देहरादून। उत्तराखंड में अनेक पर्यटन स्थल हैं, जिनमें से कई गुमनामी का दंश झेल रहे हैं। पृथक उत्तराखंड राज्य बनने के 24 वर्षों में भी ये गुमनाम पर्यटन स्थल विकसित नहीं हो पाए। यहां कई ऐसे पर्यटन स्थल हैं जो पर्यटकों की नजरों से दूर हैं। इन पर्यटन स्थलों की खूबसूरती देखते ही बनती है। ये गुमनाम पर्यटन स्थल सुविधाओं के अभाव में देश दुनिया से आने वाले पर्यटकों की पहुंच से दूर हैं। शिवालिक की पहाड़ियों के बीच बसा देहरादून अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। सहस्रधारा, गुच्चूपानी, मालदेवता, लच्छीवाला, झड़ी पानी, आसन बैराज, डाकपत्थर, कटापत्थर सहित यहां कई पर्यटन स्थल हैं। इन पर्यटन स्थलों को प्रदेश सरकार और पर्यटन विभाग ठीक से विकसित नहीं कर पाया है। आज भी इन पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों को मूलभूत सुविधाओं, पार्किंग, बैठने, पेयजल, सड़क, शौचालय आदि की समस्या से जूझना पड़ता है। इन पर्यटन स्थलों के अलावा भी दून में कई स्थान रोमांच और आकर्षण से भरपूर हैं, यदि इन्हें विकसित किया जाए तो ये पर्यटकों को स्वतः ही अपनी ओर आकर्षित करेंगे। बिष्ट गांव से चंद्रोटी तक टौंस नदी के लगभग पांच किलोमीटर हिस्से को नए पर्यटन वाटर डेस्टिनेशन के रूप में विकसित किए जाने की योजना है लेकिन अभी तक यह भी विकसित नहीं हो पाए। सरकार ने 13 जिलों में थीम आधारित 13 नए टूरिस्ट डेस्टिनेशन विकसित करने की योजना शुरू की है, लेकिन इसके भी अभी तक सार्थक परिणाम सामने नहीं आए हैं।
फूलों और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर चेनाप घाटी (दूसरी फूलों की घाटी) आज भी पर्यटकों की नजरों से दूर है। जोशीमठ में 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस घाटी में बरसात के सीजन में 300 प्रजाति के दुर्लभ फूल खिलते हैं। यहां कई तरह के वन्य जीव भी पाए जाते हैं। यहां ब्रह्म कमल, फेनकमल, एनीमोन, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, स्नेक लिली, कोबरा लिली, पोटेंटीला, जेनेरियम, ब्लू पॉपी, तारक लिलियम, हिमालयी नीला, पोस्त बछनाग आदि के फूल खिलते हैं। फूलों की घाटी की तरह यह घाटी भी 15 दिन में रंग बदलती है। घाटी में जाने के जोशीमठ से दो रास्ते हैं। एक रास्ता घिवाणी और दूसरा मेलारी टॉप से होकर जाता है। टिहरी में घनसाली से लेकर चिन्यालीसौड़ तक 42 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली टिहरी झील पर्यटकों के लिए आकर्षण केंद्र है, लेकिन यहां भी अभी तक कई मूलभूत सुविधाओं का विकास नहीं हो पाया। भारत-चीन सीमा के निकट नेलांग घाटी में 60 साल बाद पर्यटकों के लिए गरतांग गली सैलानियों के लिए एक नया डेस्टिनेशन बनकर उभरी है। समुद्र तल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर खड़ी चट्टान को काटकर तैयार रास्ते का जीर्णाेद्धार किया गया है। भारत-तिब्बत के बीच व्यापारिक संबंधों की गवाह गरतांग गली करीब 150 साल पुरानी है। इसके बारे में कहा जाता है कि 150 मीटर लंबे इस पैदल ट्रेक का निर्माण पेशावर के पठानों ने किया था। कहा जाता है कि इसका निर्माण जादूंग गांव के सेठ धनीराम ने कामगारों की मदद से कराया था। इस रास्ते के जरिये भारत और तिब्बत के व्यापारी सुमला, मंडी से होते हुए उत्तरकाशी पहुंचकर नमक, मसाले, पशमीना ऊन और गुड़ का व्यापार किया करते थे। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद इनर लाइन क्षेत्र में सुरक्षा के मद्देनजर इसे बंद कर दिया गया था। यह जर्जर हो गई थी। वर्ष 2015 में गृह मंत्रालय ने नेलांग व जादूंग को पर्यटकों के लिए खोलने का निर्णय लिया। बाद में गरतांग गली का जीर्णाेद्धार कर इसे पर्यटकों के लिए खोला गया।
केदारघाटी में फाटा से तीन किमी ऊपर घने जंगल के बीच स्थित नागताल जिले में पर्यटन का नया केंद्र बनकर उभर रहा है। इसी ट्रेकिंग रूट पर महर्षि जमदग्नि का प्राचीन आश्रम व नानतोली देवी का मंदिर भी है। मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। यहां से हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के साक्षात दर्शन होते हैं। नागताल तक पहुंचाने के लिए पर्यटकों को रुद्रप्रयग-गौरीकुंड राजमार्ग से फाटा पहुंचना होगा। यहां से लगभग तीन किमी पैदल दूरी पर वर्षभर साफ जल से भरा नागताल है। साथ ही चारों तरफ देवदार व अन्य प्रजाति के पेड़ों का सघन वन है।
राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क की ओर से प्रकृति प्रेमियों के लिए जंगल सफारी के लिए नया ट्रैक तैयार किया गया है। अंधेर बीट में बनाए गए इस ट्रैक का नाम भी अंधेर दिया गया है। इस ट्रैक के तैयार होने से अब पर्यटकों को जंगली जानवरों और प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने के लिए राजाजी के अन्य गेटों के खुलने का इंतजार नहीं करना होगा। ट्रैक पर साल में कभी भी आकर जंगल सफारी की जा सकती है। यह ट्रैक हरिद्वार नगर से करीब दस किलोमीटर दूर चीला रेंज के मुख्यालय के पास है। यहां जाने के लिए हरिद्वार में उतरकर चंडीघाट पर पहुंचना होता है। इसके बाद निजी वाहन या फिर टैक्सी करके अंधेर गेट तक पहुंचा जा सकता है। चारों ओर से बर्फीली चोटियों के बीच स्थित रहस्यमय रूपकुंड झील पर्यटकों को खूब भाती है। हैरान कर देने वाले नरकंकालों और अस्थियों की वजह से रूपकुंड रोमांच के शौकीनों की खास पसंद है।