी पहचान को आगे बढ़ाया।
…..और उषा उत्थुप ने बना लिया सभी को अपना “दीवाना”
मशहूर उषा उत्थुप के डिस्कोथेक पर झूम उठी विरासत संध्या की शाही महफिल
हजारों युवाओं के दिलों-दिमाग पर ही नहीं, बल्कि सभी उम्र के लोगों पर अपनी आवाज के जादू में पिरो लिया इस महान गायक संगीतकार ने
उत्थुप देखते ही देखते बन गई विरासत की “सबसे मस्त हीरो”
उषा उत्थुप की अदा पर भी फिदा हुए उत्थुप के दीवाने…..
विरासत महोत्सव में आज मंगलवार को एक ऐसे शाही शास्त्रीय संगीत के कलाकार का बहुत ही बेहतरीन एवं आकर्षक आवाज के साथ पदार्पण हुआ, जिसने सभी युवा दिलों पर ही अपना जादू नहीं किया, बल्कि विरासत के आज के हजारों मौजूद रहे मेहमानों के दिलों दिमाग पर भी अपनी प्रस्तुति से जादू कर डाला I जी हां, आपने सही अंदाजा लगाया और वह मशहूर नाम उषा उत्थुप का ही है, जिसने आज विरासत की महफिल को अपने भव्य व आकर्षक गीतों से सजा डाला और सभी को मदहोश कर डाला I उषा उत्थुप की आवाज का जादू सुनने के लिए विरासत के लाखों प्रशंसा इस विरासत के शुरू होने के बाद से ही बेकरार नजर आ रहे थे और वह दिन आज आ ही गया, जब अपनी जादुई प्रस्तुतियों से उषा उत्थुप ने सभी को अपने गीतों पर झूमने और थिरकने पर मजबूर कर दिया I उषा उत्थुप द्वारा शिव आराधना के भक्ति गीत पर झूमे श्रोतागण और प्रशंस… अजीब दास्तां है ये……कहां शुरू कहां खत्म……ये मंजिलें हैं कौन सी……न वो समझ सके, न हम…..ये रोशनी के साथ क्यों….. धुआं उठा चिराग़ से…..दम मारो दम….मिट जाएं ग़म…..बोलो सुबह शाम….. हरे कृष्णा, हरे राम….. आ देखें ज़रा……किसमें कितना है दम….. उषा उत्थुप के इन्हीं अदाकारी से लबालब गानों से विरासत महोत्सव लगातार झूमता रहा I
उषा उत्थुप 54 वर्षों से भी अधिक समय से संगीत के माध्यम से सीमाओं को पार कर रही हैं और संगीत के माध्यम से प्रेम, एकता, शांति, सद्भाव, सहिष्णुता, अखंडता और खुशी का संदेश के प्रकाश को भी फैला रही हैं। डिस्कोथेक से लेकर भारत और दुनिया भर के संगीत समारोहों तक, उन्होंने युवाओं को संगीत के उन मूल्यों के बारे में बताया है, जो हमें इंसान बनाते हैं। वह अपने विश्वास के अनुसार जीती हैं, पारंपरिक परिधानों में सजे सबसे समकालीन गीतों को भी प्रस्तुत करती हैं और इस तथ्य को दर्शाती हैं कि भारत अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान के साथ विश्व संस्कृतियों का एक सच्चा मिश्रण है। वह एक पारंपरिक मध्यम वर्गीय दक्षिण भारतीय परिवार से आती हैं। उनके करियर की शुरुआत 1969 में चेन्नई के नाइन जेम्स नामक नाइट क्लब से हुई और उन्होंने सौ से ज़्यादा एल्बम रिकॉर्ड किए हैं। वह सत्रह भारतीय भाषाओं और आठ विदेशी भाषाओं में गाती हैं।
उषा की धुन एक सार्वभौमिक भाषा बोलती है और धर्म, नस्ल, राष्ट्रीयता और जाति से परे है। उन्होंने दूर-दराज की संस्कृतियों के लोगों को एक भारतीय महिला की अप्रत्याशित छवि मजबूत, स्वतंत्र, विनोदी, बुद्धिमान और प्रतिभा से भरपूर रूप में दी है ।
