-विश्व विख्यात वीणा वादक रमण बालचंद्रन के वीणा-संगीत से महका विरासत
-सुप्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय बांसुरी वादक प्रवीण गोडखिंडी ने सजाई “विरासत की महफिल”
-विरासत की संध्या में सोमवार के खास मेहमान ने महफ़िल में घोला भक्ति रस
–भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रख्यात सुश्री शैलजा खन्ना का टॉक शो बना ज्ञानवर्धक
देहरादून. गढ़ संवेदना न्यूज: विरासत महोत्सव में हुई आर्ट प्रतियोगिता में करीब 250 स्कूली बच्चों ने प्रतिभाग कर कला में अपनी अपनी-अपनी प्रतिभाओं का शानदार प्रदर्शन किया, तो वहीं आर्ट क्राफ्ट में भी बच्चों ने अपनी प्रतिभाओं के जलवे उत्साह पूर्वक दिखाए I रीच संस्था द्वारा आयोजित किए जा रहे इस विरासत में आज की गई प्रतियोगिता में जहां बच्चों ने हरियाली और पर्यावरण से संबंधित अपनी कलाओं का प्रदर्शन किया, वहीं अन्य कई अद्भुत प्रकार की कला को भी अपने-अपने नन्हे हाथों से उत्साहित होकर पेपर चार्ट पर प्रदर्शन कर अपने हुनर को परिलक्षित किया I ओएनजीसी के डॉ. अंबेडकर स्टेडियम में आयोजित किये जा रहे विरासत महोत्सव के भव्य एवं बेहतरीन आकर्षक आयोजन में भिन्न-भिन्न स्कूलों के करीब 250 बच्चों ने प्रतिभाग किया और आर्ट प्रतियोगिता में शिरकत की I जिन-जिन स्कूलों में आर्ट प्रतियोगिता में भाग लिया, उनमें क्रमशः ओलम्पस हाई स्कूल के 19, दून इंटरनेशनल स्कूल के 13, आर्मी पब्लिक स्कूल क्लेमेनटाउन के 15, फिल्फोर्ट स्कूल के 28, माउंटेसरी के 12, श्री गुरु राम राय बालावाला के 18, आशा ट्रस्ट के 15, सेंट कबीर स्कूल के 46, लतिका रॉय के 44, डीआईएस के 13, जबकि डीआईएस सिटी कैंप के 12 बच्चे शामिल हैं I स्कूली बच्चों ने आयोजित की गई इस प्रतियोगिता में अपनी ड्राइंग पेंटिंग दिखाते हुए विरासत में भी बच्चों की कलाओं का एक शानदार संगम एवं मिश्रण कर लिया है। तत्पश्चात प्रतियोगिता में अव्वल स्थान प्राप्त करने वाले दून इंटरनेशनल स्कूल को सर्टिफिकेट दिया गया I हैरानी की बात यह है कि प्रथम स्थान विजेता बनने के साथ ही द्वितीय स्थान भी दून इंटरनेशनल स्कूल के नाम ही रहा I
प्रतियोगिता में साथ ही कई और भी आकस्मिक प्रतिभागियों ने कार्यक्रम की विविधता और ऊर्जा में चार चाँद लगा दिए। इनमें 80 से अधिक छात्रों ने प्रतियोगिता में सक्रिय रूप से भाग लिया। इस कार्यक्रम में 12 से 14 टीमें शामिल थीं, जिनमें से प्रत्येक टीम में न्यूनतम 2 और अधिकतम 5 सदस्य थे I क्राफ्ट में भी स्कूली बच्चों ने अपनी अपनी प्रतिभाओं का बहुत ही बेहतरीन प्रदर्शन कर प्रशंसा बटोरी I
विरासत महोत्सव की संध्या का विधिवत शुभारंभ आज के मुख्य अतिथि ओएनजीसी के पूर्व निदेशक, मानव संसाधन डॉ.अशोक बालियान तथा आईएमएस यूनिसन यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ.अनिल सुब्बाराव ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया I
विश्व विख्यात वीणा वादक रमण बालचंद्रन के वीणा-संगीत से महका विरासत
