क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ इंडिया के दूसरे दिन न्याय, शक्ति और सार्वजनिक विश्वास पर हुई चर्चा

-लेफ्टिनेंट जनरल ए.के. सिंह, पूर्व एसीपी मधुकर झेंडे, अभिनेत्री अनुरित्ता के. झा, न्यायाधीश आर.के. गौबा, फिल्म निर्माता, पत्रकार और लेखकों ने देहरादून में दूसरे दिन की गतिविधियों का नेतृत्व किया

देहरादून : क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ इंडिया के दूसरे दिन की शुरुआत हयात सेंट्रिक, देहरादून में हुई, जिसमें अपराध, न्याय, शक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी पर व्यापक चर्चा हुई। कार्यक्रम में विभिन्न आयु और पेशे के दर्शकों ने भाग लिया।दिन की शुरुआत सत्र “प्रेस 9 एंड डायल 100: इनसाइड इंडिआस क्राइम लाइन्स” से हुई, जिसमें लेखक कुलप्रीत यादव और पत्रकार-फिल्म निर्माता शैलेन्द्र झा ने अजय दयाल के साथ बातचीत करी। कुलप्रीत यादव ने कहा कि उनकी रचनाएँ वास्तविक जीवन के अनुभवों से प्रेरित होती हैं और गैर-फिक्शन में कहानी को रोचक बनाना जरूरी है क्योंकि इसकी समाप्ति पहले से ज्ञात होती है। शैलेन्द्र झा ने बताया कि वे अपनी कहानियों को एक केंद्रीय विचार और मजबूत पात्रों के आधार पर बनाते हैं और ‘प्रेस 9’ उन्होंने साइबर अपराध और अपराध के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए लिखी।

इसके बाद “लाइसेंस टू वायोलेट? एवरीडे लॉलेसनेस ऑन इंडियन रोड्स” सत्र हुआ, जिसमें आईजी नीलेश भर्ने ने ट्रैफिक प्रबंधन के तीन ई—एनफोर्समेंट, इंजीनियरिंग और एजुकेशन—के महत्व पर ज़ोर दिया। एसपी लोकजीत सिंह ने कहा कि दुर्घटनाओं को रोकने के लिए अवसंरचना, जागरूकता और पुलिसिंग का संयोजन आवश्यक है। राहुल कोटियाल ने अव्यवस्थित विकास और नीति की कमी को जिम्मेदार ठहराया, साथ ही सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने की आवश्यकता बताई। एडिशनल एसपी जया बलूनी ने बताया कि सड़क अनुशासन केवल डर से नहीं बल्कि जागरूकता और व्यक्तिगत जिम्मेदारी से आता है। सत्र की अध्यक्षता सुप्रिया चंदोक ने की।

सत्र “दास्तान-ए-देसी पल्प” में लेखक यशवंत व्यास और सुभोध भारतीय, प्रकाशक रंधीर कुमार अरोड़ा एवं संजीव मिश्रा ने पल्प साहित्य की विरासत और प्रासंगिकता पर चर्चा की। व्यास ने बताया कि पल्प कभी अपराध, रोमांस और थ्रिल का समग्र अनुभव देता था, लेकिन अब इसकी पहचान कम हो गई है। सुभोध भारतीय ने पल्प को सरल और मनोरंजक साहित्य बताया, जो अब साइबर अपराध जैसी नई कहानियों के साथ विकसित हो रहा है। अरोड़ा ने कहा कि बच्चों की बौद्धिक वृद्धि के लिए पाठ्यपुस्तकों से आगे देखना जरूरी है। इस सत्र में ‘स्वर्ण कटार पुरस्कार’, भारत का सबसे बड़ा क्राइम लेखन सम्मान, अगले साल से फेस्टिवल के सहयोग से शुरू किए जाने की घोषणा भी की गई, और यशवंत व्यास की किताब ‘बेगमपुल से दरियागंज’ का विमोचन भी हुआ।

दिन के एक अन्य सत्र, “चैसिंग द सरपेंट: द चार्ल्स सोभराज फाइल्स”, में पूर्व एसीपी और लेखक मधुकर झेंडे ने रूपा सोनी के साथ चर्चा की। झेंडे ने सोभराज के अपराध की शुरुआत की कहानी साझा की, जो वाहन चोरी से शुरू हुई थी, और याद दिलाया कि उसके एक साथी ने एक रिवॉल्वर सौंपते हुए एक बड़े डकैती की योजना का खुलासा किया था। उन्होंने सोभराज को भारतीय इतिहास के सबसे चतुर अपराधियों में से एक बताया और कहा कि तिहार जेल से उसकी फरारी उस समय की सबसे सनसनीखेज अपराध कहानियों में से एक बन गई थी।

