जल संचय लेकर गंभीर प्रयासों की जरूरत

जल संचय को लेकर गंभीर प्रयास करने की जरूरत है। इस दिशा में कारगर कदम उठाए जाने चाहिए। जल संरक्षण के उपाय नहीं किए गए, तो स्थिति और बिगड़ सकती है, जिसकी भरपाई असंभव हो जाएगी। पानी के मामले में सबसे बड़ा संकट आंकड़ों की कमी है, जो दर्शाता है कि वैश्विक स्तर पर सरकारी नाकामियों का खुलासा हो रहा है। आज भी बहुत कम लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्ध है। जल, मानव अस्तित्व को बनाए रखने के लिये एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है। यह न केवल ग्रामीण और शहरी समुदायों की स्वच्छता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है बल्कि कृषि के सभी रूपों और अधिकांश औद्योगिक उत्पादन प्रक्रियाओं के लिये भी आवश्यक है। परंतु विशेषज्ञों ने सदैव ही जल को उन प्रमुख संसाधनों में शामिल किया है जिन्हें भविष्य में प्रबंधित करना सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भारत एक गंभीर जल संकट के कगार पर है। मौजूदा जल संसाधन संकट में हैं, देश की नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं, जल संचयन तंत्र बिगड़ रहे हैं और भूजल स्तर लगातार घट रहा है। भारत में जल उपलब्धता व उपयोग के कुछ तथ्यों पर विचार करें तो भारत में वैश्विक ताजे जल स्रोत का मात्र 4 प्रतिशत मौजूद है जिससे वैश्विक जनसंख्या के 18 प्रतिशत (भारतीय आबादी) हिस्से को जल उपलब्ध कराना होता है। आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत के शहरी क्षेत्रों में 970 लाख लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिलता है। जबकि देश के ग्रामीण इलाकों में तकरीबन 70 प्रतिशत लोग प्रदूषित पानी पीने और 33 करोड़ लोग सूखे वाली जगहों में रहने को मजबूर हैं। यदि देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा जारी एक रिपोर्ट में सामने आया था कि दिल्ली जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किया जाने वाला पानी मानकों पर खरा नहीं उतरता है और वह पीने योग्य नहीं है। वैज्ञानिक एस्टर ग्रीनबुड के अनुसार, वैश्विक आबादी के केवल आधे हिस्से के लिए ही जल गुणवत्ता से संबंधित आंकड़े उपलब्ध हैं। अमीर देशों के पास भी पानी के स्पष्ट आंकड़े नहीं हैं। ऐसे में, अभावग्रस्त देशों के लोगों को साफ पानी की पहुंच मिल पाना संदेहास्पद है। यह स्थिति दिखाती है कि दुनिया अपने बुनियादी लक्ष्यों को प्राप्त करने में काफी पीछे है, जो अच्छे संकेत नहीं हैं।
दुनिया में पेयजल समस्या दिन-प्रतिदिन विकराल होती जा रही है। इसका भयावह स्तर इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि आज लगभग 4.4 अरब लोग पीने के साफ पानी से वंचित हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा 135 देशों में किए गए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। अध्ययन से यह भी पता चला है कि वास्तविक संख्या पहले से बताए गए आंकड़ों से दोगुनी है। यह स्थिति एक चेतावनी है कि अगर समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो हालात और बिगड़ सकते हैं। स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ एक्वाटिक साइंस एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ता एस्टर ग्रीनबुड के अनुसार, यह स्थिति अत्यंत भयावह और अस्वीकार्य है कि इतनी बड़ी वैश्विक आबादी की पीने के साफ पानी तक पहुंच नहीं है। विडंबना यह है कि इसके बावजूद दुनिया की सरकारें पेयजल की सुरक्षा और जल संचय के प्रति गंभीरता से क्यों नहीं सोच रही हैं, यह समझ से परे है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि जल संकट वैश्विक स्तर पर एक गंभीर समस्या बन जाएगी और अगर अभी से पानी की बर्बादी पर नियंत्रण नहीं लगाया गया और जल संरक्षण के उपाय नहीं किए गए, तो स्थिति और बिगड़ सकती है, जिसकी भरपाई असंभव हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव कल्याण में सुधार के लिए सतत विकास लक्ष्य के तहत सभी के लिए 2030 तक सुरक्षित और किफायती पेयजल की आपूर्ति का लक्ष्य अब एक सपना ही प्रतीत होता है। इंटरनेशनल ग्राउंड वाटर रिसोर्स असेसमेंट सेंटर के अनुसार, आज भी पूरी दुनिया में लगभग 270 करोड़ लोग हैं जिनको कि साल भर में करीब तीस दिन पानी की किल्लत का सामना करते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, यदि अगले तीन दशकों में पानी का उपभोग केवल एक प्रतिशत की दर से भी बढ़ेगा, तो दुनिया को एक बड़े जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। वैज्ञानिकों की मानें तो साफ पानी की पहुंच से दूर देशों के मामले में दक्षिण एशिया शीर्ष पर है, जहां 1200 मिलियन लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं। वहीं उपसहारा अफ्रीकी, दक्षिण पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिकी देश के लोग साफ पानी से महरूम हैं। हकीकत यह है कि इन क्षेत्रों में पानी में दूषित पदार्थों की मौजूदगी सबसे बड़ी समस्या है। गौर करने वाली बात यह है कि 2020 में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में लगभग 33 प्रतिशत लोग साफ पानी से वंचित थे, जबकि वर्तमान में एशिया में लगभग 61 प्रतिशत आबादी, अफ्रीका में 25 प्रतिशत, अमेरिका में 11 प्रतिशत और यूरोप में 3 प्रतिशत आबादी साफ पानी की कमी से जूझ रही है। भारत की स्थिति भी चिंताजनक है, जहां 35 मिलियन से अधिक लोग साफ पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। नीति आयोग के अनुसार, यह आंकड़ा 60 करोड़ से भी ज्यादा हो सकता है। यूनिसेफ के अनुसार, भारत में 1.96 करोड़ आवासों में जो पानी उपलब्ध है, उसमें फ्लोराइड और आर्सेनिक की मात्रा अत्यधिक है, जिसके कारण जलजनित रोगों पर सालाना 42 अरब रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। यह जगजाहिर है कि जल हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रभाव डालता है। जल संकट के कारण एक ओर कृषि उत्पादकता प्रभावित हो रही है, वहीं दूसरी ओर जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य पर भी खतरा बढ़ता जा रहा है। विश्व बैंक का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न जल संकट से 2050 तक वैश्विक जीडीपी को 6 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। इस वैश्विक समस्या के लिए मानवीय गतिविधियां, जिनमें लोभ, स्वार्थ और भौतिकवादी जीवनशैली का अहम योगदान है। वैश्विक स्तर पर देखा जाए, तो आज भी दो अरब लोगों, यानी 26 प्रतिशत आबादी को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है। पूरी दुनिया में 436 मिलियन और भारत में 133.8 मिलियन बच्चे ऐसे हैं जिनके पास हर दिन की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते हालात और खराब होने की आशंका है। दुनिया में हर तीन में से एक बच्चा, यानी 739 मिलियन बच्चे पानी की कमी वाले इलाकों में रह रहे हैं। जल संकट के लिए अत्यंत संवेदनशील 37 देशों की सूची में भारत भी शामिल है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक भारत में मौजूद जल का 40 प्रतिशत हिस्सा खत्म हो सकता है, यह चिंता का विषय है।

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