सांस्कृतिक संध्या की पहली प्रस्तुति में रमण बालाचंद्रन ने मनमोहक धुन और राग देकर सरस्वती वीणा पर भव्य प्रस्तुति देकर शुरूआत की I उनके साथ मृदंगम पर श्रीपात्री सतीश कुमार ने साथ दिया । पहला राग अबोगी-नम्मू ब्रोवा रहा, जिसने कि सभी को वीणा संगीत पर भक्ति में तल्लीन कर लिया I अगली प्रस्तुति रागम और तालम खमाज की रही फिर अगली प्रस्तुति आदि तालम पर आधारित पल्लवी रही I उन्होंने अपने कार्यक्रम का समापन राग सिंधु भैरवी में थिलाना के साथ किया।
विरासत महोत्सव में आज की संध्या में सबसे पहले विश्व विख्यात वीणा वादक रमण बालचंद्रन की आकर्षक एवं मनमोहक प्रस्तुति का आगाज़ आवाज हुआ I रमण बालचंद्रन कर्नाटक परंपरा के वीणा वादक हैं। हैरानी की बात यह है कि भारत और विदेशों में मशहूर वाद्य वादक, संगीत के प्रति उनकी प्रतिभा को तब पहचाना गया जब कम उम्र में ही वे शास्त्रीय संगीत की बारीकियों को पहचानने लगे थे। उन्हें सोलह वर्ष की आयु में ऑडिशन देने के बाद ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर,भारत में एकमात्र ग्रेडिंग प्राधिकरण) द्वारा सीधे ‘ए‘ ग्रेड से सम्मानित किया गया था।चेन्नई में प्रतिष्ठित और सम्मानित संगीत संस्थान, मद्रास संगीत अकादमी ने उन्हें सोलह वर्ष की आयु में अपनी वार्षिक संगीत श्रृंखला का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करने हेतु आयु की आवश्यकता को माफ कर दिया। इन सबके कारण उनकी वाणी या शैली को सीमाओं को लांघने वाली और अद्वितीय माना जाता है। वे नियमित रूप से भारत और विदेश के प्रमुख मंचों पर प्रस्तुति देते हैं, और ऐसा करने वाले वे सबसे कम उम्र के वीणावादक हैं। उन्होंने अपनी मां के अधीन स्वर और वीणा सीखना शुरू किया और फिर विदुषी बी नागलक्ष्मी (करैकुडी श्री सुब्बाराम अय्यर की परपोती) के अधीन वीणा का अध्ययन किया। उन्होंने संगीता कला आचार्य, श्रीमती नीला रामगोपाल से स्वर संगीत, लय कला प्रतिभा मणि और रंगनाथ चक्रवर्ती से मृदंगम सीखा I उनके माता-पिता दोनों संगीतकार हैं, और उनकी मां शरण्या, जो एक वीणा वादक और कर्नाटक गायिका रहीं, वही उनकी पहली गुरु बनीं। नौ साल की उम्र तक गाने का हुनर रखने के साथ साथ वे वीणा पर जटिल पद्य भी बजा रहे थे। उनकी प्रखर प्रतिभा को देखते हुए उन्हें वीणा की दिग्गज बी नागलक्ष्मी के पास भेज दिया गया। इस दौरान उन्होंने मृदंग बजाने का प्रशिक्षण भी लिया।
सुप्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय बांसुरी वादक प्रवीण गोडखिंडी ने सजाई “विरासत की महफिल”
दर्शकों/श्रोताओं को पंडित प्रवीण गोडखिंडी द्वारा मंत्रमुग्ध कर देने वाली बांसुरी वादन का आनंद मिला, प्रवीणजी ने राग वाचस्पति से अपनी प्रस्तुति शुरू की। जिसमें सुमित मिश्रा ने तबले पर संगत की। मनमोहक, मधुर प्रस्तुति की शुरुआत भावपूर्ण गायकी अंग से हुई I आनंदित कर देने वाली इस संध्या में जैसे-जैसे संगीत कार्यक्रम आगे बढ़ा वैसे वैसे पंडित गोडखिंडी ने तंत्रकारी अंग में प्रवेश करते गए, जिसमें उन्होंने असाधारण तकनीकी प्रतिभा, जटिल लयबद्ध विविधताओं और वाद्य पर अपनी अद्भुत पकड़ का प्रदर्शन किया। प्रस्तुति का समापन पहाड़ी धुन के एक हृदयस्पर्शी गायन के साथ हुआ, जिसे सोशल मीडिया के माध्यम से उनसे संपर्क करने वाले प्रशंसकों की तीव्र मांग पर प्रस्तुत किया गया था।