“वुमेन एंड क्राइम: अंडरस्टैंडिंग द ट्रिगर्स” सत्र में शाश्वत बाजपेई, कमांडेंट श्वेता चौबे, लेखक रूबी गुप्ता और एसपी लाहौल एवं स्पीती शिवानी मेहला ने भाग लिया, और सत्र का संचालन शक्ति मनोचा ने किया। पैनल ने महिलाओं के अपराध में शामिल होने के पीछे जटिल सामाजिक और मानसिक कारकों को उजागर किया। शाश्वत बाजपेई ने वास्तविक मामलों का उदाहरण देते हुए बताया कि भावनात्मक उपेक्षा और व्यक्तिगत परिस्थितियाँ अपराध की ओर ले जा सकती हैं, साथ ही चेतावनी दी कि ओटीटी प्लेटफॉर्म अक्सर जागरूकता और अतिशयोक्ति के बीच की सीमा को धुंधला कर देते हैं। कमांडेंट श्वेता चौबे ने कहा कि आघात और नशे की लत महिलाओं को अपराध की ओर धकेलने वाले प्रमुख कारण हैं। लेखक रूबी गुप्ता ने बताया कि महिला अपराधी अक्सर लंबी अवधि के भावनात्मक, शारीरिक और सामाजिक उत्पीड़न की वजह से अपराध की राह अपनाती हैं। एसपी शिवानी मेहला ने जोड़ा कि लाहौल–स्पीती जैसे दूरदराज़ क्षेत्रों में कठिन भू-भाग और जलवायु कानून प्रवर्तन और न्याय तक पहुँच में गंभीर चुनौतियाँ पैदा करती हैं।

सत्र “फॉरगॉटन बिहाइंड बार्स: जस्टिस डिलेड, जस्टिस डिनाइड” में डॉ. ऐश्वर्या महाजन, न्यायाधीश आर.के. गौबा और ऐडीजी इंटेलिजेंस एवं सिक्योरिटी अभिनव कुमार ने पूजा मरवाह के साथ चर्चा की। डॉ. महाजन ने बताया कि बहुत बड़े हिस्से के अंडरट्रायल मासूम होते हैं, जो शक्ति की कमी के कारण फंस जाते हैं और कैदियों के साथ रहने से नकारात्मक प्रभाव झेलते हैं। उन्होंने सुधार गृहों में सुधार और पुनर्वास की आवश्यकता पर भी जोर दिया। अभिनव कुमार ने एफआईआर रजिस्ट्रेशन, जांच और मामलों की प्राथमिकता में प्रणालीगत पक्षपात पर प्रकाश डाला, जो अक्सर शक्तिशाली पक्ष को लाभ पहुंचाता है। जस्टिस आर.के गौबा ने महत्वपूर्ण मामलों और पुलिसिंग की संरचनात्मक विशेषताओं के माध्यम से अपने अनुभव साझा किए।

अन्य सत्रों में राष्ट्रीय सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया, “डिस्मैंटलिंग टेरर नेटवर्क्स: लेसंस फ्रॉम रेड फोर्ट” में पूर्व डीजीपी उत्तराखंड अशोक कुमार, सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल ऐ के सिंह और सेवानिवृत्त कर्नल सुनील कोटनाला ने शम्स ताहिर खान के मार्गदर्शन में आतंकवाद रोधी रणनीतियों और खुफिया समन्वय पर चर्चा की। इस सत्र में अशोक कुमार ने बताया कि राज्य पुलिस अक्सर प्रतिस्पर्धा और सुरक्षा कारणों से जानकारी साझा नहीं करती, जबकि आधुनिक युद्ध में ड्रोन, साइबर हमले और जमीन पर संचालन का मिश्रण होता है। लेफ्टिनेंट जनरल अजय कुमार सिंह ने हमलों को रोकने में खुफिया जानकारी की अहमियत और स्वदेशी तकनीक के उपयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। कर्नल सुनील कोटनाला ने बताया कि आतंकवादी मोबाइल आधारित कट्टरपंथ का उपयोग करते हैं, जिससे शहरी आतंकवाद के खिलाफ अभियान जटिल और आम नागरिकों के लिए जोखिमपूर्ण हो जाते हैं।

