संक्रान्ति की क्रान्ति अन्धेरे से प्रकाश की ओर बढ़नाः स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश । परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने देशवासियों को मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ देते हुये कहा कि इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें वर्ष की यह मकर संक्रान्ति सभी के जीवन में ’समाधान से समृद्धि’ की बहार लेकर आये और सभी स्वस्थ और आनन्द मंगल हों। संक्रान्ति से तात्पर्य ’सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में विचरण करना। पूरे वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियाँ होती हैं। मकर संक्रान्ति को विशेष माना जाता है क्योंकि इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है। पौष माह की संक्रान्ति विशेष इसलिये भी होती है क्योंकि इस दिन सूर्य, पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध की ओर मुड़ जाता है। परम्परा के अनुसार पौष माह में सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तो उस दिन मकर संक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है।
यह अनेक बदलावों और संकेतों को लेकर आता है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि मकर संक्रान्ति अर्थात अन्धकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना। हमारे जीवन में भी जो अज्ञान रूपी अन्धकार है उससे प्रकाश की ओर तथा सकारात्मकता की ओर बढ़ना ही संक्रान्ति है। इस मौसम में प्रकृति में विद्यमान फूल खिलने लगते हैं और प्रकृति में बहार आने लगती है, उसी तरह प्रत्येक मनुष्य का जीवन भी खिल उठे, जीवन में भी बहार आये, प्रसन्नता आये, यही तो जीवन का वास्तविक आनन्द है।
स्वामी जी ने कहा कि वास्तव में आज का दिन संक्रान्ति और संस्कृति के मिलन का अवसर है। इस पावन अवसर पर लोग अपनी जड़ों से जुडोंय  अपनी संस्कृति को पहचानेय अपने गौरव को पहचाने तथा इस गौरवमय संस्कृति के अंग बनें। इससे सभी के जीवन में भारतीय संस्कृति और सनातन संस्कृति का दर्शन होगा। इस भागदौड़ भरी जिन्दगी में भोगने और भागने की संस्कृति से एक नई संक्रान्ति का जन्म होगा और एक नई संस्कृति का जन्म होगा। स्वामी जी ने कहा कि हमारे पर्व और त्यौहार हमें जीवन की श्रेष्ठता और सकारात्मकता का संदेश देते हैं। इस सकारात्मकता से न केवल स्वयं को बल्कि समाज को भी एक दिशा मिले क्योंकि ’’जिन्दगी केवल न जीने का बहाना, जिन्दगी केवल न सांसों का खजाना, जिन्दगी सिन्दूर है पूरब दिशा का जिन्दगी का काम है सूरज उगाना।’  आज उत्तरायण सूर्य का उदय हो रहा है इस पावन अवसर पर हम सभी के जीवन में भी एक स्वर्णिम प्रकाश का उदय हो इसलिये  तो किसी ने कहा है कि ’’ जैसा बनाओ वैसे बन जाएगी जिंदगी, ख्वाब नहीं जो यूं ही बिखर जाएगी जिन्दगी’’ हे प्रभु! हम सभी को ’’असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।