देश और विदेशों में अपने बांसुरी वादन से जगह-जगह ख्याति प्राप्त कर चुके प्रवीण गोडखिंडी का नाम शास्त्रीय संगीत की दुनिया में बहुत ही अधिक मशहूरियत प्राप्त किए हुए हैं I वे भारतीय शास्त्रीय हिंदुस्तानी बांसुरी वादक हैं। उन्होंने तंत्रकारी और गायकी दोनों ही बांसुरी शैलियों में महारथ हासिल की है। आकाशवाणी द्वारा उन्हें हिंदुस्तानी बांसुरी में सर्वोच्च स्थान देकर नवाजा जा चुका है। उन्होंने कम उम्र में ही छोटी बांसुरी बजाना शुरू कर दिया था और 6 साल की उम्र में अपना पहला सार्वजनिक प्रदर्शन कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था । उन्होंने गुरु पंडित वेंकटेश गोडखिंडी और विद्वान अनूर अनंत कृष्ण शर्मा के कुशल मार्गदर्शन में प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने उस्ताद ज़ाकिर हुसैन, डॉ. बालमुरली कृष्ण, पंडित विश्व मोहन भट्ट, डॉ. कादरी गोपालनाथ और कई प्रतिष्ठित संगीतकारों के साथ प्रस्तुति दी है। यही नहीं,उन्होंने अर्जेंटीना के मेंडोज़ा में विश्व बांसुरी महोत्सव में बांसुरी का प्रतिनिधित्व किया है और उन्हें बेरू और विमुक्ति फिल्मों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार दिए गए हैं।
उन्हें सुरमणि, नाद-निधि, सुर सम्राट, कलाप्रवीण, आर्यभट्ट, आस्थाना संगीत विद्वान की उपाधियों से सम्मानित किया गया है। वह टीवी पर संगीतमय मनोरंजक कार्यक्रमों के संगीतकार और निर्माता हैं। उन्होंने उस समय बांसुरी को मुख्य वाद्य यंत्र के रूप में इस्तेमाल करने की पूरी कोशिश की, जब गायन को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता था। उन्होंने संगीत की विभिन्न शैलियों में काम किया है, लेकिन व्यावसायिक रिकॉर्डिंग के लिए शास्त्रीय संगीत को कभी नज़रअंदाज़ नहीं किया।
विरासत की संध्या में सोमवार के खास मेहमान ने महफ़िल में घोला भक्ति रस
प्रख्यात हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की हस्तियों में शुमार हैं पंडित जयतीर्थ मेवुंडी का नाम
शाही बन चुकी विरासत-2025 की शाम किराना घराने के प्रतिष्ठित कलाकार पंडित जयतीर्थ मेवुंदी द्वारा एक भावपूर्ण हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन प्रस्तुति का साक्षी बनी। उनकी प्रस्तुति ने अपनी गहराई, सटीकता और भावपूर्ण अभिव्यक्ति से सभी श्रोताओं को मग्न मुग्ध कर दिया। उनके साथ हारमोनियम पर सुमित मिश्रा और तबले पर अभिषेक मिश्रा ने साथ दिया, जिनकी संवेदनशील और कुशल संगत ने गायन प्रस्तुति को बहुत ही शानदार और खूबसूरती बना दिया। पं. मेवुंदी ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत मधुर राग जोगकौंस से की, जिससे उनकी शक्तिशाली और मधुर वाणी ने शांति और भक्ति का वातावरण बना डाला। पंडित जयतीर्थ मेवुंडी का नाम भारतीय शास्त्रीय संगीत की मशहूर कुछ ही नामचीन हस्तियों में शुमार है I उनकी भक्ति रस में डूबी हुई प्रस्तुति से विरासत की महफिल बेहतरीन खुशनुमा बनी नजर आई I