खास बात यह है कि उन्होंने मदर टेरेसा के मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी के लिए काम किया है और कोलकाता के कालीघाट स्थित शिशु भवन, प्रेम दान के लिए धन जुटाया है। उन्हें गीतों के माध्यम से दुनिया भर के समुदायों को एक साथ लाने में योगदान के लिए केन्या की कुंजी से सम्मानित किया गया था।उन्होंने कैंसर, एड्स, महिला तस्करी, बाल शोषण पर शोध में सहयोग देने के लिए अनगिनत गैर सरकारी संगठनों और सरकार के साथ काम भी किया। उन्होंने एड्स के लिए रिचर्ड गेरे फाउंडेशन के साथ काम किया है। महिला सशक्तिकरण से संबंधित गैर सरकारी संगठनों, स्वयं, लाडली और दक्षिण भारत के कई अन्य संगठनों के साथ काम किया है। उन्होंने सड़क पर रहने वाले बच्चों और रेड लाइट एरिया से आने वाले बच्चों के लिए काम करने के साथ ही यूरोप, अफ्रीका और एशिया में आईसीसीआर के माध्यम से भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है। उन्हें वर्ष 2011 में प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार मिला। इसके अलावा उन्होंने दावोस में विश्व पर्यावरण मंच पर एक टेड वक्ता के रूप में अपनी प्रस्तुति दी, जिसे दर्शकों ने खड़े होकर सराहा। अन्य पुरस्कारों की श्रृंखला में उषा उत्थुप को जो अन्य सम्मान, पुरस्कार मिले हैं उनमें क्रमशः 2011 में फिल्म फेयर पुरस्कार, वर्ष 2024 में प्रतिष्ठित पद्म भूषण पुरस्कार मुख्य रूप से शामिल हैं I
उन्होंने कुछ मलयालम, तमिल, कन्नड़ के साथ-साथ हिंदी और भारतीय फिल्मों में एक गायिका और अभिनेत्री के रूप में अभिनय करियर में भी एक दिलचस्प शुरुआत की।
प्राकृतिक और जैविक प्रथाओं को अपनाना आवश्यक : जतिन दास
यूपीएसई में आयोजित हुआ पद्मभूषण जतिन दास का टॉक शो
विरासत महोत्सव की ओर से आज यहां यूपीएसई में पद्म भूषण जतिन दास का “पारंपरिक एवं समकालीन कला” विषय पर ज्ञानवर्धक टॉक शो आयोजित किया गया I आयोजित किए गए इस टॉक शो में बतौर मुख्य अतिथि जतिन दास ने अपने संबोधन की शुरुआत अपनी जड़ों, देश और संस्कृति से जुड़े रहने के महत्व पर ज़ोर देकर की। उन्होंने विशेष रूप से जीवन में प्राकृतिक और जैविक प्रथाओं को अपनाने के महत्व पर प्रकाश डाला और इस बात पर ज़ोर दिया कि सच्चाई रचनात्मकता प्रामाणिकता और सरलता से ही उभरती है। इस अवसर पर उन्होंने मानव अनुभव को आकार देने में कला और सौंदर्यशास्त्र की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में भी अपने विचार व्यक्त किये I उन्होंने यह भी कहा कि सभी को अपनी कला का अनुसरण करना चाहिए, चाहे वह नृत्य हो, संगीत हो, चित्रकला हो या कोई अन्य रचनात्मक रूप ही क्यों न हो I पद्म भूषण जतिन दास ने श्रोताओं को समर्पण और ईमानदारी के साथ कलात्मक अभिव्यक्ति को आगे बढ़ाने के लिए भी प्रेरित किया। कार्यक्रम में एक पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन भी प्रस्तुत किया गया, जिसमें उनकी उल्लेखनीय कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया और समकालीन समय में पारंपरिक कला के सार की खोज की गई। कार्यक्रम का समापन एक रोचक प्रश्नोत्तर सत्र के साथ हुआ, जहां जतिन दास ने दर्शकों के साथ बातचीत की तथा एक कलाकार के रूप में अपने विशाल अनुभव से प्राप्त बहुमूल्य अंतर्दृष्टि साझा की।
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