इसके बाद ‘मिशन साउदी: इंडिआस फर्स्ट-एवर एक्सट्रडीशन ऑफ़ ए रेप अक्क्यूस्ड’ सेशन आयोजित किया गया, जिसमें पूर्व डीजी उत्तराखंड आलोक लाल और लेखक मानस लाल ने अनिर्बान भट्टाचार्य के साथ सीमा-पार न्याय और जांच में धैर्य पर चर्चा की।

“बिल्डर्स, ब्रोकर्स एंड बिट्रेयलस” सत्र में बंसीधर तिवारी और एसएसपी अजय सिंह ने रियल एस्टेट धोखाधड़ी, नियामक कमियों और नागरिक जागरूकता पर प्रकाश डाला, जबकि “उत्तराखंड राइजिंग: इंडिआस न्यू सिनेमेटिक कैपिटल” में केतन मेहता, अनुरित्ता के. झा और बंसीधर तिवारी ने आर.जे काव्या के साथ बातचीत करते हुए उत्तराखंड में फिल्म निर्माण और कहानी कहने की बढ़ती भूमिका पर चर्चा की।

समानांतर सत्रों में “सिंस, सीक्रेट्स एंड सुपरहेरोएस” में रंजन सेन ने कहा कि अपराध कथा तभी प्रभावशाली होती है जब लेखक अपराधियों की मानसिकता को समझते हैं। विनय कंचन ने कानून और न्याय के बीच के ग्रे स्पेस को मजबूत कहानी कहने की जगह बताया, और सुहैल माथुर ने बताया कि अपराध और नैतिक अस्पष्टता प्राचीन पौराणिक कथाओं में भी विद्यमान रही हैं।

इसके बाद “डेंजर इन द डीएम्’स” में अनिर्बन भट्टाचार्य ने सोशल मीडिया और डेटिंग ऐप्स में छिपी कमजोरियों के खतरे के बारे में चेताया, जबकि जुपिंदरजीत सिंह ने कहा कि भारत में प्राकृतिक न्याय की तलाश अक्सर कानूनी प्रक्रिया से ऊपर होती है और गैर-कथा अपराध लेखन भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण और टीवी की ग्लैमर से बहुत दूर है।“इटारसी एक्सप्रेस – अ राइड थ्रू मिस्ट्री” सत्र में लेखक विवेक दुग्गल ने कहा कि उनकी कहानियां वास्तविक घटनाओं और कल्पना का मिश्रण होती हैं, जिससे पाठक हर भावना को महसूस करें और पूरी कहानी में जुड़े रहें।दूसरे सत्रों में “दिल्ली डिस्को: मिस्चीएफ़, मर्डर एंड मेहम ऑन द डांस फ्लोर” में लेखक शिखर गोयल और सुप्रिया चंदोक शामिल हुए। “क्राइम, पावर & पब्लिक ट्रस्ट” में पूर्व दिल्ली पुलिस आयुक्त नीरज कुमार ने पुलिसिंग, साइबर अपराध, आतंकवाद और कानूनी सुधारों पर महत्वपूर्ण दृष्टिकोण साझा किए। उन्होंने निर्भया मामला, 1993 मुंबई ब्लास्ट, दाऊद इब्राहिम की जांच और क्रिकेट में भ्रष्टाचार और स्पॉट फिक्सिंग के बढ़ते मामलों पर खुलकर बात की। इसके बाद “द लाइर अमंग अस” में कहानीकार विशाल पॉल ने प्रियाक्षी राजगुरु गोस्वामी के साथ बातचीत की, और जुपिंदरजीत सिंह द्वारा क्राइम रिपोर्टिंग पर आयोजित कार्यशाला में दर्शकों को विभिन्न दृष्टिकोणों से जुड़ने का मौका मिला।दून कल्चरल एंड लिटरेरी सोसाइटी (डीसीएलएस) द्वारा आयोजित यह महोत्सव देहरादून को अपराध, न्याय और समाज पर गंभीर संवाद के लिए एक प्रमुख मंच के रूप में स्थापित करता है, और वहीँ अंतिम दिन साइबर अपराध, खुफिया संचालन और आधुनिक पुलिसिंग में नैतिक चुनौतियों पर केंद्रित रहेगा।

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