पंडित जयतीर्थ मेवुंडी एक प्रख्यात हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक हैं जिन्हें संगीत के पारखी प्रख्यात हिंदुस्तानी शास्त्रीय जिकन में बूंदी का नाम से भी जाना जाता है I साथ ही वे किराना घराने के प्रमुख गायक भी हैं । शास्त्रीय, अर्ध-शास्त्रीय, नाट्य-संगीत, दास-वाणी, अभंग वाणी, संतवाणी के क्षेत्र में अपनी महारथ के लिए वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हैं। वे वर्तमान में पीढ़ी के सबसे प्रतिष्ठित और प्रभावशाली संगीतकारों में से एक हैं। उनका जन्म 11 मई 1972 को हुबली, कर्नाटक में हुए । श्री मेवुंडी की संगीत यात्रा बहुत कम उम्र से ही पोषित हुई। संगीत से उनका प्रारंभिक परिचय उनकी मां के माध्यम से हुआ, जो भजन गाया करती थीं। यह प्रारंभिक प्रभाव कई स्थानीय लाइव संगीत समारोहों और रात भर चलने वाले वार्षिक संगीत सम्मेलनों में नियमित रूप से भाग लेने से और भी समृद्ध हुआ। मेवुंदी ने अपने गुरुओं पंडित अर्जुनसा नाकोड़ और बाद में पंडित श्रीपति पडिगर के मार्गदर्शन में पारंपरिक गुरु-शिष्य परंपरा में कठोर प्रशिक्षण लिया I श्री मेवुंदी ने गोवा में आकाश वाणी (ऑल इंडिया रेडियो) के लिए एक स्टाफ संगीतकार के रूप में अपना करियर शुरू किया। 1995 में सवाई गंधर्व महोत्सव में शानदार प्रदर्शन के बाद उनका जीवन बदल गया। तब से उन्होंने अपने करियर में एक उल्लेखनीय संगीत यात्रा शुरू की है और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।यहां यह ही उल्लेखनीय है कि उन्होंने कन्नड़ और मराठी फिल्मों के लिए भी पार्श्व गायन भी किया । उनके पास हिंदुस्तानी शास्त्रीय रागों, अभंगों व कन्नड़ भक्ति गीतों की समृद्धडिस्कोग्राफी है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में श्री मेवुंदी का योगदान बहुआयामी है। उन्हें आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा ‘ए टॉप‘ ग्रेड प्राप्त है, जो उनकी उत्कृष्टता का प्रमाण है। वर्ष 2019 में उन्हें नेपाल विश्वविद्यालय में “नाद योग” विषय में पीएचडी की उपाधि से सम्मानित किया गया। महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने रागों के कई नए रूपों की रचना भी की है। जिनमें विष्णुप्रिया राग परिमल रागके अलावा राग भिन्न गंधार, राग मधु प्रिया शामिल हैं। साथ ही उन्होंने सर्वोच्च भगवान के प्रति अपनी असीम भक्ति के साथ भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान वेंकटेश्वर, देवी लक्ष्मी, गुरु राघवेंद्र और कई अन्य पर कई बंदिशें लिखीं। उन्हें भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा यंग मेस्ट्रो पुरस्कार, महाराष्ट्र सरकार द्वारा आदित्य विक्रमादित्य बिड़ला कला किरण पुरस्कार, श्री एससी जमीर भारत रत्न, पंडित भीमसेन जोशी स्वर भास्कर पुरस्कार, भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कार, स्वर सम्राट पं. बसवराज राजगुरु युवा पुरस्कार भी मिल चुके हैं I इसके अलावा उन पर और भी कई पुरस्कारों की बौछार हो चुकी है I
भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रख्यात सुश्री शैलजा खन्ना का टॉक शो बना ज्ञानवर्धक
