संगीता फरासी रोशन कर रही 15 भिक्षु बच्चों की जिंदगी

-अंधेरे जीवन में आई 15 भिक्षु बच्चों की शिक्षा की नई सुबह

 

श्रीनगर गढ़वाल। मन में कुछ करने की तमन्ना हो तो हर मंजिल आसान हो जाती है। आज रास्ता बना लिया है, तो कल मंजिल भी मिल जाएगी। हौसलों से भरी यह कोशिश एक दिन जरूर रंग लाएगी। अगर मंजिल दिख रही है तो रास्ता बनाना आसान होता है। एक एक कदम मंजिल की ओर जाता है। कभी-कभी एक रास्ता मंजिल तक नहीं पहुंचता तो दूसरा रास्ता बनाना पड़ता है। आजकल योजना का युग है और सर्वे करने के बाद ठोस योजना बनाई जाती है ताकि मेहनत और साधन निष्फल न हों। आजकल तो दुर्गम से दुर्गम मंजिल तक रास्ते बन गये हैं। हमारे देश में बाल श्रम और बाल भिक्षा एक ऐसी समस्या है जिससे निपटना बेहद मुश्किल है। ऐसी समस्या से तभी निपटा जा सकता है जब समाज में संगीता फरासी जैसे लोग आगे आएंगे। आप सब इस नाम से भले ही परिचित ना हों लेकिन जब इनके काम के बारे में जानेंगे तो इन्हें दिल से सलाम करेंगे। ऐसी समस्या से तभी िनपटा जा सकता है जब समाज में संगीता फरासी जैसे लोग आगे आएंगे तो हर कोई उन्हें सलाम करेगा। विकासखण्ड खिर्सू के राजकीय प्राथमिक विद्यालय गहड में एक मशहूर सरकारी स्कूल की टीचर संगीता फरासी आज दुनिया के लिए एक मिसाल बन गई है। उन्होंने ऐसा काम किया है जिससे कई मासूमों का भविष्य जो अंधकार में दिख रहा था अब रोशन कर रहे है। इस समय बड़ा बदलाव लाने की ओर सराहनीय काम कर रहे हैं। जिसका लोग लगातर बधाई दे रहे है।
भीख मांगते बच्चों को सहारे की जरूरतः संगीता फरासी
15 बच्चों के पास इतना पैसा नहीं था कि वे शौक पूरे कर सकते थेए स्कूल जाकर लिख पढ सके लेकिन उन्होंने भीख मांगने वाले बच्चों की मदद करने की ठानी। आज यह देखा जा रहा है कि वो नन्हे हाथ जो कभी भीख के लिए उठते अब उन्हीं हाथों में पेंसिलए कॉपीए किताब है और कंधे पर लटका स्कूल बैग हैए इन बच्चों की आंखों में भी स्कूल जाने का सपना था जो अब साकार होता दिख रहा है। संगीता ने भीख मांगने वाले बच्चों में शिक्षा की अलख जगाई है। जनपद पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर की व्यवस्तम सड़कों के किनारे आम तौर पर भीख मांगते बच्चे दिख जाएंगे। इन बच्चों से संगीता का सामना हुआ तो फिर क्या था और उनोंने इन बच्चों को साक्षर बनाने का बीड़ा उठाया। विकासखंड खिर्सू निवासी राजकीय प्राथमिक विद्यालय गहड में सहायक अध्यापिका के पद पर कार्यरत संगीता फरासी ऐसे बच्चों को अपना बहुमूल्य समय दे रहे हैं।जो विगत नौ सालों से लगातार कार्य कर रही संगीता के पास आज 15 बच्चे शािमल हो गये है। जिसमें एक हाईस्कूल में पढ रहा है जबिक कोई तीनएचार और पांचवी कक्षा में अध्यन कर रहे है। और ये अपनी जिंदगी के अहम क्षण ऐसे बच्चों को दे रहे हैं जिनका भविष्य अंधियारे में था। नौ साल पहले श्रीनगर के अलकनंदा विहार के समीप जब संगीता की नजर भीख मांगने वाले बच्चों से हुआ तो उन्होंने उसी समय ठान ली थी कि हमें कुछ करना है। उसके बाद उन्होंने अपना कदम पीछे नहीं हटाया बच्चों को शिक्षितए जागरुक और आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य तय किया। बच्चों को सारा खर्चा वह स्वयं उठा रही है।
-एक ऐसी शिक्षिका जिन्होंने 15 भिखारी बच्चों को लिया गोद
-अपनी सैलेरी से कर रही हैं इनके पढ़ने-खाने की व्यवस्था
कभी भीख मांगने के लिए उठते थे जो हाथए अब वो कॉपी किताब पकड़े आते हैं नजर। भीख मांगने वाले बच्चों को स्कूल पहुचाने का बीडा राजकीय प्राथमिक विद्यालय गहड की सहाय अध्यापिका संगीता फारीसी ने उठाया है। शिक्षिका उनकी शिक्षित कर भीख मांगने की आदत छुडाने में जुटी है। संगीता ने अक्षर ज्ञान की इस मुहिम के तहत 15 ऐसे बच्चों को गोद लिया है। बच्चों से भीख मांगने जैसी बूरी आदत छुडाने के लिए ए उन्होंने अलकनंदा विहार के समीप भीख मांगने वालों के डेरे में जान शुरू किया। उन्होंने बतया कि मैने उनके माता पिता ता बच्चों को स्कूल भेजनकी सलाह दी। लेिकन किसी ने नहीं सुनी तब उन्हें लालच दिया गया कि बच्चों का सारा खर्चा वी स्वयं उठाएंगे। वह अपने बच्चों को स्कूल भेजें उन्हें प्रतिमाह दस किलोग्राम चावल व दो किलो दाल कपडे चप्लए जूते सहित सारा सामान देने का वादा कर माना लिया। आज 15 बच्चों का एडमिशन नंदन नगर पालिका स्कूल में करवा है।
निस्वार्थ भाव से जरूरतमंद लोगों की सेवा करना ही असल मायने में देश सेवा है। हमारा मुख्य उद्देश्य है बच्चों को भीख मांने से रोकना और उन्हें शिक्षित कर स्कूल तक पहुंचाना है। आज में 15 बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रही हू। शुरुआत में हमने बच्चों को भीख मांगने से मना किया। हमने उनकी स्थिति और उन्हें स्वीकार कियाए हमने उन्हें शिक्षित और उनके अंदर स्किल डेवलेपमेंट करने के बारे में सोचा। एक भिखारी के अंदर आत्मविश्वास पैदा कर भीख मांगने की बुरी आदत को खत्म किया जा सकता है और भिखारियों को भी मुख्य धारा में जोड़ा जा सकता है। हमें सबसे पहले बच्चों से शुरुआत करनी होगी और उन्हें एहसास दिलाना होगा कि यह गलत काम है और समाज में इसके लिए कोई जगह नहीं। ऐसे ही जरूरतमंद बच्चों के जीवन में जरूरी और असल बदलाव लाना चाहते थे। मेरी कोिशश है कि कोई भी बच्चा अपनों से दूर ना हो। अपनों से दूर होने के बाद बच्चों को कोई अस्तित्व और भविष्य नहीं रह जाता जिसका मेरा लगातार प्रयास है, जो जारी रहेगा

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