“भारतीय शास्त्रीय संगीत और संरक्षकों की भूमिका” पर आधारित टॉक शो हुआ विरासत द्वारा यूपीईएस में आयोजित
“भारतीय शास्त्रीय संगीत और संरक्षकों की भूमिका” विषय पर आज प्रख्यात सुशील शैलजा खन्ना द्वारा किए गए टॉक शो से ज्ञानवर्धन करने वाला जो रस निकला, वह सभी के लिए बहुत ही गौरव का विषय बना I विभागाध्यक्ष अमरेश झा ने सुश्री खन्ना के आगमन पर खुशी का इजहार करते हुए प्रशंसा की I विरासत द्वारा आज यहां यूपीईएस में आयोजित कार्यक्रम में सुश्री खन्ना ने दक्षिण भारत के कर्नाटक संगीत और उत्तर भारत के हिंदुस्तानी (उत्तर भारतीय) संगीत के बीच अंतर बताते हुए शुरुआत की। उन्होंने शास्त्रीय संगीत पर विस्तार से चर्चा की और लोक संगीत की तुलना में इसकी गहराई और अनुशासन पर ज़ोर दिया। उनकी चर्चा घरानों, नाट्य शास्त्र, ताल और राग जैसे प्रमुख पहलुओं पर केंद्रित रही। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में संगीत मुख्यतः धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं के अंग के रूप में मंदिरों में प्रस्तुत किया जाता था, जबकि आज यह कला और मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण रूप बन चुका है। उन्होंने कहा कि दरअसल, संगीत हमारी भावना और स्वर के बीच एक सेतु है और भारतीय संगीत की दो प्रमुख धाराओं मार्गी और देसी हैं। सुश्री खन्ना ने कर्नाटक परंपरा के बारे में बताया कि इसके सात प्राथमिक तालों और भक्ति संगीत के साथ इसके गहरे संबंध हैं, जो गहन समझ और आध्यात्मिक अर्थ को दर्शाता है। उन्होंने वेंकटमाखिन का भी उल्लेख किया, जिन्होंने 72 मेलकर्ता रागों को संहिताबद्ध किया, जिससे कर्नाटक संगीत की शिक्षा सरल हो गई। उन्होंने थाट की अवधारणा पर चर्चा की, इसके ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला और बताया कि हालाँकि यह कभी शिक्षा का आधार था, आधुनिक संगीतकार अब मौखिक परंपराओं पर अधिक निर्भर करते हैं। उन्होंने ध्रुपद संगीत, वाद्य परंपराओं और हवेली संगीत, भगवान कृष्ण से जुड़ी भक्ति शैली, जिसे बाद में पंडित जसराज जी ने लोकप्रिय बनाया और खोजा, पर भी प्रकाश डाला। हल्के-फुल्के अंदाज़ में उन्होंने किशोरी अमोनकर और लता मंगेशकर के बारे में एक किस्सा सुनाया, और किशोरी द्वारा उनकी लोकप्रियता में अंतर और भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ दर्शकों के व्यापक जुड़ाव की कमी पर दिए गए विचारों का मज़ाकिया अंदाज़ में ज़िक्र किया। प्रथम सत्र का मुख्य भाग घराना प्रणाली पर केंद्रित था, जहाँ सुश्री खन्ना ने छह प्रमुख तबला घरानों के साथ-साथ आगरा और किराना जैसे प्रमुख गायन घरानों पर चर्चा की। उन्होंने संगीत में संरक्षण के महत्व पर भी ज़ोर दिया और कहा कि संगीत केवल कठोर ढाँचों तक सीमित नहीं है बल्कि यह तात्कालिकता और रचनात्मक स्वतंत्रता की अनुमति देता है। गुरु-शिष्य परंपरा मूल्यों, ज्ञान और अनुभव के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।उन्होंने कला और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और संवर्धन के लिए विरासत के 30 वर्षों के समर्पित योगदान के लिए हार्दिक प्रशंसा व्यक्त की।
![]()
